कोरोना वायरस यकीनन एक वैश्विक महामारी है लेकिन 21 वीं सदी में समूची दुनिया के लिए शायद ही इससे बड़ा संक्रमण काल पहले कभी आया हो। दुनियाभर के लिए नाजुक दौर में जरूरत है धैर्य और संयम की। यह भी सच है कि पहले से ही मंदी झेल रही वैश्विक अर्थ व्यवस्था को और भी ज्यादा चोट मिलने वाली है।
वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन की मानें तो यह महामारी दुनिया के 186 देशों को अपनी चपेट में ले चुकी है जिसका सीधा मतलब यह हुआ कि पृथ्वी का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं है। दुनियाभर में हर रोज कोरोना मरीजों की संख्या में तेजी से वृध्दि हो रही है। प्रभावितों और मौत के आंकड़े मिनट दर मिनट बढ़ रहे हैं। इसी बुधवार दोपहर तक मोटे तौर पर करीब साढ़े चार लाख से ज़्यादा लोग इस वायरस की जद में आ चुके थे वहीं मरने वालों की संख्या 22 हजार के पास पहुंच चुकी है। भारत में भी मरीजों की तादाद बढ़ रही है व मृत्यु का आंकड़ा भी खिसक रहा है।
वायरस का कहर कब थमेगा, किसी को नहीं पता। लेकिन बड़ी चिन्ता यह है कि इसका प्रभाव कब तक रहेगा? मेडिकल साइंस के पास भी इसका सटीक जवाब नहीं है। दावा जरूर किया जा रहा है कि करीब एक लाख लोग ठीक भी हो चुके हैं लेकिन वहीं कुछ आंकड़े बेहद डराने वाले हैं क्योंकि कोरोना वायरस की बीमारी से ठीक हुए लोग दोबारा इस संक्रमण के शिकार में आ रहे हैं। यह स्थिति वाकई बेहद चिन्ताजनक और खतरनाक है। शायद मेडिकल साइंस भी किंकतर्वविमूढ़ वाली स्थिति में है। पहले यह मानकर चला जा रहा था कि एक बार कोरोना वायरस जैसे संक्रमण के बाद इलाज से उस मरीज के शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है जिसके कारण दोबारा यह वायरस अटैक नहीं कर पाता है। लेकिन जापानी मीडिया के खुलासे के बाद चिन्ता बहुत बढ़ गई है क्योंकि कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं जिसमें कोविड 19 से पीड़ित जो पूरी तरह से ठीक होकर घर गए थे और सार्वजनिक जगहों पर जाने व परिवहन का उपयोग के बाद फिर से इसका शिकार हो गए। इसके बाद अब यह नई मुसीबत अलग खड़ी हो गई क्योंकि यह माना जा रहा था कि मरीज एक बार ठीक हो जाने के बाद दोबारा इसका शिकार नहीं होगा। लेकिन यह भ्रम टूट गया और कुछ ही हफ्तों में ऐसी घटनाएं सामने आने लगीं जिसने चिकित्सा शोधार्थियों का ध्यान ही भटका दिया। अभी इसकी दवाओं को लेकर पूरी तरह से कोई सफलता मिलती कि दोबारा वायरस का संक्रमण एक ही व्यक्ति पर होने की घटना ने निश्चित रूप से मायूस किया है।
स्पेनिश नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी (सीएसआईसी) में वायरस पर शोधकर्ता लुई एखुआनेस के सामने कम से कम 14 प्रतिशत ऐसे मामले हैं जिनमें पहले कोरोना वायरस से ठीक हुए लोगों में बीमार होने पर टेस्ट दोबारा पॉजिटिव पाया गया। लुई एखुआनेस का मानना है कि वास्तव में ऐसा लगता है कि संक्रमण दोबारा तो नहीं हुआ लेकिन पूरी तरह से जिसे हम अमूमन जड़ से खत्म होना कहते हैं, खत्म नहीं हुए वायरस शरीर में खुद को बढ़ाता रहा और दोबारा सामने आ गया।
चिकित्सा विज्ञान की भाषा में इसे बाउन्सिंग बैक कहते हैं। ऐसा इसलिए भी होता है कि कई बार शरीर के ऐसे टीशू में कुछ वायरस छिपे रह जाते हैं जहां शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति का असर कम पहुंचता है इसलिए ये बाउन्सिंग बैक करते हैं। इनका मानना है कि व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक ताकत कोरोना वायरस से हर वक्त लड़ने को तैयार नहीं होती जिस कारण जैसे ही इंसान की रोग प्रतिरोधक क्षमका थोड़ी भी कम हुई नहीं कि शरीर में पहले ही मौजूद वायरस उस पर हमला कर देता है।
