अथर्व पंवार
आजकल एक दिन के अनेक त्योहारों का चलन है जिसमें लोग इच्छा के हिसाब से नहीं ट्रेंड के हिसाब से मानते हैं। उसमें से कुछ है mother's day और father's day। लोगों को अपने माता पिता का ध्यान रखना बस इस एक दिन में ही याद आता है। व्यस्त दौड़भाग की दुनिया में आज संबंधों के लिए निम्न स्थान प्राप्त है। संबंध का आधार आजकल प्रेम नहीं लालच हो गया है। जिन माता पिता ने अपना पेट काट काट कर अपने बच्चों की परवरिश की, उनके अपंग होते ही उन्हें वृद्धाश्रम का कमरा दिखा दिया जाता है।
यह एक दिन की सेवा अच्छी तो है पर दुखद भी लगती है कि हमें मां और पिता के लिए एक दिन ऐसा मनाना पड़ रहा है। क्या हम 365 दिन यह नहीं मना सकते हैं? उस एक दिन के लिए हम हमारी स्टोरी, पोस्ट, स्टेटस पर पालकों के साथ फोटो डालकर शान समझ रहे हैं पर वह झूठी होती है। उस एक दिन के श्रवण कुमार बनने का क्या फायदा !
हमारे पालक हमारे सबसे बड़े हितैषी होते हैं। जब उन्हें 365 में से 10 दिन याद करते हैं तो भी वह प्रसन्न ही होंगे। पर उन की उस पीड़ा को भी जानना होगा जो वह हृदय में छुपाए रहते हैं। दायरा,सीमा, DISTANCE सभी संबंधों में एक स्तर तक रखना चाहिए जिससे संतुलन बना रहे पर उसका आत्मनिरीक्षण भी करना चाहिए कि वह अनदेखी में तो नहीं बदल रहा।