अपनी निरंतरता और कार्यनिष्ठा के साथ मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के पिछले 4 वर्षों में जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वे लाजवाब हैं। बिना व्यक्तिगत लाभ-हानि के देश के उच्च वर्ग के सतत विरोध व विपक्ष की आलोचनाओं व खिंचाई के बीच राष्ट्रहित में निरंतर फैसले लेते रहने की जिद मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि है।
'राष्ट्र प्रथम' और 'सबका साथ-सबका विकास' के नारों के बीच पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ सरकारी अमले की मानसिकता बदलने की जो प्रक्रिया मोदी सरकार में शुरू की गई, इसके परिणाम अंतत: सकारात्मक ही मिलने हैं। ई-गवर्नेंस, ई-टेंडरिंग, डिजिटलीकरण और जीएसटी इन 4 उपक्रमों ने देश और समाज की दिशा, सोच, कार्यपद्धति और निष्पादन सबको बदल दिया है। सच तो यह है कि 'नए भारत' का उदय हो चुका है। देश इस समय चहूंओर व्यापक बदलावों का साक्षी है, घोटालों की जगह विकास की बात हो रही है और कालेधन की जगह सफेद अर्थव्यवस्था लेती जा रही है, यह अपने आप में क्रांतिकारी है।
'डायलॉग इंडिया' ने इन्हीं बदलावों को समझने व इनको नई दिशा, धार व रफ्तार देने के लिए आईआईटी दिल्ली के सहयोग से एक मेगा कॉन्क्लेव का आयोजन प्रधानमंत्री मोदी के विजन 'यूथ फॉर न्यू इंडिया' विषय पर आयोजित किया जिसका निष्कर्ष आगे के पेजों पर दिया गया है। इसी के साथ डायलॉग इंडिया एकेडमिया रैंकिंग-2018 जारी की गई और इसके आधार पर देश के निजी क्षेत्र के उच्च शिक्षा संस्थानों को सम्मानित किया गया। इस आयोजन का दूसरा चरण 9 जून को पुणे में आयोजित किया जा रहा है।
बड़े सामाजिक बदलावों ने जमीनी रूप लेने शुरू कर दिए हैं और इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं पिछले 3 महीने। इन महीनों में कर्नाटक चुनावों के मद्देनजर विपक्ष व मीडिया के एक वर्ग ने देश में नकारात्मकता व अराजकता के साथ ही जातीय व धार्मिक विभाजन के हरसंभव उपाय किए किंतु जिस प्रकार मोदी-शाह के नेतृत्व में भाजपा को कर्नाटक में बढ़त मिली और कांग्रेस पार्टी हारी, उससे सिद्ध हो गया कि जनता विभाजन व नकारात्मकता की राजनीति से तंग आ गई है।
यद्यपि कर्नाटक में भाजपा को बहुमत से 5-7 सीटें कम मिलना कुछ नए नाटकों का आगाज कर गया। इन नाटकों के बीच पता चला कि यद्यपि समाज तेजी से सकारात्मक बदलावों की ओर बढ़ चला है, मगर राजनीतिक दल व संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अभी भी सामंती मानसिकता से ग्रस्त हैं और उनमें लोकतांत्रिक मूल्यों की खासी कमी है। यद्यपि उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप से कर्नाटक में जनता दल सेकुलर व कांग्रेस पार्टी की मिली-जुली सरकार तो बन गई है और उसने बहुमत भी हासिल कर लिया है, मगर राज्य की जनता तो ठगी ही गई। यह सब संसदीय लोकतांत्रिक प्रणालियों की खामियां हैं जिनको अब ठीक किया जाना चाहिए।
मोदी अब परंपरागत मित्रों यानी रूस व पड़ोसी देशों के साथ ही चीन से संबंध ठीक करने में जुट गए हैं और उनकी बीजिंग, रूस व नेपाल यात्रा व बांग्लादेश की प्रधानमंत्री की भारत यात्रा से इसमें बड़ा सुधार हुआ है। यद्यपि पाकिस्तान निरंतर एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
तेजी से होते विकास के बीच हालांकि घोटालों पर तो लगाम लगी है किंतु सरकारी कर्मचारियों की रिश्वत और कॉर्पोरेट क्षेत्र की ठगी में कोई कमी नहीं आई बल्कि ऐसा लगता है कि इनको शह दी जा रही है सरकारी मंत्रियों द्वारा। यह इन नोटबंदी के बाद से इन वर्गों के आक्रोश को नियंत्रित करने की 'सेफ्टी वॉल्व थ्योरी' हो सकती है किंतु जनता में इसका कोई अच्छा संदेश नहीं जा रहा और सरकारी योजनाओं का जमीनी अमल व कॉर्पोरेट पर प्रशासन की पकड़ दोनों कमजोर हो रहे हैं। जेट एयरलाइंस की ऐसी ही अराजकता की कहानी इस अंक में हम दे रहे हैं।
यह चुनावी वर्ष का आगाज है और अगले कुछ महीनों में देश का राजनीतिक माहौल और कड़वा होता जाएगा। कर्नाटक के नाटक के बीच विपक्ष को एकजुट होने का मौका मिल गया है और अस्तित्व के संकट के बीच वे कहीं-न-कहीं समन्वय बैठाकर ही चलेंगे, ऐसे में मोदी-शाह की जोड़ी के लिए आने वाला वक्त बहुत चुनौतीपूर्ण है। देश में और अधिक विभाजन, कटुता और अराजकता फैलाने की कोशिशें की जाएंगी, क्योंकि विपक्ष के पास न कोई नेतृत्व है और न ही कार्यक्रम, ऐसे में भ्रम और झूठ-प्रपंच की राजनीति ही उसका एकमात्र हथियार है।
जिस सकारात्मकता का परिचय जनता ने कर्नाटक में दिया, अगर वैसा ही पूरे देश में दे तो विपक्ष भी अपना एजेंडा बदलने को मजबूर हो जाएगा और राष्ट्रहित में सकारात्मक मुद्दों पर राजनीति होगी। यही तो है नए भारत की मूल अवधारणा। (डायलॉग इंडिया, राजनीतिक पत्रिका)