ऑस्ट्रेलिया में बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध: क्या यह एक सही कदम है?

डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी

गुरुवार, 7 नवंबर 2024 (17:10 IST)
हाल ही में ऑस्ट्रेलिया सरकार ने यह घोषणा की है कि 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाया जाएगा। यह कदम बहुत सारे लोगों के लिए चौंकाने वाला हो सकता है, लेकिन इसकी वजहें काफी समझने लायक हैं। आज के दौर में, सोशल मीडिया बच्चों के जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके कारण आने वाली मानसिक और भावनात्मक चुनौतियों के साथ-साथ समय की बर्बादी को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता।

सोचिए, जब हम खुद सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं, तो एक अजीब सी तुलना और असुरक्षा की भावना हमारे भीतर भी आ जाती है। अब कल्पना कीजिए कि वही प्रभाव बच्चों पर कितना गहरा असर डालता होगा, जब उनके पास इसे समझने और इससे निपटने का अनुभव नहीं होता। बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य उनके पूरे जीवन की नींव है। ऐसे में सोशल मीडिया के कारण उनमें असुरक्षा, चिंता, और अवसाद जैसी समस्याओं का आना सामान्य होता जा रहा है। इस प्रतिबंध से उन्हें इन चुनौतियों से दूर रखने का एक मौका मिलेगा।

सोशल मीडिया पर घंटों बिताने से बच्चों का असली दुनिया से जुड़ाव कमजोर होता जा रहा है। वह समय जो वह खेल-कूद, दोस्तों के साथ या परिवार के साथ बिता सकते हैं, वह स्क्रीन के सामने खत्म हो जाता है। असली रिश्तों से जुड़ाव और बातचीत का अनुभव उन्हें आत्मविश्वास और बेहतर सामाजिक कौशल देता है। अगर उन्हें सोशल मीडिया से थोड़ा दूर रखा जाए, तो शायद वह ज्यादा स्वस्थ तरीके से असली दुनिया से जुड़ पाएंगे।

बच्चों को अक्सर सोशल मीडिया पर साइबर बुलिंग का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका आत्म-सम्मान और मानसिक स्थिति बुरी तरह प्रभावित होती है। साइबर बुलिंग के कारण बच्चे अकेलेपन का शिकार हो सकते हैं और उनमें डर, चिंता और अवसाद बढ़ सकता है। यह प्रतिबंध बच्चों को इन खतरों से बचाने में सहायक हो सकता है, जिससे वे सुरक्षित और आत्मविश्वास से भरपूर महसूस कर सकेंगे।

सोशल मीडिया बच्चों के समय को अनजाने में ही निगल जाता है। वे अक्सर बिना किसी खास मकसद के वीडियो देखते रहते हैं, पोस्ट्स स्क्रॉल करते हैं और चैट में घंटों बिता देते हैं। यह समय जो उनके पढ़ाई, खेल, और अन्य रचनात्मक गतिविधियों में खर्च हो सकता था, वह बर्बाद हो जाता है। समय की इस बर्बादी के कारण उनका ध्यान बंट जाता है, और वे महत्वपूर्ण कार्यों में एकाग्रता नहीं रख पाते। सोशल मीडिया से दूरी उन्हें समय का सदुपयोग करने की आदत सिखा सकती है और उनकी प्रगति में मददगार हो सकती है।

बच्चों पर सोशल मीडिया प्रतिबंध के साथ ही माता-पिता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह ज़रूरी है कि माता-पिता बच्चों को यह समझाएं कि सोशल मीडिया के बिना भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है और उन्हें सुरक्षित विकल्प उपलब्ध कराएं। बच्चों के समय का सदुपयोग कैसे करें, यह सिखाना भी माता-पिता की जिम्मेदारी है ताकि बच्चों का मानसिक विकास सही दिशा में हो सके।

यह सवाल बहुत स्वाभाविक है कि क्या यह कदम हमारे देश में भी उठाया जाना चाहिए। भारत में सोशल मीडिया का प्रभाव तेजी से बढ़ा है और यहां भी बच्चों को साइबर बुलिंग, मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, और समय की बर्बादी का सामना करना पड़ रहा है। यदि हम इस दिशा में ध्यान दें और बच्चों को सामाजिक और शैक्षणिक गतिविधियों की ओर प्रेरित करें, तो हो सकता है कि हम एक बेहतर और संतुलित पीढ़ी का निर्माण कर पाएं।

कुल मिलाकर, ऑस्ट्रेलिया का यह निर्णय बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य, समय प्रबंधन और उनके भविष्य के लिए एक सकारात्मक कदम हो सकता है। सोशल मीडिया के प्रति हमारी बढ़ती निर्भरता पर थोड़ा नियंत्रण रखना शायद हमारे समाज के लिए भी फायदेमंद साबित हो। बच्चों के लिए यह एक मौका है कि वे असली दुनिया से जुड़ें, सीखें, और जीवन के वास्तविक अनुभवों को महसूस करें। एक मनोचिकित्सक के रूप में, मुझे लगता है कि बच्चों को स्वस्थ और सकारात्मक माहौल देना ही उनकी सच्ची परवरिश का हिस्सा है, और अगर इस कदम से उनका बचपन खुशहाल हो सकता है, तो यह निर्णय स्वागत योग्य है।

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