भाषण व वादों से नदारद पर्यावरण

विधानसभा चुनाव में लगभग खत्म होने को हैं। सभी बड़े-छोटे राजनीतिक दलों ने अपना-अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया। बड़े-बड़े वादों से जनता को लुभाने का प्रयास भी किया जा रहा है। लेकिन शायद किसी भी पार्टी ने स्वच्छ वायु और प्रदूषण से मुक्ति के लिए कोई वादा किया हो। न ही उनके भाषण में इस मुद्दे को जगह मिल रही है। इससे बड़ी खतरे की घंटी क्या होगी। 

किसी भी राजनीतिक दल के जहन में भी नहीं है। यह बहुत निराश और हैरान करने वाली बात है। जबकि पर्यावरण संरक्षण वर्तमान ही नहीं भविष्य से भी जुड़ा मसला है। भावी पीढ़ी से जुड़े इस विषय को विभिन्न पार्टियों के घोषणा पत्र में कोई जगह नहीं मिल सकी। नेताओं के भाषण में भी यह विषय नदारद रहा।
 
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों में प्राकृतिक व मानवीय स्रोत मुख्य रूप से शामिल हैं। प्राकृतिक स्रोत के तहत आंधी-तूफान के समय उड़ती धूल, ज्वालामुखियों से निकली हुई राख, कोहरा, वनों में लगी हुई आग से उत्पन्न धुआं, वनों में पौधों से उत्पन्न हाइड्रोजन के यौगिक एवं परागकण तथा दल-दल में अपघटित होते पदार्थों से निकली मीथेन गैस वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं।
 
औद्योगिकीकरण के कारण वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड, हाइड्रो कार्बन, सीसा, क्लोरीन, अमोनिया, मैडमियम, बेंजीपाइस, धूल कण, रेडियो एक्टिव पदार्थ, आर्सेनिक, बेरिलियम आदि वायु को प्रदूषित करते हैं।
 
अभी कुछ दिन पहले उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ को देश में सबसे ज्यादा प्रदूषण वाला शहर घोषित किया गया है। इसके बावजूद किसी भी राजनीतिक दल को यह समस्या याद नहीं रही। सीपीसीबी ने पूरे जनवरी और फरवरी में लखनऊ को टॉप 5वें शहरों में रखा है। शहर का एक्यूआई लेवल बहुत खराब से बेहतर खतरनाक स्तर तक रेकॉर्ड किया गया। तापमान के बढ़ने के बाद भी हवा में प्रदूषित कणों का घनत्व कम न होने के चलते शहर प्रदूषण के मानकों में खराब कैटेगरी में ही शामिल रहा है।
 
वर्तमान में लोगों को शुद्ध वायु तक नसीब नहीं हो रही है तो वे विकास का क्या करेंगे। कई संस्थाओं के अध्ययन में पाया गया है कि बड़ी बिल्डिंगें और धूल के कण ने इसे बढ़ावा दिया है। फिर भी विकास की अंधी दौड़ में यह मुद्दा बिसार दिया गया है। यह सोचनीय और निराश करने वाली बात है। 
 
पर्यावरण को शुद्ध किए बिना किसी भी सरकार का कोई विकास काम आने वाला नहीं है। भारत में वायु प्रदूषण ने हालत बहुत नाजुक कर दी है। बहुत सारे अध्ययन और रिपोर्ट का आधार माना जाए तो यहां पर हर 1 मिनट में 2 लोग सिर्फ इसी वजह से मर रहे हैं। इस पर किसी का ध्यान नहीं है।
 
द लांसेट काउंटडाउन नामक एक नई रिपोर्ट के मुताबिक देश की राजधानी दिल्ली और पटना दुनिया के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में शामिल है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर वर्ष 10 लाख से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण की वजह से बेमौत मारे जा रहे हैं। भारत में हर रोज करीब 2 हजार 880 लोगों की मौत वायु प्रदूषण से हो रही है। फिर भी अभी तक पर्यावरण को शुद्ध करने कोई बड़ा कदम नहीं उठाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में हर रोज 18 हजार लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से होती है।
 
अभी हाल में कुछ रिपोर्ट भी सामने आई जिसमें भारत के एक तिहाई शहरों ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वार्षिक प्रदूषण सीमा का उल्लंघन किया है। 2011 से 2015 के बीच 22 राज्यों के 94 शहरों में हवा की गुणवत्ता के मानकों का उल्लंघन किया है। इनमें दिल्ली, बदलापुर, पुणे, उल्हास नगर और कोलकाता ने पीएम 10 और एनओ2 दोनों के स्तरों को पार किया है, वहीं दूसरी ओर उत्तरप्रदेश में प्रदूषण की हालत बहुत खराब है। लखनऊ में एक्यूआई में शहर में प्रदूषण का स्तर बहुत खतरनाक रहा। इंडेक्स में यह लेवल 303 रेकॉर्ड रहा। यह 393 दर्ज किया गया पहुंच गया था।
 
इसके साथ ही सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट (सीएसई) की मानें तो शहर में प्रदूषण का स्तर बहुत बुरा दर्ज हुआ। पॉल्यूशन फ्री हवा के लिहाज से उन्नाव और रायबरेली की हालत सबसे बेहतर है, लेकिन गाजियाबाद और इलाहाबाद की हवा में प्रदूषण का स्तर बेहद ज्यादा है।
 
