दिल्ली एमसीडी चुनाव एक 'महासंग्राम' है

साल 2017 के दिल्ली के तीन नगर निगम चुनाव की सरगर्मिया तेज हो गई है। चुनाव में दिल्ली की तीन राजनीतिक पार्टियों के लिए ए चुनाव प्रतिष्ठा का प्रश्न ही नहीं बल्कि एक महासंग्राम बने हुए है। यूपी, उत्तराखंड की जीत से गदगद बीजेपी इस चुनाव में तकनीक, मैन पॉवर और यूथ पॉवर का गजब संयोग करने वाली है। वहीं कांग्रेस दूरदर्शिता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी के संकल्प के साथ चुनाव में उतर रही है। तीसरी पार्टी आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव जिस प्रचण्ड बहुमत से जीती थी, उसका खुमार उस पर अभी भी सवार है। पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद इस पार्टी ने इस चुनाव के लिए कमर कस ली है। 
 
माहौल को देखते हुए तो यही प्रतीत होता है कि सभी दल राजनीति नहीं, स्वार्थ नीति चला रहे हैं। दिल्ली की आम जनता की बुनियादी समस्याओं का हल एवं उसकी खुशहाली का रास्ता इन चुनावों से होकर ही जाता हुआ दिखता है। यदि इन कांटों के बीच कोई पगडंडी नहीं निकली तो दिल्ली का जीना दूभर हो जाएगा। 
दिल्ली में एमसीडी के चुनाव का माहौल कुछ ऐसा बन चुका है कि लगता है जैसे यह एमसीडी के नहीं, लोकसभा या विधानसभा के चुनाव हों। चुनाव के घोषणा के साथ ही सभी प्रमुख पार्टियों में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। सभी चुनाव की रणनीति बनाने में लग गए हैं कि कैसे उनकी ही पार्टी का एमसीडी के चुनाव में परचम लहराया जाए। चुनाव जीतने की रणनीति तो हर तरफ दिखाई दे रही है, लेकिन दिल्ली की समस्याओं से मुक्ति का रोडमैप अभी भी सामने नहीं आ रहा है। 
 
दिल्ली लम्बे समय से पानी, बिजली, प्रदूषण, गंदगी ट्रैफिक व्यवस्था आदि मूलभूत समस्याओं से जूझ रही है। शिक्षा एवं स्वास्थ्य की चरमराती व्यवस्था हो या रेहड़ी पटरी वालों का संघर्ष, भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या बढ़ती आपराधिक घटनाएं, कानून व्यवस्था की शिथिलता हो या सड़कों की दुर्दशा ये और ऐसे अनेक मुद्दें हैं जिन पर इन चुनावों में निर्णायक मोहर लगनी ही चाहिए। घोटाला, घुटनभरे माहौल, प्रदूषण, अपराध एवं अपराधियों की बढ़ती संख्या के बीच एक शांतिप्रिय व्यक्ति का जीना मुश्किल हो गया है। 
 
इन स्थितियों के बीच लोग शीघ्र ही अच्छा देखने के लिए बेताब हैं, उनके सब्र का प्याला भर चुका है। कुछ चीजों का नष्ट होना जरूरी है, अनेक चीजों को नष्ट होने से बचाने के लिए। जो नष्ट हो चुका वह बहुत कम नहीं, मगर जो नष्ट होने से बचाना है वह उस बहुत से बहुत है। इसलिए इन चुनावों के लिए आम मतदाता को भी जागना होगा।
 
बीजेपी पिछले 10 साल से एमसीडी की सत्ता पर काबिज है और वो तीसरी बार भी कब्जा करना चाहती है। लेकिन इस बार आप एमसीडी चुनाव में उसे कड़ी टक्कर दे सकती है और इसी कारण से वह चुनाव जीतने के लिए किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहती है, वह सशक्त चुनावी रणनीति बना रही है तो नए-नए फार्मूले भी आजमा रही हैं। 
 
बीजेपी के लिए ये चुनाव नाक का सवाल बना हुआ है और इसलिए मौजूदा पार्षदों के टिकट काटने का बड़ा फैसला भी कर लिया है। इसके बदले नए चेहरों को मौका देने की बात कही गई है। बीजेपी का मानना है कि एमसीडी में जो सत्ता विरोधी लहर उसके खिलाफ है उसका उपाय यही है। इसका परिणाम तो भविष्य के गर्भ में ही है। 
 
एमसीडी चुनाव में जीत को सुनिश्चित करने के लिए ही कुछ महीने पहले बीजेपी ने मनोज तिवारी को राज्य में पार्टी का अध्यक्ष बनाया था। दिल्ली के पूर्वांचल वोटरों को साधने के साथ ही कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा भरने के लिए मनोज तिवारी को दिल्ली की कमान सौंपी गई है। देखना यह है कि वे इसमें कितना सफल हो पाते हैं? मौजूदा पार्षदों के टिकट काटने का निर्णय कहीं बीजेपी के खिलाफ न चला जाए, क्योंकि कई दिग्गज नेताओं को घर बैठा देना कहीं बगावती तेवर को हवा न दे- इस तरह की चुनौतियां भी तिवारी के सामने हैं। अगर वे इन चुनावों में जीत को सुनिश्चित कर देते हैं तो व्यक्तिगत स्तर पर उनका राजनीतिक भविष्य संभावनाओं भरा है। 
 
