पनौती से नहीं, चुनौती से लड़िए

Rahul Gandhi comment on Prime Minister Modi: महंगाई या गरीबी के बारे में मान लिया कि ये मसले किसी जादू की छड़ी से हल नहीं होने वाले, लेकिन सवाल यह है कि इस देश की केंद्र सरकार को आख़िर हो क्या गया है? विश्वस्त आंकड़े कहते हैं कि पिछले सात सालों में बैंगन जैसी सब्जी के भाव 70, प्याज़ जैसी लगभग हरेक घर की रसोई की ज़रूरत सब्जी की कीमत में 56 प्रतिशत वृद्धि हुई। देश का प्रत्येक चौथा परिवार स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के चलते कर्ज़ में डूबा हुआ है। करीब 19 करोड़ लोग आज भी भूखे सोते हैं और सरकार कहती है मेरा देश महान! शाबाश!
 
बीते सात सालों में मात्र 7 फीसद सालाना आय बढ़ी है। जीवन जीने का अधिकार सिर्फ़ कुछ लोगों तक सिकुड़ कर रह गया है और बहस इस बात पर हो रही है कि राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी को 'पनौती'क्यों कह दिया?
 
यदि गहराई से सोचे तो पूरा मेन स्ट्रीम मीडिया को मिलाकर अन्य सभी स्वतंत्र मीडिया प्लेटफॉर्म दो हिस्सों में बंट गए लगते हैं। एक बड़ा हिस्सा वो है, जो भाजपा, केंद्र सरकार और संघ के खिलाफ कुछ सुनना ही नहीं चाहता, जबकि एक छोटा सा तबका वो है जो भाजपा, केंद्र सरकार, और संघ को ही निशाने पर रखता है। फिलहाल बात करें पनौती शब्द की, जिस पर चुनाव आयोग तक ने राहुल गांधी को नोटिस पकड़ा दिया है।
 
जानकार बताते हैं कि पनौती शब्द हमारी लोक संस्कृति से निकला है, जिसका प्रयोग सबसे पहले महाराष्ट्र के मराठवाड़ा अंचल में हुआ, और फिर यह शब्द अपने अगले सफर में अलग-अलग टापू बनाते हुए खासकर बॉलीवुड में स्वीकृत हो गया। याद रखें कि भारतीय समाज की विशेषता या कमजोरी जो भी कहें, वह यह है कि हमारा समाज बॉलीवुड, क्रिकेट और माफिया से सबसे ज्यादा प्रभावित है। 
 
आपने देखा सुना होगा कि विभिन्न वेब सीरीज में मनोज बाजपेई और पंकज त्रिपाठी जैसे अभिनेता द्वारा वो गलियां दी जाने लगी हैं, जो आपके कानों में उतरकर जहर जैसा असर करती है, लेकिन वेब सीरीज के लिए कोई सेंसर बोर्ड नहीं। ये लोग चाहे जितनी गंदगी फैलाने को स्वतंत्र है। फिर भी पनौती शब्द तो कम से कम इस श्रेणी में नहीं आता, क्योंकि इसकी पैदाइश जानकारों के अनुसार ज्योतिष शास्त्र से हुई है। इसी के अड़ोसी-पड़ोसी शब्द साढ़े साती, ढैया जैसे शब्द हैं, जिनका अर्थ होता है अमांगलिक या अशुभ। मालूम हो कि संविधान में इस लेखक की अंतिम जानकारी के अनुसार 300 शब्दों को असंसदीय माना गया है और लगता है कि इन 300 शब्दों की फेहरिस्त में पनौती शब्द शामिल नहीं है।
 
बॉलीवुड की एक फिल्म में परेश रावल जैसे अभिनेता का अपनी पत्नी के प्रति डायलॉग है कि तू पत्नी नहीं पनौती है। कहा जाता है कि जब खासकर मुंबई में 4 लोग मिलते हैं तो अक्सर पनौती जैसे शब्दों का खुलकर लेनदेन होता है। ये गाली गुफ्तार नहीं है। याद आता है कि हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार स्वर्गीय अमृतलाल नागर ने एक बार कहा था कि भाषा वही पसंद की जाती है, जो बोली जाती है और बोली जाने वाली भाषा हरदम गाली नहीं होती।
 
बोली को इंग्लिश में डाई लेक्ट कहा जाता है और पूरे भारत में बोलियों की संख्या लगभग 3 हजार बताई जाती है। जैसे अवधी, ब्रज, लखनवी, मालवी, निमाड़ी आदि। इन्हीं से मिलकर खड़ी बोली बनी जो आज आमफहम की भाषा है। आजकल तो बड़े-बड़े समाचार पत्रों में निपटा दिया, लोचा, लपेटा, झटका, लप्पेबाजी, लाफा जैसे शब्दों का प्रयोग आम बात है। मतलब यह हुआ कि समाज इन्हें स्वीकृत कर रहा है और सबसे जरूरी यह है कि शब्द का अर्थ अक्सर उतना गहरे मायने नहीं रखता, जितना कि उसका प्रयोजन।
 
इस माथा पच्ची के बावजूद यदि भाजपा और चुनाव आयोग को पनौती शब्द पर इतना ही ऐतराज है तो प्रश्न यह है कि कम से कम भाजपा तब क्यों चुप थी जब पिछले सत्र में भरी लोकसभा में नई दिल्ली दक्षिण से चुने गए भाजपा सांसद ने उत्तर प्रदेश के एक अल्पसंख्यक सांसद को न जाने क्या-क्या बोला था। सख्त अनुशासन के लिए प्रतिष्ठित भाजपा का आलम यह देखिए कि उन्हीं भाजपा सांसद को तत्काल बाद प्रमोट कर दिया गया। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार जिन्होंने एशिया का नोबल पुरस्कार रेमन मैग्सेसे जीता है, ने एक ध्यान देने लायक बात कही है और वह यह कि पनौती से नहीं चुनौती से लड़िए। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और लेख में व्यक्त विचार उनके हैं, वेबदुनिया का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है) 
 

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी