जातिगत ध्रुवीकरण और विपक्ष की एकजुटता, दोनों ओर से घिरती भाजपा ?

मध्यप्रदेश में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव की तस्वीर क्या होगी, ये अभी से कहना सही नहीं होगा लेकिन जो अभी जो तस्वीर दिखाई दे रही है उसे कहीं न कहीं भाजपा के लिए खतरे की घंटी कहा जा सकता है। 
 
मध्यप्रदेश में इस वक्त जो हालात हैं वो सवर्ण और पिछड़ी जातियों में वोटों के ध्रुवीकरण की ओर साफ इशारा करते हैं। प्रदेश की जनता में भाजपा को लेकर आक्रोश तो है, लेकिन उसके पास कांग्रेस के अलावा विकल्प भी मौजूद नहीं है। 
 
लेकिन कांग्रेस को भी बहुत ज्यादा मजबूत स्थिति में तब तक तक नहीं कहा जा सकता, जब तक पार्टी अपना प्रमुख चेहरा तय नहीं कर लेती या उस पर मोहर नहीं लगा देती। क्यों जनता के पास भाजपा के चेहरे के रूप में शिवराजसिंह चौहान हैं, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक‍ अपनी पार्टी के संभावित मुख्यमंत्री का पत्ता नहीं खोला है। 
 
ऐसे में प्रदेश में ज‍हां कांग्रेस की दावेदारी भी कमजोर है, वहीं भाजपा के जमे हुए पैर भी मध्यप्रदेश के वर्तमान हालातों के चलते डगमगा सकते हैं। 
 
इन सब के बीच अब जो खबर आ रही है वो कांग्रेस के लिए तो मध्यप्रदेश चुनाव में वरदान साबित हो सकती है, वहीं दूसरी ओर भाजपा के लिए खतरे की घंटी। हम बात कर रहे हैं गठबंधन सरकार की। जी हां, कांग्रेस-बसपा गठबंधन की सुगबुगाहट तो पहले से ही शुरू हो गई थी, अब इंतजार है तो सिर्फ अंतिम मोहर का।
 
हाल ही में कमलनाथ ने कहा है कि जल्द ही मध्यप्रदेश चुनाव को लेकर कांग्रेस को मायावती का साथ मिल सकता है। हालांकि बसपा अपने लिए 50 सीट चाहती थी, लेकिन अब हालातों को देखते हुए वह भी समझदारी से बात कर रही है। बसपा के लिए सीटों के अलावा प्रदेश में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना जरूरी है साथ ही कांग्रेस-बसपा दोनों के लिए भाजपा को हराना भी उतना ही जरूरी है। 
 
कांग्रेस ने तो अगले 10 दिनों में बसपा के साथ समझौता होने की बात भी कही है, यानी डील पक्की हो सकती है। अब एक तरफ जातिगत आधार पर बीजेपी से प्रदेश की जनता की नाराजगी, दूसरी ओर विपक्ष का एकजुट होना, मध्यप्रदेश चुनाव में भाजपा के लिए चुनौती साबित होगा।

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