कथित 2जी घोटाला बना मजाक का मुद्दा

# माय हैशटैग
कोर्ट ने 2जी घोटाले के 19 आरोपियों को बरी किया ही था कि सोशल मीडिया पर 2जी घोटाले के बारे में एक से बढ़कर एक पोस्ट आने लगीं। 7 हजार पृष्ठों के दस्तावेज पेश करने के बाद भी न्यायालय सीबीआई से संतुष्ट नहीं हुआ और कहा कि सीबीआई घोटाले के दस्तावेज पेश करने में नाकाम रहा है। उसने जो दस्तावेज पेश किए हैं, उससे यह साबित नहीं होता कि पूर्व मंत्री राजा और अन्य 18 लोग 2जी घोटाले में दोषी हैं। लोगों को आश्चर्य हो रहा है कि यूपीए के जमाने के सारे घोटालेबाज मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते पकड़े गए और नरेन्द्र मोदी और भाजपा की सरकार के समय वे बाइज्जत बरी हो रहे हैं।  
अगर ये 19 लोग 2जी घोटाले के दोषी नहीं हैं, तो फिर दोषी कौन है? कई लोगों का मानना है कि भूतपूर्व कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल विनोद रॉय दोषी हैं, जिन्होंने ऐसी मनगढ़ंत कहानी गढ़ी और यूपीए की सरकार को उलझा दिया। उस पूरी कहानी में इतने किंतु-परंतु हैं कि यह साबित करना मुश्किल है कि असली अपराधी कोई है भी या नहीं। यह भी साबित करना कठिन है कि कोई घोटाला हुआ है या नहीं। 
 
सोशल मीडिया पर एक यूजर ने टिप्पणी की कि क्रिकेट के एक ओवर में अधिकतम 36 रन बनाए जा सकते हैं। एक ओवर में 6 बॉल और हर बॉल पर एक छक्का। 50 ओवर में इस तरह अधिकतम 1800 रन बनाए जा सकते हैं। अब अगर भारतीय टीम ने किसी मैच में 400 रन भी बना लिए, तो विनोद रॉय कहेंगे कि भारतीय टीम ने 1400 रनों का घोटाला किया है। यह तथ्यों को देखने का उनका तरीका है। 
 
एक हास्य कवि ने भी ऐसी ही बात लिखी। उन्होंने लिखा कि मैं अमेरिका गया, तो वहां एक ने कहा कि हमारे देश में बहुत संपन्नता है। पांच-पांच लाख रुपए के बराबर तो हर महीने तनख्वाह मिलती है। मैंने कहा कि बकवास कर रहे हो। इतना तो हमारे देश के लोग थूक देते हैं। अमेरिकी हैरान! यह कैसे? कवि ने कहा कि यहां एक बार सड़क पर थूकने के पांच सौ डॉलर यानी करीब तीस हजार रुपए जुर्माना होता है। भारत में हम 20 बार तो ऐसे ही थूक देते हैं। हो गए 10 हजार डॉलर यानी 6 लाख रुपए से ज्यादा। ऐसी है सीएजी के विनोद रॉय की कहानी। 
 
अनेक लोगों ने 2जी घोटाले में बरी किए जाने की बात को मजाक में भी लिया है। इस तरह के कार्टून भी शेयर किए गए हैं कि 4जी के जमाने में 2जी को पूछता ही कौन है? सीबीआई पर सबसे ज्यादा लानतें भेजी जा रही हैं। लोग लिख रहे हैं कि केन्द्र सरकार के इस पालतू तोते का नाम बदल देना चाहिए और सीबीआई को क्लीनचीट ब्यूरो ऑफ इंडिया कहना चाहिए। कई लोगों को लगता है कि 2जी का तथाकथित घोटाला एक राजनीतिक साजिश था, जिसे सीएजी की मदद से अंजाम दिया गया। कई लोगों ने सीएजी के प्रमुख रहे विनोद रॉय की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए हैं और उनसे माफी मांगने की बात भी लिखी है। जाहिर है इसमें अधिकतम लोग कांग्रेस से जुड़े हैं। 
 
कई लोगों को लगता है कि इस मामले में पिक्चर अभी बाकी है। कुछ नए राज भी उजागर होंगे। कई लोगों को यह भी लगता है कि लोगों की याददाश्त कमजोर है, वे घोटालों को भूल जाते हैं और फिर उन्हीं नेताओं को चुनने लगते हैं। 
 
कई लोगों का मानना है कि 2जी घोटाला और घोटाले के लोगों को जेल भेजने की बात भी जुमला ही थी। एक था राजा, एक थी रानी, दोनों बच गए खत्म कहानी। भारत की जनता नेताओं द्वारा मूर्ख बनने में ही खुश रहती है। सीबीआई की लंबी-चौड़ी जांच और लंबी कानूनी प्रक्रिया पर व्यंग्य करते हुए लोगों ने कहा कि इससे अच्छा तो हमारी ग्राम पंचायतें हैं, पांच लोग मिलकर बैठते हैं और घंटे-दो घंटे में न्याय देते हैं। भाजपा नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्वीट करके प्रधानमंत्री मोदी से कहा था कि प्रधानमंत्रीजी जिन आरोपों को गिनाकर आप सत्ता में आए थे, आपके ही शासन में वे सब बरी हो रहे हैं। किसी राष्ट्रवादी ने लिखा कि छोड़ो मोदीजी, कहां देश बनाने में लगे हुए हो, घोटाले करो, अपनी जेबें भरो, खानदान का भला करो और हिमालय जाओ। बाकी सब कोर्ट देख लेगा। 
 
न्यायालयों से भारत में लोगों को बहुत उम्मीदें नहीं हैं। किसी ने लिखा कि हमारे मोहल्ले में एक साइकल चुराने वाले को कोर्ट ने पांच साल की सजा दी, लेकिन अरबों का घोटाला करने वाला विजय माल्या ब्रिटेन में ऐश कर रहा है। गरीबों के पाप तो गंगा धोती है और अमीरों के पाप हमारे कोर्ट। इसके विपरीत लोगों ने यह भी लिखा कि न्यायालयों में ऐसी कोई मशीन नहीं है कि एक तरफ भ्रष्टाचारी को डालो, तो उसका फैसला अपने आप हो जाए। हमारे कोर्ट में ऐसी मशीन जरूर है, जहां कोई भ्रष्टाचारी जाता है, तो 7-8 साल बाद भी बेदाग और ईमानदार साबित होकर निकल जाता है। कोर्ट के इस फैसले से देश के भ्रष्टाचारियों को बड़ी उम्मीदें बढ़ी हैं।  
 
उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने 2जी मामले में साफ-साफ इतना ही कहा है कि सीबीआई ने कोर्ट में जो दस्तावेज पेश किए हैं, उसके आधार पर यह साबित नहीं होता कि 2जी घोटाला हुआ है। न्यायालय केवल उपलब्ध सबूतों और गवाहों के आधार पर ही फैसला दे सकता है। लोग यह भी लिख रहे हैं कि 2002 में गुजरात के दंगों पर कोर्ट के निर्णयों को अंतिम सत्य मानने वाली भाजपा 2जी स्पेक्ट्रम मामले में कोर्ट के फैसले पर सवाल क्यों उठा रही है?

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