वहीं कोरोना वायरस को तापमान बढ़ने के साथ असरहीन होने के दावे को लेकर भी वैज्ञानिकों की अलग-अलग सोच है। कुछ का मानना है कि यह 60 से 70 डिग्री सेल्सियस के तापमान तक नष्ट नहीं हो सकता। वहीं यह भी सामने है कि 2002 में नवंबर में सार्स महामारी शुरू हुई थो जो जुलाई में खत्म हो गई थी। लेकिन इस बात के कोई पुख्ता सबूत भी नहीं है कि यह वायरस तापमान बढ़ने के चलते ही खत्म हुआ था। वहीं कुछ का मानना है कि चूंकि गर्मी में थूक या छींक की लगभग अदृश्य सी छोटीं बूंदे जल्दी सूख कर चिपकी रह जाती हैं इसलिए वायरस भी आगे नहीं बढ़ पाता है और दम तोड़ देता है। अब कोरोना वायरस पर गर्मी का क्या असर होगा, अभी कह पाना मुश्किल है। इसका मतलब यह हुआ कि तेजगर्मी का इंतजार केवल एक मौका ही है।
कोरोना के विश्वव्यापी संक्रमण के बीच यह भी हकीकत है कि फिलाहाल नए कोरोना यानी कोविड 19 वायरस की ना कोई पुख्ता दवा ही है और न अब तक किसी भी प्रकार के टीके का ईजाद हो पाया है। कुछ देशों में इस पर तैयार की जाने वाली दवाओं का प्रयोग जरूर चूहों मे किया जा रहा है। जबकि अमेरिका ने इंसानों पर प्रयोग किया है लेकिन सार्वजनिक तर पर दवा अभी भी दूर है। इसके अलावा जापान, इटली, स्पेन, सिंगापुर, भारत सहित कई देश अपने स्तर पर रात-दिन दवा की शोध में जुटे हुए हैं। लेकिन उससे भी बड़ी हकीकत यह है कि इसमें वक्त लगेगा जिसके नतीजे जून के आसपास मिल पाएंगे। इसका मतलब यह हुआ कि अभी कम से 60 से 90 दिन और लग सकते हैं जब इसकी सर्वमान्य और सर्व स्वीकार्य दवा दुनिया के सामने हो। वहीं यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अभी कोरोना की जद में ग्रीनलैंड जैसे ठंडे देश तो दुबई जैसा गर्म शहर तो है ही वहीं दिल्ली जैसे सूखे शहर तो मुंबई जैसे आर्द्रता वाला शहर भी है। ऐसे में भविष्य में क्या होगा इसका इंतजार करना होगा।
कोरना महामारी को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 21 दिन अर्थात 14 अप्रेल तक का लॉकडाउन की लक्ष्ण रेखा खींच एक तरह से अघोषित कर्फ्यू का लिया गया फैसला व्यव्हारिक तौर पर सही और कारगर नजर आ रहा है। लेकिन इसको लेकर पूरे देश में जिस तरह का माहौल बना है वह बेहद चिन्ताजनक है। कोविड 19 के फैलने की मुख्य वजह छुआछूत है और केवल इसीलिए पूरे देश को लॉकडाउन किया गया है। हालाकि जरूरी वस्तुओं की बिक्री पर छूट तो है लेकिन दूकानों पर जमा हो रही भीड़ की जिनती तस्वीरें पहले दिन देश के सामने आईं वो हैरान करती हैं। ऐसा लगता है कि इसको लेकर कोई साफ दिशा निर्देश न होने से हर कहीं अपने-अपने तरीके से लॉकडाउन का पालन कराया जा रहा है।
कई जगह जरूरी सामानों की बिक्री की कुछ घण्टे की छूट के दौरान जमा होने वाली भीड़ बेहद चिन्ताजनक है। सवाल यही है कि संक्रमण रोकने खातिर भीड़ भाड़ से बचने व परस्पर दूरी बनाए रखने के लिए ही लॉकडाउन रखा गया है। ऐसे में छूट के दौरान होने वाली भारी भीड़ ही इसका उलंघन है तो बचाव कैसे सुनिश्चित होगा? क्या छुआछूत से फैलने वाला कोरोना चंद घण्टे खुलने वाली दूकानों में होने वाली भारी भीड़ से नहीं फैलेगा? क्या दूकानदार और ग्राहक इससे अछूता रहेंगे और उससे भी बड़ी बात यह कि क्या कोरोना संक्रमण को पता है कि छूट के दौरान उसे इंसानों पर आक्रमण नहीं करना है? कुल मिलाकर प्रधानमंत्री की पहल बेहद सराहनीय है लेकिन देश भर में तमाम जगह स्थानीय प्रशासन कैसे इस बात से बेखबर है कि लॉकडाउन का मकसद ही भीड़ रोकना है बढ़ाना नहीं। यही समस्या गंभीर है और इससे तत्काल निपटना चुनौती है फिर निपटना तो होगा।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)