ईद के मौके पर बकरे की बात होना तो लाजमी है। लेकिन क्या कभी इस भोले प्राणी की तारीफ भी की है आपने...? क्यों भई, ईद पर कुर्बानी देने वाला ये नाचीज, चटपटे स्वाद के इतर भी तो तारीफ का हकदार है...वो भी तब, जब ये आपकी अस्थमा की समस्या का इलाज तक करता है।
जी हां, भले ही आपको ये खबर थोड़ी अजीब या चौंकाने वाली लगे, लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि ये बात बिल्कुल सच है... और हो या न हो, कुर्बानी दिवस पर अतिशयोक्ति में ही सही हमें इस बात को सच मान ही लेना चाहिए...। जब हम दुनिया से चले गए लोगों को भी अच्छा बोल देते हैं, जो कभी अच्छे हुए ही नहीं, तो क्या ईद पर खुशी-खुशी कुर्बानी देने वाले इस महान जीव को जरा सा क्रेडिट नहीं दे सकते क्या...?
भई ईद के मौके पर बकरों की मांग अच्छी खासी होती है... उतनी ही, जितना आम दिनों में ज़िल्लत होती है। और इसी को देखते हुए बकरों का बाजार लगाया जाता है, जिसमें अच्छे-अच्छों (बकरों) के भाव बढ़ जाते हैं।
इस बाजार में दूर-दूर से व्यापारी बकरों की खरीद फरोख्त के लिए पहुंचते हैं और मांग के अनुसार बकरों का व्यापार किया जाता है। यहां बकरों में क्षेत्रीयता का गजब का रंग चढ़ा हुआ होता है। इस बाजार में हर तरह के बकरे उपलब्ध कराए जाते हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश से आने वाले जमुना पारी बकरे भी शामिल हैं। जमुना नदी के पास के क्षेत्रों में पाए जाने वाले बकरों को जमुना पारी नाम दिया गया है। इनका वजन 65 से 75 किलो तक होता है और कीमत 30 हजार रूपए से शुरु होती है जो मांग के अनुसार बढ़ती जाती है। इनका वजन ही इनकी क्वालिफिकेशन है भाई साब, जिसकी वजह से इतना कमाते हैं, वरना हल्के पतले को तो कोई पूछे भी न... क्यों
और तो और इनके तोक प्रकार भी ऐसे बंटे हैं जैसे सब्जी भाजी हो। सिरोही, बर्बरी, मालवी और सोज्त प्रजाति के बकरे भी इन बाजारों में लाए जाते हैं। अब बताओ, मालवी आलू तो सुने थे, भाषा भी... पर अब तो बकरे भी होने लगे।
सोज्त प्रजाति के बकरे बगैर सींग वाले होते हैं। मतलब ये बेचारे अल्ला की गाय, मेरा मतलब है अल्ला के बकरे होते होंगे। निर्मोही, सादगी भरे... मोल-भाव के लिए ज्यादा चेंचें पेंपें करने वाले नहीं। अब इनकी सबसे बड़ी खासियत सुनिए, विक्रेताओं का कहना है कि ये बकरे अस्थमा जैसी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। उनका कहना है कि जो अस्थमा रोगी इनके दड़बे में रहते हैं, इनकी गर्मी के कारण अपने रोग से निजात पा सकते हैं।
अब बताओ इसके लिए दड़बे में रहने की क्या जरूरत भला, अस्थमा मरीज बकरे को अपने बेडरूम में साथ न सुला लें? न रोगी को दिक्कत न बकरे को कोई समस्या...। क्या कहते हो?