कोरोना का दंश पूरे देश ने ‘सामूहिक भोगा’ तो वैक्‍सीन का वितरण ‘सबसे पहले और नि:शुल्‍क’ की तर्ज पर क्‍यों हो?

कोरोना सामुहिक आपदा है, इसलिए इसकी वैक्‍सीन का फायदा भी सामुहिक स्‍तर पर मिलना चाहिए, वोटबैंक के लिए सबसे पहले और निशुल्‍क की तर्ज पर नहीं।

कोराना वायरस की जिस वैक्‍सीन का पूरी दुनिया में इंतजार है, कमाल की बात है उसे लेकर भारत में राजनीति शुरू हो गई है। इसी राजनीति की वजह से वैक्‍सीन की उपलब्‍धता और उसके ड‍ि‍स्‍ट्रीब्‍यूशन को लेकर अभी से संशय के बादल मंडरा गए हैं।

दरअसल हाल ही में नि‍र्मला सीतारमण ने कहा है कि ब‍िहार में वैक्‍सीन का न‍िशुल्‍क वितरण किया जाएगा। ठीक इसके बाद मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शि‍वराज सिंह चौहान ने भी अपने राज्‍य में गरीबों को पहले वैक्‍सीन देने की घोषणा कर डाली। तमि‍लनाडु में भी कुछ ऐसा ही कहा गया। ब‍िहार में चुनाव है, वहीं मध्‍यप्रदेश में उप-चुनाव है। इसके पीछे शायद यही चुनावी हित साधने की मंशा है। हालांकि यह तब किया जा रहा है जब वैक्‍सीन का अभी कहीं अता-पता नहीं है। जाहिर है यह एक पॉलिट‍िकल शगुफा है।

ऐसे में वैक्‍सीन आएगी तो उसके राजनीतिकरण को लेकर संशय की घटाएं पहले से ही घि‍रने लगी हैं। मुमकिन है ऐसे में एक राज्‍य को पहले वैक्‍सीन मिल जाए और दूसरे राज्‍य के पास देरी से पहुंचे। एक वर्ग तक वैक्‍सीन पहुंच जाए तो दूसरा वंच‍ित ही रह जाए।

हाल ही में भाजपा के सोशल मीड‍िया प्रमुख अमित मालवीय ने कहा है कि देश के राज्‍य वैक्‍सीन वितरण को लेकर स्‍वतंत्र हैं। यानी वे वैक्‍सीन के वितरण को लेकर अपने स्‍तर पर फैसले ले सकते हैं। ऐसे में यह और भी साफ हो गया है कि इसमें केंद्र का कोई हस्‍तक्षेप नहीं होगा।

कोरोना एक राष्‍ट्रीय आपदा है। अब तक केंद्र के स्‍तर पर इससे निपटने के उपाय किए जाते रहे हैं, लेकिन इसकी दवाई के वितरण को लेकर जो बयान अब आ रहे हैं, उनमें वोट बैंक की राजनीति की बू आ रही है। इसलिए यह संभव है कि इसमें राज्‍य स्‍तर पर धांधलियां हों। इसकी संभावना इसलिए ज्‍यादा है, क्‍योंकि वैक्‍सीन के वितरण की वहीं निशुल्‍क और पहले देने की घोषणा की गई है, जहां-जहां चुनाव है।

केंद्र और राज्‍यों की यह वितरण प्रणाली विसंगतियों को जन्‍म देगी और यह देश के किसी भी राज्‍य हिस्‍से और किसी भी वर्ग के लिए ठीक नहीं है, क्‍योंकि कोरोना के दंश को पूरे देश ने एक साथ और एक जैसा भोगा है, ऐसे में इसके उपाय का फायदा भी पूरे देश को एक साथ और एक जैसा मिलना चाहिए, बगैर किसी पक्षपात के। लेकिन जिस तरह से इसका नियंत्रण राज्‍यों के हाथों में जाता दिख रहा है और केंद्र इसमें दखलअंदाजी नहीं करेगा तो ऐसे में पक्षपात की आशंका नजर आ रही है।

केंद्र को देखना चाहिए कि कोरोना की महामारी सामुहिक आपदा है इसलिए इसके उपचार के प्रबंध भी सामुहिक ही होना चाहिए सबसे पहले और मुफ्त की तर्ज पर नहीं।

नोट: इस लेख में व्‍यक्‍त व‍िचार लेखक की न‍िजी अभिव्‍यक्‍त‍ि है। वेबदुन‍िया का इससे कोई संबंध नहीं है।

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