पूना में एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करनेवाली स्नेहा का शुरू से सपना था, कि शादी के बाद वो सिर्फ पति के साथ रहे। दोनों कमाएं, खाएं,घूमें, मौज करें। परिवार में अन्य सदस्यों का बस मेहमानों की तरह हस्तक्षेप हो।
संयोग से हुआ भी ऐसा ही। उसका पति गौरव भी पूना में ही था जबकि सास ,ससुर,ननद इंदौर में और पीहर रतलाम में। शादी के चार साल बाद और लॉकडाउन से एक माह पहले स्नेहा ने बेटी को जन्म दिया। पति-पत्नी दोनों ने तय किया था कि स्नेहा एक, दो महीने रतलाम रहेगी फिर वे बेबी को लेकर पूना चले जाएंगे । कंपनी की ओर छह माह की छुट्टी मिलने ही वाली है,उसके बाद देखा जाएगा।
अचानक लॉकडाउन लग गया और सब अपनी जगह बंद हो गए। स्नेहा पीहर में तो और पर गौरव पूना में । रोज वीडियो कॉल पर बातें तो हो जाती पर नये नये पिता बने गौरव का मन अपनी बेटी को गोद में लेने के लिए बैचेन हो जाता।
तीन माह बाद जब थोड़ी राहत मिली तो गौरव फौरन बेटी से मिलने आया। ससुराल में अधिक समय रुकने के बजाय वह स्नेहा और बेटी को लेकर इंदौर अपने माता-पिता और बहन के पास आ गया। स्नेहा की भी मजबूरी थी। इतने छोटे बच्चे को अकेले संभालने की आदत नहीं थी। नन्ही को देख दादा ,दादी और बुआ की खुशियां सातवें आसमान पर पहुंच गईं। उसके आते ही घर में किलकारियां गूंजने लगी। नन्ही के लिए रोज़ कोई नया सामान आता। सब उसके सोने,उठने,रोने का ख्याल रखते। ननद जो रोज देर से उठती थी, अब जल्दी उठकर भतीजी के जागने का ही इंतज़ार करती।
छह महीने गुजरते ही स्नेहा की कंपनी से ज्वाइन करने का आदेश आया। स्नेहा ने घर में बात की सास ने कहा,तुरंत ज्वाइन करो। वर्क फ्रॉम होम ही तो है, हम सब हैं नन्ही को संभालने के लिए। तो ससुर जी ने तुरंत घर के एक कमरे में उसके बैठने और लेपटॉप रख काम करने की व्यवस्था कर दी। स्नेहा को अपनी सोच पर अफसोस हो रहा था...
सबके होने से उसे बेटी को बड़ा करने में बहुत सुविधा और सहयोग मिला। इस बीच एक बार उसकी तबियत भी खराब हुई । तब उसने रतलाम जाने का कहा तो सभी ने मना कर दिया। कहा,' चिंता मत करो। हम सब हैं न। तुम्हें भी देख लेंगे और नन्ही को भी। सुख दु:ख हर स्थिति में सब मिलकर ही रहेंगे।'
अब तो बेटी सालभर से ऊपर की हो गई है। स्नेहा और गौरव दोनों अपनी कंपनी के लिए घर से काम कर रहे हैं। दादा - दादी नन्ही को खाने, सुबह फ्रेश होने, सब तरह का खाना खाने की आदत डाल रहे हैं। ननद उसे कभी गीत सुनाती है तो कभी कहानी सुनाती है। बड़ों के बीच संस्कारों के साथ बड़ी होती बेटी और सुविधा जनक तरीके से घर से चलते काम को देखते हुए स्नेहा लाकडाउन को धन्यवाद देती है। जिसके कारण उसके नजरिये में बदलाव आया।