निशब्द हूं....व्यथित हूं... लेकिन स्त्री के उस हौंसले को सलाम करती हूं, जो दर्द की कराह को भी कर्तव्य की आवाज में महसूस नहीं होने देती। आश्चर्यचकित भी हूं कि तुमने इतनी हिम्मत रखकर यह कैसे किया सुप्रीत...लेकिन खुद भी एक एंकर होने के नाते यह समझ सकती हूं कि उस स्थान की, जहां तुम बैठकर समाचार पढ़ रही थी, जिम्मेदारी कितनी अहम होती है... और यह भी अंतस तक महसूस कर रही हूं, कि तुम्हारे लिए कितना मुश्किल भरा वक्त होगा, जब तुम अंदर से तो टूटी थी, लेकिन बाहर से हौंसले भरी आवाज में इस खबर को दुनिया को बता रही थीं।
एक पत्रकार होने के नाते, अक्सर जब किसी घटना, दुर्घटना की खबर हम लोगों तक पहुंचाते हैं, तो निर्लिप्त भाव रखकर बेबाकी से हम पीड़ित लोगों के आंकड़े बयां करते हैं। लेकिन वे आंकड़े भी सजीव हो उठते हैं, जब घटना में कोई अपना भी शामिल हो। जब सामान्य जीवन में भी एक छोटी सी शंका, चिंता या परेशानी हमारे मस्तिष्क में सैकड़ों विचारों और उनमें उथल-पुथल पैदा कर देती है, ऐसे में जब वही शंका सच के आसपास या सटीक हो, तब खुद को संभालना किसी आम इंसान के बूते की बात भी नहीं। ऐसे समय में खुद को स्थिर रखना मुश्किल नहीं, बल्कि पूरी तरह से नामुम्किन होता है और मन-मस्तिष्क का विचलन प्रस्तुतिकरण पर भी प्रभाव डालता ही है। इस समय तुमने बेहद बहादुरी का परिचय दिया सुप्रीत।
हो सकता है कि तुम्हारे उस दर्द के इर्द-गिर्द भी हम न पहुंच पाएं, लेकिन उसकी तरंगों ने हमारे हृदय को भी उद्वेलित किया है। लेकिन यह भी तय है, कि इतनी शक्ति ईश्वर ने सिर्फ एक स्त्री को ही प्रदान की है, जो दर्द से गुजरते हुए भी हौंसले की मिसाल बन सकती है।
इस हौंसले को अब तुम्हें जीवन में आगे भी निभाना होगा...इस मिसाल को कायम रखना होगा। अपने दर्द को बयां करना, लेकिन हिम्मत न छोड़ना...। सच है बिछड़े हुए अपनों की कमी पूरी नहीं की जा सकती, लेकिन इन कठिन उतार चढ़ावों का नाम ही जीवन है। कभी यह नदी की तरह शांत बहता है, तो कभी उतार-चढ़ाव हमें बिखेर देते हैं। लेकिन तुम हारना मत, जीवन चलता रहेगा...और एक दिन फिर मुस्कुराएगा...। इस विश्वास को डिगने मत देना। आंखें नम है...मन दुखी है...लेकिन तुम्हारे हौंसले को सलाम है।