जब से दिल्ली में आप की सरकार बनी है, तब से एमसीडी और उसमें तकरार होती रही है। इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ा है। वर्ष 2012 में तीनों नगर निगमों की 272 सीटों में से बीजेपी को 138 सीटें मिली थी. उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी नगर निगम बीजेपी के पास हैं। पिछले साल हुए 13 वार्डों के उपचुनाव में आप ने 13 सीट में से 5 सीट जीतने में कामयाबी हासिल की थी। दिल्ली में भाजपा और आप के बीच मुकाबला कांटे का है। 
 
आम आदमी पार्टी का पूरा ध्यान अब दिल्ली पर है। कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि अगर एमसीडी चुनाव में आप को जीत मिलती है तो वह दिल्ली को लंदन जैसा बना देंगे। इधर कांग्रेस भी इन चुनावों में जीत पर दिल्ली को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने का दावा कर रही है। 
 
प्रश्न आप से जुड़ा है कि लन्दन तो दूर की बात है पूरे बहुमत से दिल्ली पर काबिज होकर उसने कौन-सा तीर मार लिया, बल्कि उसने तो दिल्ली को दिल्ली भी नहीं रहने दिया, बदनुमा बना दिया। इन स्थितियों को जनता बहुत समझती है। फिर भी मुकाबला दिलचस्प है, अब देखना ए है कि आप एमसीडी के चुनाव में बीजेपी के विजय रथ को रोकने में कामयाब हो पाती है या नहीं। 
 
एमसीडी का चुनाव दोनों पार्टियों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल है। बीजेपी पर जहां एमसीडी में अपनी 10 साल से आ रही सत्ता को बचाने का दबाव रहेगा, वहीं आप पर दिल्ली विधानसभा का सफलता दोहराने का दबाव रहेगा। लेकिन प्रारंभिक संकेत आप के लिए शुभ दिखाई नहीं दे रहे हैं। पंजाब चुनाव में अपेक्षित सफलता न मिल पाना हो या आप के बवाना विधायक वेद प्रकाश का बीजेपी में शामिल हो जाना हो। 
 
बार-बार आप विधायकों पर अनैतिकता एवं भ्रष्टाचार के आरोप लगना हो या फिर एलजी अनिल बैजल द्वारा सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने पर विज्ञापन का 97 करोड़ रुपए का खर्चा आम आदमी पार्टी से वसूलने का आदेश दिया जाना हो, इन सबसे ऊपर केजरीवाल का अहंकार- कहीं-ना-कहीं इन स्थितियों का इन चुनावों पर विपरीत ही प्रभाव पडे़गा। 
 
इन जटिल होती जा रही स्थितियों एवं गोवा और पंजाब में पराजय के बाद आप किसी भी हालात में एमसीडी चुनाव में हारना नहीं चाहती है। 2015 दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप 70 में से 67 सीट जीतने में कामयाब हुई थी और इस बार भी वो किसी भी तरह से दिल्ली में अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहती। 
 
बीजेपी एवं आप की टक्कर के बीच कांग्रेस भी पूरी आशान्वित दिखाई दे रही है। अजय माकन एवं पार्टी के अन्य चेहरे पूरी तैयारी में जुटे हैं। उनका मानना है कि हमें काम करने और कराने का अनुभव है। निगम को आत्मनिर्भर बनाकर दिल्ली के जन-जीवन को उन्नत जीवनशैली देने का वायदा करते हुए उसे विश्वास है कि उसके सारे पार्षद अच्छे और मेहनती है। उसकी तैयारियों को एवं दिल्ली की जनता पर उसकी पकड़ को एकदम से खारिज नहीं किया जा सकता। कांग्रेस भी एमसीडी चुनाव को लेकर काफी गंभीर है। हाल ही में राहुल गांधी ने रामलीला मैदान में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित किया था और उनमें उत्साह जगाया था। 
 
एमसीडी के चुनाव दिल्ली की जनता के लिए एक माध्यम है कि वह अपने विवेक से उस पार्टी के सिर पर जीत का मोहरा बांधे जो उसकी तकलीफों को दूर करें। अगर कोई अड़ियल और अव्यवहारिक व्यक्ति दिल्ली का रहनुमा बन गया तो उसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं, उनकी कल्पना ही सिहरन पैदा करती है। दिल्ली देश की राजधानी है, उसे जितना साफ-सुथरा एवं समस्यामुक्त होना चाहिए, नहीं है।  
 
देश भर के लोग अपनी समस्याएं लेकर दिल्ली आते हैं परंतु दिल्ली अपना दर्द लेकर कहां जाएं? आज दिल्ली अपने राजनैतिक आकाओं द्वारा उत्पन्न की जा रही समस्याएं से परेशान है, पीड़ित है और शर्मसार है। अपने तुच्छ राजनीतिक हितों के लिए दिल्ली को बदनुमा करना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हो सकता। 
 
दिल्ली के इतिहास में एक नया और शानदार अध्याय लिखने के लिए मिले अवसर का सदुपयोग करने के लिए राजनीतिक दलों को ईमानदार और दूरदर्शितापूर्ण प्रयत्न करने चाहिए। जनता इन चुनावों और चुनावबाजों के चुनावी कर्मकाण्डों से हटकर एक मजबूत विकल्प तैयार करे। जनता को लोकतंत्र का असली अर्थ समझना होगा। क्योंकि लोकतंत्र के सूरज को घोटालों और भ्रष्टाचार के बादलों ने घेर रखा है। हमें किरण-किरण जोड़कर नया सूरज बनाना होगा। 

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