उपलब्ध विवरणों के अनुसार द्वापर युग के महाभारत युद्ध में कौरव पक्ष के पास 11 अक्षौहिणी और पांडवों के पास 7 अक्षौहिणी सेना थी। प्रारंभिक अवस्था में दोनों ओर 9-9 यानी 18 अक्षौहिणी सेना होने का अनुमान था। किंतु श्रीकृष्ण की नारायणी सेना के कौरव पक्ष में जाने और दुर्योधन द्वारा नकुल सहदेव के मामा, मद्र नरेश शल्य को छल से अपनी ओर मिला लेने के कारण कुल सेना बल तो 18 अक्षौहिणी ही रहा किंतु अनुपात 11 और 7 का हो गया।
शब्दकोशों और अन्यत्र खोज करने पर पाया गया कि आर्यावर्त में बड़े-बड़े साम्राज्यों के पास चतुरंगिणी सेना हुआ करती थी और उस सेना का एक प्रभाग 'अक्षौहिणी' कहलाता था। चतुरंगिणी यानी 4 अंगों वाली सेना- गजारोही, अश्वारोही, रथी यानी क्रमश: हाथी, घोड़े व रथ पर सवार तथा पदाति (पैदल) सैनिक। एक अक्षौहिणी में गजारोही 21,870, रथी 21,870, अश्वारोही 65,610 (गजारूढ़ों के तिगुने) तथा 1,09,350 (गजारूढ़ों के 5 गुने) पदाति सैनिक होते थे।
एक अक्षौहिणी का 10वां अंश 'अमीकिनी' कहलाता था (अक्षौहिणी का 10वां भाग = 2,187 रथ, 2,187 हाथी, 6,561 घोड़े तथा 10,935 पदाति सैनिक)। सेना इससे आगे पत्ती, सेनामुख, गुल्म, गण, चमू आदि खंडों में बंटी होती थी। आज के सैन्य बलों में ऐसे अंशों को हम कोर- Corps, डिवीजन- Division, ब्रिगेड- Brigade, बटालियन- Battalion, कंपनी- Company, प्लाटून Platoon, सेक्शन- Section आदि के रूप में पाते हैं।
हाथी पर योद्धा के साथ महावत तथा रथ पर एक योद्धा के साथ एक सारथी होता था। सारथी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती थी तथा महावत व सारथी दोनों युद्ध कौशल में प्रशिक्षित सैनिक ही हुआ करते थे। ज्ञातव्य है कि महाभारत कथा में अप्रतिम योद्धा व दिव्य दृष्टि प्राप्त संजय महाराज धृतराष्ट्र के, मद्र नरेश शल्य कर्ण के तथा तीनों लोकों के स्वामी द्वारिकाधीश महाराज श्रीकृष्ण इस महासमर में अर्जुन के सारथी थे।
इस आधार पर कुल सैनिकों व हाथी-घोड़ों की गणना कुछ इस तरह होगी:-
हाथी- 21,870
घोड़े (सवारों के)- 65,610
घोड़े रथों के- 43,740**
गजारोही सैनिक व महावत- 43,740**
रथी सैनिक व सारथी- 43,740**
अश्वारोही सैनिक- 65,610
पदाति सैनिक- 109,350
इस तरह न्यूनतम गणना में भी 21,870 हाथियों व 1,09,350 घोड़ों के साथ 2,62,440 सैनिक एक अक्षौहिणी सेना में माने जा सकते हैं यानी 18 अक्षौहिणी सेना में मोटे तौर पर 23,61,960 हाथी-घोड़ों के साथ 47,23,920 सैनिकों ने महाभारत युद्ध में भाग लिया।
इसके अतिरिक्त योजनाबद्ध रूप से सैनिकों व पशुओं की भोजन व्यवस्था, घायल सैनिकों की चिकित्सा-सुश्रुषा, मृत योद्धाओं के शवों की व्यवस्था व संस्कार, अस्त्र-शस्त्रों, रथों की मरम्मत व आपूर्ति जैसी विभिन्न सेवाओं के लिए किस व्यापक स्तर पर पशु व मानव संसाधन जुटाने पड़ते होंगे, इसकी सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है।
आज के युग की सेनाओं में भी इन तमाम तरह की सेवाओं के लिए प्रक्षिक्षित सेवकों/ सैनिकों की आवश्यकता होती है बल्कि देखा जाए तो आधुनिक युग की सेनाओं के पास त्रेतायुग की सेनाओं के मुकाबले उन्नत आग्नेयास्त्र, विस्फोटक और वैज्ञानिक संसाधन व्यापक स्तर पर उपलब्ध हैं और इनका संचालन भी इतना ही जटिल है। अस्तु।
(**रथ के घोड़ों व मानव बल की सही संख्या ज्ञात करना कठिन है, क्योंकि रथी की मर्यादा के अनुसार रथ एक से अधिक घोड़ों वाले भी होते थे। इस गणना के लिए एक रथ में एक रथी के साथ एक सारथी व दो घोड़ों की संख्या ली गई है। इसी तरह हाथियों की संख्या पर तो कोई अन्य मत नहीं हैं किंतु उन पर सवार योद्धाओं के बारे में मतांतर है। हर हाथी पर उसका हाथीवान बैठता है और उसके पीछे उसका सहायक, जो हौदे के पीछे से हाथी को अंकुश लगाता है। हौदे में उसका मालिक रहता है, जो धनुष-बाण से सज्जित होता है और उसके साथ उसके दो साथी होते हैं, जो भाले फेंकते हैं और उसका विदूषक होता है, जो युद्ध से इतर अवसरों पर उसके आगे चलता है।)
रथों के बारे में यह विवरण भी मिलता है कि रथी के साथ हर रथ में 4 घोड़े और उनका सारथी होता है, जो बाणों से सुसज्जित होता है। उसके दो साथियों के पास भाले होते हैं और एक रक्षक होता है, जो पीछे से रथी की रक्षा करता है। तदनुसार जो लोग रथों और हाथियों पर सवार होते हैं, उनकी संख्या 2,84,323 होती है। हमारी गणना के लिए हाथियों पर एक योद्धा व एक महावत ही गिने गए हैं।)