कोरोना काल की कहानियां : कोरोनावायरस कमजोर हो सकता है अगर आप ताकतवर हो...

मुझे सुगंध नहीं आ रही है । क्या हो गया होगा ....कहीं ..कहीं..ये वो तो नहीं ? अरे नहीं , नहीं , वो नही हो सकता । वो अपने ही कुछ लक्षणों के साथ आता है ..चलो छोड़ो सुगंध आ जायेगी थोड़ी देर में ....तभी एक आवाज़ आई --- 
 
अरे ओ मेडम अब आपको सुगंध नहीं आएगी।
 
मैंने पीछे मुड़कर देखा तो कोरोना महाशय खड़े थे । मैंने घबराकर कहा --- तुम , तुम यहाँ कैसे ? 
 
वो बोले तुमने बुलाया और हम चले आए । 
 
उसकी बेसुरी राग पर गुस्सा आया , जी चाहा भगा दूँ पर वो कुर्सी पर बैठ गया , मुझे देख मुस्कुराते हुए बोला आओ बैठो , खड़ी क्यों हो ? अब तो आपके साथ ही हूँ। 
 
मैं अनमनी सी बैठ गई। 
 
रोज ही इसको झेलना है। अकेले कमरे में। मैंने कमरे को व्यवस्थित किया । पतिदेव और बेटी को दुखी मन से कमरे से बाहर किया। वो मुस्कुरा रहा था , फिर गाने लगा , हम तुम एक कमरे में बंद हो ...अब मेरा गुस्सा फुटकर निकला । जोर से उसे डाँटा पर वो मुस्कुरा रहा था। 
 
वो पूरा दिन मुझे खुद पर और उस पर गुस्सा आ रहा था। पर कुछ कर नहीं सकती थी। 
 
शाम को डॉक्टर के क्लीनिक गई तो वो थोड़ा घबराया । मैं उसे देख मुस्कुरा दी । फिर रात को जब मैंने दवाइयां ली तो बोला कुछ नहीं होगा इनसे , मुझमें बहुत ताकत है। मैं जाऊँगा नहीं। 
 
वैसे तो मैं मस्तीखोर हूँ पर यूँ शांत प्रवृत्ति की हूँ , इतनी शांत की किसी के उकसाने का प्रभाव नहीं पड़ता जो मन में होता है वो करती हूँ। वैसे बहुत ज्यादा ज़िद्दी नहीं हूँ , कर भी लेती हूँ ,  खैर जब उसने ऐसा कहा कि मैं नहीं जाऊँगा तो भिया अपन ने भी बोल दिया कि अब देख तू , अब तुझे पता चलेगा। वो फिर मुस्कुरा दिया पर इस बार मुझे गुस्सा नहीं आया , मेरे चेहरे पर भी कुटिल वाली मुस्कुराहट ही आई कि इसे ठिकाने लगाना है।
 
मैंने उससे पूछा कि तुम आए कैसे मैंने तो मास्क भी लगाया , सेनेटाइज भी किया, सारे नियमों का पालन किया फिर कैसे आए तुम ? वो बोला तुमने किया पर बाहर वालों ने तो नहीं किया होगा न। अब तुम ही गई कार्यक्रमों में। भले ही मास्क लगाया पर फोटो खिंचवाते वक्त तो बड़े शान से बिना मास्क के खिंचवाया ना। अब तुम ही लोग चिल्लाते हो कि मैं चुनावों , रैलियों , जुलूसों में नहीं जाता , मुझ पर जोक्स बनाते बड़े बड़े लेख लिखते पर ये क्यों नहीं समझते कि मैं तो मंच पर भी रहता हूँ, तब तो बड़े होशियार बनकर कहते कि हर जगह मास्क लगाया बस मंच पर ही उतारा। समझे कि नहीं। 
 
मैं आश्चर्य से और शर्मिंदा हो उसकी बात सुन रही थी। गलती तो हुई थी।
 
मैंने दवाइयां ली और बिस्तर पर सोई ही थी कि उस दानव ने उठा दिया , वो मुझमें घबराहट , बेचैनी करने लगे। मुझे बिस्तर से उठने नहीं दे रहे था , मुस्कुरा रहा था। मैं उठी और मैंने भाप लेने की कोशिश की तो इसने फिर अपना खेल दिखाया और मेरी नाक को जैसे पकड़ कर चोक कर दिया। मैं थोड़ी घबराई पर पूरी ताकत से गर्म भाप को अंदर किया और किया और किया, करती चली गई , माथे पर पसीना आ गया था । अब वो थोड़ा रुका और मैं हांफने लगी। उसकी और देखा तो वो भी हांफ ही रहा था शायद। बिस्तर पर तकिए के सहारे बैठकर  कम आवाज में मोबाईल पर गायत्री मंत्र लगा लिया। वो चुप था।
 
 मुझे मंत्र सुनते सुनते कब नींद लगी नहीं जानती। सुबह करीब ग्यारह बजे मेरे प्यारे जीवनसाथी ने आवाज़ लगाई , उठी तो देखा वो गर्म चाय लिए खड़े हैं। बस फटाफट ब्रश कर चाय पी। न अदरक का स्वाद न मसाले का ही आया बस मीठापन लग रहा था तो तसल्ली हुई कि चलो कम से कम  मीठा वाला स्वाद तो आ रहा है। पतिदेव ने इशारों में पूछा कैसी बनी चाय और मैंने मुस्कुराकर कहा जो मैं बनाती हूँ उससे लाख गुना अच्छी। यही वो छोटे छोटे पल थे जिन्होंने हमारे प्यार को और मजबूत कर दिया। चाय पीकर, मोबाइल उठाया वाट्सएप , फेसबुक का दौरा किया और लेट गई । 
 
