AI रिवॉल्‍यूएशन Human Mind और अलग-थलग पड़ी मनुष्‍य चेतना के सवाल

AI and Human consciousness: सोशल मीडिया का रिवॉल्‍यूएशन देखकर गुणीजनों को ज्‍यादा बौराना नहीं चाहिए। रील्‍स, मीम्‍स और ट्रेंडिंग को क्रांति मानकर हम सब को इतना भी दीवाना नहीं होना चाहिए कि इसके नहीं रहने पर दिल वैसे ही टूटे जैसे किसी खूबसूरत लड़की की ट्रेन आ जाए और आप अपनी रोटी-प्‍याज और कुछ कपड़ों की पोटली के साथ सन्‍नाटे से भरे स्‍टेशन पर अकेले बैठे रह जाएं— यह क्रांति है तो क्रांति भी एक दिन खत्‍म होती है और फिर एक दूसरी क्रांति लौटती है।

दरअसल, एआई और चैट- जीपीटी जैसी तकनीक इन दिनों जिस तरह से ह्यूमन माइंड को नकार रही है— और सुधीजन इनका मुरीद होकर जिस तरह से शनि की साढ़े साती में घिसाकर तैयार हुए आदमी को अयोग्‍य करार दे रहे हैं— यह न सिर्फ भयावह है, बल्‍कि मानव विकास, उसकी चेतना और ह्यूमन माइंड को हाशिये पर धकेलकर अपना ही नुकसान कर रहे हैं। इसके ठीक उलट मेरा भरोसा है कि ह्यूमन माइंड, उसका इमोशन और मनुष्‍य की चेतना किसी दिन धीमे से ठीक उसी तरह से लौटेंगे जैसे बाजार में एक बार फिर से मोटा अनाज लौटा है— जैसे ऑर्गेनिक सब्‍जियां और तमाम उत्‍पाद लौटे हैं, जिन्‍हें किसी जमाने में यूरोपियन और वेस्‍टर्न पैकेज्‍ड उत्‍पादों के आगे कमतर बताकर ठुकरा दिया गया था।

ठीक जैसे अंग्रेजी की ठसक दिखाकर हिंदी को दरकिनार किया गया था। आज गूगल से लेकर, फेसबुक, एक्‍स, इंस्‍टाग्राम, ग्रोक, जैमीनी, एआई और चैट-जीपीटी उसी हिंदी में लोगों से संवाद कर रहे हैं और हिंदुस्‍तान की तमाम दूसरी मराठी, गुजराती, तमिल, तेलुगु और बांग्‍ला भाषाओं में लोकलाइजेशन का काम हो रहा है।

इन दिनों मीडिया की दुनिया में ग्राउंड पर रिपोर्टिंग करने वाले रिपोर्टर्स और अखबार की तमाम डेस्‍क पर काम करने वाले न्‍यूज एडिटर, उप- संपादकों, ग्राफिक डिजाइनर्स और ले-आउट वालों को दफ्तरों में एआई का डर और उसकी चमक दिखाकर मायूस करने की होड़-सी लगी है— लेकिन रिपोर्टर को ग्राउंड पर जाकर रिपोर्ट करने के लिए भी कहा जा रहा है। पड़ताल करने के लिए अपने रिपोर्टर की ही याद आती है— क्‍योंकि अभी रिपोर्टर का एआई वर्जन फिल्‍ड में जाने के लिए पैदा नहीं हुआ है। मुझे बेसब्री उस दिन का इंतजार है जब कोई एआई रिपोर्टर बेटे की हत्‍या पर उसकी मां से बात कर के मार्मिक खबर बनाएगा, ठीक वैसे ही जैसे कोई पत्रकार अपनी डेस्‍क पर भीगी हुई आंखों से मृतक की मां का बेबस चेहरा देखते हुए खबर लिखता है। इंतजार है उस दिन का जब अस्‍पतालों में मरीजों की बेबसी और मेडिकल माफियाओं की कारस्‍तानियों को एक मानव रिपोर्टर की जगह एक एआई रोबोट देखेगा और उनकी खबर लिखेगा।

