सोचा जाए या समझा जाए तो कोविड-19 ने हमें बहुत-सी चीजों के बारे में सोचने पर मजबूर किया है। अगर संसार का हर व्यक्ति सोचे या अपने को टटोले, तो अपने अंदर एक डर पाले दिखेगा। जहां तक अगर आधुनिक समाज को समझें तो वह भविष्य के प्रति बड़ा ही आशंकित दिखाई देता है।
अगर वहीं हम प्राचीन भारत को पढ़ें तो उनको एकांत बहुत ही प्रिय था। मुनि लोग कई वर्षों तक जंगलों में जाकर तपस्या करते, वह भी नई ऊर्जा प्राप्त करने के लिए। इस विचारधारा का तो जैसे नामोनिशान ही मिट चुका है और हम सब दाल और रोटी की चिंता करते बस जी रहे हैं।
थोड़ा-बहुत क्या लॉकडाउन हुआ, सबको यह लग रहा है कि हमारा जीवन ही तबाह हो गया है, हमारा भविष्य कैसा होगा? जरा सोचें कि हम कितना आसक्तिपूर्ण जीवन जी रहे हैं?
वहीं हजारों वर्षों पहले एकांत जीवन का कितना महत्व होता था। उसमें भी विश्व कल्याण के बारे में सोचा जाता था। अभी तो हमारी सोच अपने तक ही सीमित रह चुकी है। अभी तो यह सुनने में आ रहा है कि लोगों में मानसिक समस्या उत्पन्न हो रही है, घरेलू हिंसा भी बढ़ रही है। हमारी आदत देने की नहीं है, बस कुछ पाने भर की ही रह गई है। इतना कुछ हुआ कि हम चिंता में घिर जाते।
यही समय है, जब हम अपने जीवन जीने की परिभाषा में बदलाव करें। सबको यही लग रहा है कि कोविड-19 खत्म होने के बाद सब ठीक हो जाएगा, परंतु समस्याएं खत्म नहीं होगी। अभी समाज में और भी कई प्रकार की समस्याएं सामने आने वाली हैं। मुख्य समस्या है आदमी का लालचीपन होना और दूसरों पर अधिकार जमाना।
सभी तरफ से यह सुनने में आ रहा कि नदियों का पानी साफ हो गया, वातावरण शुद्ध हो गया है। ये सब बातें हमें क्या संकेत दे रही हैं? हमें धरा के बारे में सोचना पड़ेगा। आने वाली पीढ़ी के बारे में सोचना पड़ेगा। विश्वभर के लोगों को यह सोचना चाहिए कि हमें आधुनिकीकरण को किस हद तक अपनाना चाहिए और हम देख भी रहे हैं आधुनिकीकरण का दुष्परिणाम कोविड-19 का आविष्कार।
मेरे विचार से कोविड-19 समाज के लिए अभिशाप न होकर वरदानस्वरूप आया है। यही मौका है कि हम संभल जाएं और आने वाली पीढ़ी को अच्छी धरा दे जाएं।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)