फिर वही दवाइयां, नाश्ता, फिर दवाई , भोजन फिर दवाई ...यह क्रम हर दिन चलता रहा। दवाइयां असर कर रही थी। थोड़ा ठीक लग रहा था। कोरोना कहीं दिख भी नहीं रहा था अब। मुझे लगा कि भाग गया शायद। छह दिन भी बीत गए थे उससे लड़ते , उसे हराते तो हिम्मत आ गई थी। सातवें दिन सुबह की चाय और नाश्ते के बाद जब मैं बैठकर उत्त्पल दत्त जी, फारुख शेख , दीप्ति नवल  की फ़िल्म किसी से ना कहना देख रही थी। उत्त्पल दत्त जी मुझे बहुत अच्छे लगते हैं और साथ में अगर फारुख शेख और दीप्ति नवल हो तो फिर क्या कहना। तो बस मैं देख रही थी हँस रही थी कि अचानक मेरी सांस रुकने लगी और  उस दानव के आसपास होने का अहसास हुआ...
 
मैं घबराई कि ये तो चला गया था , वापस आ गया क्या ? आँखे बंद की तो श्वांस नली में बैठा दिखा। फिर वही कुटिल हँसी हँसने लगा। मुझसे बोला .. तुमने क्या सोचा था कि मैं चला गया , ऐसे नहीं जाऊंगा। बहुत हँसी आ रही है न तुमको , बहुत ताकतवर बनती हो ना , अब देखो मैं क्या करता हूँ। आज तो तुम्हें मैं इस कमरे से निकालकर अस्पताल के दर्शन करवा ही देता हूँ...  
 
मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी। मैंने थोड़ी थोड़ी रुकती सांसों को अनुलोम विलोम और ॐ के उच्चारण से नियंत्रित करने की कोशिश की पर वो नहीं हो रही थी। मैंने ऑक्सीमीटर लगाया तो ऑक्सीजन लेवल 96 था , थोड़ी राहत मिली। पर सांस जैसे रुकती ही जा रही थी और ऑक्सीजन लेवल 92 पर आ गया था । मैंने पतिदेव और बेटी को आवाज़ लगाई दोनों दौड़कर आये और मेरी हालत देखकर घबरा गए ।

बेटी बोलती कि मम्मा आप तो बहादुर हो , घबराओ नहीं। पतिदेव ने कहा डॉक्टर को बुला लेते हैं। मैंने कहा नहीं , बस आप गर्म पानी ला दो बोतल में खत्म हो गया है और बेटी को कहा कि विक्स इन्हेलर ला दे। गर्म पानी जैसे तैसे पीया और इन्हेलर से सांस खींचने लगी पर छाती में कुछ भारीपन सा लग रहा था। दोनों मेरी तरफ कातर दृष्टि से देख रहे थे , मैं जबरजस्ती मुस्कुरा दी कि मुझे कुछ नहीं होगा अब ठीक हूँ। दोनों ने एक साथ कहा कि मुस्कुराकर धोखा मत दो हमें मालूम है कि तुम्हें बहुत तकलीफ हो रही है। 
 
बस इन दोनों के लिए मैंने एक बार जोर से सांस खींची , और खिंचती चली गई, अंदर से वो दानव मेरी सांसे रोक रहा था बाहर से मैं पूरी ताकत से खींच रही थी धीरे धीरे उसकी कुटिल हँसी बंद हो गई वो टूट गया और मैं जीत गई। इस जीत ने मुझमें दृढ़ता और आत्मविश्वास भर दिया। मैं जोर से बोली कि तू तो गया अब। 
 
बस बहुत हो गया अब देख , अपमान कैसा होता है अब तू देखेगा। हम पक्के इंदौरी है भिया जो अड़ता है उसे पूरा ही निपटाते हैं। बस उस दिन के बाद वो धीरे धीरे कमजोर होने लगा था, मैं रोज शाम को यु ट्यूब पर गाने लगा डांस करती , गाने गाती खूब मस्ती करती। वो उठने की कोशिश करता पर उसे गिरा देती। वो मर रहा था मैं जी रही थी। मेरे साथ मेरे माँ , पापा , भाई भाभी , मेरे बच्चे , पतिदेव मेरा पूरा परिवार जी रहा था हँस रहा था। 
 
इन सबकी हँसी, सबकी खिलखिलाहट ही मेरे जीवन का सौंदर्य रही है मेरी ताकत रही है। अब वो दानव मुझे दूर जा चुका था, मैं स्वस्थ थी। 
 
मैंने एक बात महसूस की कि आपकी इच्छा शक्ति मजबूत होने के साथ ही परिवार का पूर्ण सहयोग, प्रेम होना चाहिए। अगर परिवार, मित्र, पड़ोसी डटकर आपके साथ खड़े हैं तो दुनिया की कोई ताकत आपको नहीं हरा सकती। 
 
ये एक वायरस है जिसे सिर्फ सकारात्मकता के साथ ही मारा जा सकता है। 
 
ज़िंदगी तो खूबसूरत है ही बस आप मुस्कुराते रहिए....

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