सफलता और असफलता, सुख और दु:ख तो जीवन का एक हिस्सा है परंतु निराशा और लालसा एक ऐसी चीज़ है जो आदमी के संपूर्ण जीवन को ही असफल कर देती है। कभी-कभी तो निराशा के चलते व्यक्ति आत्महत्या तक कर बैठता है। जीवन में निराशा का भाव नहीं होना चाहिए। आदमी खुद की निराशा से ही हारता है किसी दूसरे के द्वारा दिए जा रहे दु:ख से नहीं। निराश व्यक्ति जीवन के हर मोड़ पर असफल ही होता है, जबकि उसे यह नहीं मालूम रहता है कि रात के बाद दिन आता है इसी तरह हमारे प्रयासों से ही दु:ख के बाद सुख भी आ सकता है।
भावार्थ : हे कुंतीपुत्र! सर्दी-गर्मी और सुख-दुःख को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति-विनाशशील और अनित्य हैं, इसलिए हे भारत! उनको तू सहन कर॥... क्योंकि हे पुरुषश्रेष्ठ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरुष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है॥
संसार में सबकुछ आने जाने वाला और परिवर्तनशील है। सुख-दु:ख, हार-जीत, जीना मरना आदि सभी कुछ चलता रहेगा यह सोचकर मन में कभी भी निराशा का भाव नहीं लाना चाहिए। निराशा, हताशा और उदासी व्यक्ति के जीवन को नष्ट कर देती है। जीवन में उतार चढ़ाव तो जीवन का स्वभाव है। इस उतार चढ़ाव को उत्साह से पार करें। उत्साह ही सफलता का राज है।
भावार्थ : काम, क्रोध तथा लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार (सर्व अनर्थों के मूल और नरक की प्राप्ति में हेतु होने से यहां काम, क्रोध और लोभ को 'नरक के द्वार' कहा है) आत्मा का नाश करने वाले अर्थात् उसको अधोगति में ले जाने वाले हैं। अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिए॥21॥
व्याख्या : काम अर्थात किसी भी प्रकार की अनावश्यक भोग की इच्छा जिसमें संभोग भी शामिल है। क्रोध अर्थात गुस्सा, रोष, आवेश, तनाव, नाराजगी, द्वेष आदि प्रवृत्ति। लोभ अर्थात लालच, लालसा, तृष्णा आदि। बहुत से ज्योतिष, संत, कंपनियां या दूसरे धर्म के लोग लोगों को लालच में डालने के लिए प्रलोभन, गिफ्ट, इनाम आदि देते हैं। स्वर्ग, जन्नत का भी लालच दिया जाता है। लालच में फंसकर व्यक्ति अपने कुल का नाश कर लेता है।