यकीनन, एआई इस दौर का एक बेहतरीन टूल है, जैसे भाषाओं में अंग्रेजी और मशीनों में कंप्‍यूटर और मोबाइल। इसे सीखा जाना चाहिए और इसकी पीठ पर बैठकर राइड की जाना चाहिए— हमें बदलने के लिए फिट रहना चाहिए, लेकिन इस तकनीक के सामने उसी चैतन्‍य मनुष्‍य को ठुकरा देना कितना सही है जिसने खुद इस तकनीक को बनाया है।

सैन फ्रांसिस्‍को में एक 16 साल के लडके को चैटबॉट ने आत्‍महत्‍या के तरीके बताए। उसने आत्‍महत्‍या की और उसकी मौत हो गई। जाहिर है एक मानव के रूप में आप और हम किसी बच्‍चे को आत्‍महत्‍या के तरीके नहीं बताएंगे।

हाल ही में एक स्टडी 'द जेनएआई डिवाइड: स्टेट ऑफ एआई इन बिजनेस 2025' सामने आई है। इसमें बताया गया है कि 95% जेनरेटिव AI प्रोजेक्ट्स फेल हो गए हैं। अगर गलती ही करना है तो मानव से अच्‍छी गलती कौन करता है।

उस्‍ताद बिस्‍मिल्‍लाह खान का एक किस्‍सा याद आ रहा है— कई लोगों के लिए यह बात कोई मायने नहीं रखती, क्‍योंकि यह सब लिखकर मैं इस दौर में एक बेहद ही ऑर्थोडॉक्‍स बात कर रहा हूं— लेकिन फिर भी ये किस्‍सा जेहन में आ रहा है। बनारस में बालाजी मंदिर के घाट पर बैठकर जलेबी खाकर और पेप्‍सी पीकर दंड लगाने वाले उस्‍ताद बिस्‍मिल्‍लाह खान का अमेरिका दीवाना था।

बिस्‍मिल्‍लाह की शहनाई की गूंज में दीवाने होकर अमेरिका की रॉकफेलर संस्‍था ने उन्‍हें ऑफर दिया था कि वे अमेरिका के होकर अमेरिका में ही बस जाएं, वे उनके लिए वहां स्‍वर्ग- सा माहौल मुहैया करा देंगे। इस पर बिस्‍मिल्‍लाह खान ने कहा था कि वहां मेरे लिए स्‍वर्ग तो बसा दोगे— लेकिन मेरी गंगा कहां से बहाओगे। जाहिर है अमेरिका के पास बिस्‍मिल्‍लाह की तरह कोई शहनाई शहंशाह नहीं था आज भी नहीं है— अमेरिका खान साहब की चेतना ही खरीदने का सौदा कर रहा था। उसी चेतना को जिसे आज हम एआई के सामने रखकर नकार रहे हैं। ठीक है, मान लिया कि आपका एआई शहनाई भी बजा लेगा, लेकिन क्‍या वो बिस्‍मिल्‍लाह की मुस्‍कान और शहनाई की गूंज में उनकी सांसें फूंक सकेगा।

कबीर, गालिब, मीर, दाग और फैज की तरह लिख सकेगा— लेकिन क्‍या उनकी जिंदगी जी सकेगा। सैयारा गीत को उसके ओरिजिनल से भी ज्‍यादा प्रसिद्ध दिलाने वाला एआई किशोर कुमार काश असल किशोर कुमार की जिंदगी भी जी सके।

एआई के हाई डिग्री बुखार के बीच मनुष्‍य की चेतना में यकीन करते हुए मेरी आस्‍था है कि एक दिन अखबार भी लौटेंगे। ज्‍वार और बाजरा भी लौटेगा और वो दिन भी लौटेंगे जब हम मनुष्‍य की चेतना की बात करेंगे और तमाम एआई रोबोट और चैट-जीपीटी हाथ बांधकर किसी शाम में मनुष्‍य की चेतना की कहानियां सुनेंगे।

मैं प्रेम करता हूं— और प्रेम में रहते हुए ही प्रेम कविताएं लिखता हूं। मुझे एआई से एतराज नहीं है— मैं सीख रहा हूं— इसका इस्‍तेमाल कर रहा हूं, लेकिन मुझे खुशी होगी जिस दिन चैट-जीपीटी सिर्फ कविता के टैक्‍स्‍ट मुहैया करवाने के बजाए प्रेम भी करेगा और प्रेम करते हुए कविता भी लिखेगा। प्रेम में ठीक उसी जगह पर पहुंचकर जहां पहुंचकर मैं लिखता हूं।

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