आईआईटी कानपुर ने भी पिछले साल मौसम में होने वाले बदलाव से प्रदूषण के प्रभाव पर एक रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया कि गर्मियों की तुलना में सर्दियों में वायु प्रदूषण में वाहनों का योगदान अधिक होता है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर भारत में लखनऊ और चंडीगढ़ जैसे शहरों का पर्यावरण लोगों की सेहत के लिए नए खतरे पैदा कर सकता है। यह भी बताया गया कि वायु प्रदूषण से स्वास्थ्य पर काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा। साथ ही मृत्यु दर में भी तेजी आई है। 
 
रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 1995 से 2015 के दौरान वायु प्रदूषण से समय पूर्व हो रही मौत में 2.5 गुणा का इजाफा हुआ है। साल 1995 में ऐसी मौत का आंकड़ा था 19 हजार 716, जो 2015 में बढ़कर 48 हजार 651 हो गई। डबल्यूएचओ की मानें तो प्रदूषण का औसत वार्षिक स्तर 10 माइक्रो ग्राम पर क्यूब मीटर होना चाहिए।
 
मनुष्य बिना वायु के लगभग 5 से 6 मिनट तक ही जिंदा रह सकता है। मनुष्य एक बार में औसतन 20 हजार बार श्वास लेता है। इस दौरान मनुष्य 35 पौंड वायु ग्रहण करता है। हवा में कई हानिकारक गैसों की संख्या बढ़ते ही जा रही है। एक अनुमान के अनुसार पिछले 7 दशकों में 10 लाख टन कोबाल्ट, 8 लाख टन निकिल तथा 6 लाख टन आर्सेनिक सहित अन्य गैसें वायुमंडल में समाविष्ट हो चुकी है। 
 
वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि यही स्थिति बनी रही तो आने वाले समय में स्थिति भयावह हो जाएगी। लेकिन अब यह हवा इतनी विषैली होती जा रही है कि इससे लोगों में तरह-तरह की बीमारियां फैल रही हैं। इसे लेकर सरकारें बातें भले ही करती हों लेकिन इस पर कोई टैक्स या कड़ा कानून बनाकर रोक नहीं पा रहे हैं।
 
भारत में वायु प्रदूषण बढ़ता ही जा रहा है चाहे केंद्र सरकार हो या फिर राज्य सरकारें, कोई भी प्रदूषण से लड़ने के लिए गंभीर नहीं दिखता। केंद्र सरकार ने संसद में एक सवाल का जवाब में कहा था कि भारत वायु प्रदूषण की मॉनिटरिंग पर हर साल सिर्फ 7 करोड़ रुपए खर्च करता है। ये रकम 125 करोड़ की आबादी वाले इस विशाल देश के लिए बहुत कम है।
 
वायु प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत हो रही है। इसे लेकर कोई चेत नहीं रहा है। नेताओं को धर्म, मजहब के बजाय इसे भी मुद्दा बनाए जाने की जरूरत है। प्रदूषण से लड़ने के लिए कोई बड़ी नीति बनानी चाहिए।
 
पर्यावरण वैज्ञानिकों का मानना है कि दिल्ली की हवा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए सरकार को जरूरी कदम उठाने चाहिए। सरकार को बद्तर स्थिति वाले बिजली संयत्रों को बंद करना चाहिए। पड़ोसी राज्यों के फसल जलाने के मामले को बेहतर तीरीके से निपटना चाहिए। प्रदूषण पर निगरानी करने वाली समिति कमेटी को मजबूत करना होगा।
 
जंगल कटते जा रहे हैं, जल के स्रोत नष्ट हो रहे हैं, वनों के लिए आवश्यक वन्यप्राणी भी विलुप्त होते जा रहे हैं। औद्योगीकरण ने खेत-खलिहान और वन्य-प्रांतर निगल लिए। वन्यजीवों का आशियाना छिन गया। कल-कारखाने धुआं उगल रहे हैं और प्राणवायु को दूषित कर रहे हैं। यह सब खतरे की घंटी है।
 
आज के समय में पर्यावरण का ध्यान रखना हर किसी की जिम्मेदारी और अधिकार होना चाहिए और विशेषकर आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरण का संरक्षण बहुत जरूरी हो गया है। इस गंभीर मुद्दे से निपटने के लिए हम सबको मिलकर लड़ना होगा। यह ऐसा मुद्दा है, जो सीधे जिन्दगी से जुड़ा है और हमें अपने जीवन को खुद बचाना होगा। पर्यावरण रक्षक और हितकारी लोगों के साथ मिलकर इसके लिए लड़ाई लड़नी होगी, समाज को जाग्रत करना होगा। अगर शुद्ध वायु लेनी है तो वातावरण में धुआं कम फैलाना होगा। 
 
आधुनिक चकाचौंध के चक्कर में कई-कई गाड़ियों के काफिले में कमी करनी होगी। ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण करना होगा। ऐसे ईंधन के उपयोग की सलाह दी जाए जिसका उपयोग करने से उसका पूर्ण ऑक्सीकरण हो जाए व धुआं कम से कम निकले। 
 
शहरों-नगरों में अवशिष्ट पदार्थों के निष्कासन हेतु सीवरेज सभी जगह होनी चाहिए। इसको पाठ्यक्रम में शामिल कर बच्चों में इसके प्रति चेतना जागृत की जानी चाहिए। इसकी जानकारी व इससे होने वाली हानियों के प्रति मानव समाज को सचेत करने हेतु हर माध्यम से इसका प्रचार-प्रसार करने की भी जरूरत है।

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