बिहार को छोड़ दें तो भले ही भारत बंद का आव्हान उग्र रूप से नहीं किया गया हो, लेकिन बंद का सीधा असर राजनीतिक दलों से लेकर आम लोग, यहां तक कि बच्चों पर भी देखा गया।
एक तरह राजनीतिक पार्टियों के आयोजनों को रोक दिया गया, तो दूसरी ओर नेताओं के घरों के आसपास सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गईं। इन्हें डर था कि किसी तरह के आयोजन में नेताओं की उपस्थिति विरोध को बढ़ा सकती है और काले झंडे भी दिखाएं जा सकते हैं। वहीं दूसरी ओर किसी भी अप्रिय स्थिति के डर से स्कूल और कॉलेजों में भी छुट्टी घोषित कर दी गई।
कुल मिलाकर एससी-एसटी एक्ट में संशोधन का जिस तरह विरोध किया जा रहा है, उसमें भाजपा आगे कुंआ पीछे खाई वाली स्थति में है। एक तरफ पार्टी अनुसूचित जाति-जनजाति के वोट बैंक के चलते उसे अपने पक्ष में करने के प्रयास में थी, वहीं दूसरी ओर सवर्णों का पारंपरिक और मजबूत वोट बैंक अब उसके बूते से फिसलता नजर आ रहा है।