चुनावों में बदरंगी जुबान रोकनी होगी

इस बार के गुजरात चुनाव लोकतंत्र में भाषायी मर्यादा लांघने के लिहाज से याद रहेंगे। भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास में नेताओं की जुबानी जंग और कटाक्षों की लांघती सीमाओं से मर्यादा आहत हुई है। भाजपा-कांग्रेस के दिग्गज कई मौकों पर बेहद हल्केपन पर उतारू दिखे। भाषायी असंतुलन या जुबानी जंग, जो भी कहें, सबकी फेहरिस्त बहुत लंबी है। लेकिन कई वाकये ऐसे हैं, जो जल्द नहीं भूलेंगे।
 
प्रधानमंत्री ने कांग्रेस पर हमला करते हुए इंदिरा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सोनिया गांधी व राहुल गांधी पर जमकर छींटाकशी की। सोमनाथ मंदिर पर नाना तक पहुंचना, तो मोरवी में इंदिरा गांधी का नाक पर रूमाल रखने की बातें हतप्रभ करने जैसी थीं। गैरहिन्दुओं वाले रजिस्टर पर सोमनाथ में राहुल गांधी का नाम होना और इसी को हिन्दुत्व की ओट में घसीटने की कोशिशों ने खूब तूल पकड़ा, वहीं गुजरात में जातीय पहचान पर भी जमकर सियासत हुई, जो नई नहीं थी।
 
प्रचार मैदान में उतरे प्रधानमंत्री मोदी की पहली जनसभा- 'मैं हूं विकास, मैं हूं गुजरात' के नारों से शुरू होकर आगे 'सॉफ्ट हिन्दुत्व' अभियान में बदलती गई। कांग्रेस ने भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र निर्माण में बाबा साहब आंबेडकर की भूमिका कमतर करने हेतु कांग्रेस के नाकाम प्रयासों का जिक्र छेड़ा, तो फौरन मणिशंकर अय्यर ने उन्हें ही 'नीच', असभ्य' और 'गंदी राजनीति करने वाला' कह दिया। प्रधानमंत्री ने भी बिना देरी किए मणिशंकर के बयान को खूब भंजाया और कहा कि मुझे एक बुद्धिमान कांग्रेसी ने 'नीच' कहा। यही कांग्रेस की मानसिकता है, उनकी भाषा है लेकिन हमारा अपना काम है, लोग वोटों से इसका जवाब देंगे। गुजरात और महान भारतीय परंपराओं का अपमान बताते हुए मुगलाई मानसिकता और सल्तनती मानसिकता तक कहा।
 
पालनपुर चुनावी रैली में प्रधानमंत्री ने कहा कि पाकिस्तान अहमद पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री देखना चाहता है इसीलिए मणिशंकर अय्यर के घर कुछ दिन पहले एक गुप्त बैठक हुई जिसमें पाकिस्तानी उच्चायुक्त, पूर्व विदेश मंत्री, हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मौजूद थे। इस पर कांग्रेस की सफाई आई कि यह निजी मुलाकात थी और दोनों कॉलेज के जमाने के दोस्त हैं। भारत-पाक रिश्तों की बेहतरी पर बातें जरूर हुईं। तिलमिलाया पाकिस्तान कहां चूकता? फौरन उसके प्रवक्ता डॉ. मोहम्मद फैसल ने ट्वीट किया कि अपनी चुनावी बहस में हमें न घसीटें, साजिशों की बजाय अपने दम पर चुनाव जीतें।
 
आखिरी दौर में जहां राहुल गांधी के इंटरव्यू को मतदान से ठीक पहले गुजराती टीवी चैनलों में दिखाने को चुनाव आयोग ने कानून एवं आचार संहिता का उल्लंघन माना, राहुल और चैनलों को नोटिस दिया तो कांग्रेस बिफर पड़ी, चुनाव आयोग खासकर मुख्य चुनाव आयुक्त को प्रधानमंत्री की कठपुतली और निजी सचिव जैसे काम करने वाला तक बता डाला, वहीं अहमदाबाद के एक मतदान केंद्र पर वोट देकर काफिले के साथ जाते प्रधानमंत्री पर कांग्रेस ने आचार संहिता उल्लंघन के आरोप लगाए और कार्रवाई की मांग की।
 
गुजरात चुनाव में भला उप्र के मुख्यमंत्री योगी कहां पीछे रहते? उन्होंने कहा कि इस चुनाव में गुजरातियों ने दो काम अच्छे से करा दिए। पहला डॉ. मनमोहन सिंह का मुंह खुलवाया तो दूसरा राहुल गांधी को मंदिर-मंदिर जाना सिखा दिया। जुबानी जंग में सोशल मीडिया क्यों पीछे रहता?
 
जहां कांग्रेस युवा विंग मैगजीन के ट्विटर हैंडल पर प्रधानमंत्री को 'चायवाला' बताकर बहस शुरू की गई तो फौरन मोदीजी ने कहा, 'हां, मैंने चाय बेची है, देश तो नहीं बेचा।' भला लालू यादव इसमें कहां पीछे रहते? ट्वीट पर लिखा कि 'साहब, आपने चाय नहीं, चाह बेच दी। अब देश चाय और चाह का अंतर समझ गया है।'
 
कांग्रेस पर तंज करते हुए अभिनेता और भाजपा सांसद परेश रावल भी कूदे और ट्वीट किया कि चाय से ज्यादा कांग्रेस उबल रही है, मोदीजी को देखकर, वहीं भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने ट्वीट कर दिया, 'हमारे 'वन मैन शो और टू मैन आर्मी (मोदी व शाह)' से विनम्र निवेदन है कि अगर सभी 'ट्रिक, नखरे, गलतबयानी और लंबे वादे' खत्म हो चुके हैं तो कृपया दिल्ली घर लौट आइए।'
 
पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, तो दलित नेता जिग्नेश मेवाणी भी खूब चर्चित रहे, वहीं अल्पेश ठाकुर का बयान 'मोदीजी मशरूम खाते हैं, जो ताईवान से आती है, इसमें 1 की कीमत 80 हजार रुपए है और दिन में 5 यानी 4 लाख रुपए के मशरूम खाकर वे गोरे हुए हैं', पर खूब चुटकियां ली गईं।
 
ऐसा लगता है कि जुबानी जंग में गुजरात अहम मुद्दों की चर्चाओं से भटकता रहा। पक्ष-विपक्ष सभी एक-दूसरे पर निशानेबाजी और शब्दों के तरकश छोड़ते रहे। क्या चुनाव युद्ध में बदल गए हैं? घोषणा-पत्र केवल कागजी इबारत रह गई है? मुद्दे हवा होते जा रहे हैं? चुनाव केवल प्रोपेगंडा हो गए हैं। 'गेमचेंजर ट्रिक्स' और 'इलेक्शन वॉर रूम' जैसे शब्द लोकतंत्र पर भारी पड़ रहे हैं? जाति, धर्म, संप्रदाय नई पहचान बन रही है?
 
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की पवित्रता और प्रतिबद्धता के लिए अब सोचना ही होगा। कहीं बादशाहत को बरकरार रखने, तो कहीं सत्ता हथियाने के नित नए हथकंडों से लोकतंत्र का चीरहरण नहीं रुका तो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहीं बदनुमा न हो जाए? इस दिशा में सबको मिल-बैठकर सोचना ही होगा!
 

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