पंकज सुबीर की लोकप्रिय कविता
वसंत तुमसे सचमुच अलग नहीं है।
दूर कहीं कुहुक रही है कोयल,
फाल्गुनी हवाएं मुझे छूकर जा रही हैं
ठीक वैसे ही,
जैसे तुम प्यार से मुझे छूकर दूर कर देती हो, युगों की थकान।
आम्र वृक्ष मंजरियों से लदे हैं,
तुम भी तो ऐसी ही हो ,
प्रेम और स्नेह से लदी हुई
खेतों में खड़ी फ़सलों के पोषण के लिए,
तुम भी तो ऐसा ही करती हो।
वसंत तुमसे अलग नहीं है