तीन बौद्ध भिक्षु थे जो मौन रहकर किसी गुफा में ध्यान करते रहते थे। तीनों एक दूसरे से बोलते नहीं थे। जब से भिक्षु बने थे तो उन्होंने तय किया था कि अब कभी बोलेंगे नहीं क्योंकि बोलना व्यर्थ है। इससे ध्यान साधना में बाधा भी उत्पन्न होती है और विवाद भी होता है। जीवन के लिए जरूरी नहीं है बोलना। ऐसा तय करके वे जंगल में एक गुफा में ध्यान करते थे और मौन रहकर ही अपनी दिनचर्या पूर्ण करते थे।
अंत में तीन वर्ष बाद उस तीसरे भिक्षु ने कहा, 'यार! तुम दोनों बोलते बहुत हो, शेर था या तेंदुआ। हमें इससे क्या मतलब। यहां जंगल में तो ऐसी घटना घटती ही रहती है। तुमने मेरे 6 वर्ष खराब कर दिए। तब से मैं खुद को दबा रहा था कि बोलूं या नहीं बोलूं।''...यह सुनकर सभी मौन रह गए।