अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था में परमाणु ऊर्जा का योगदान सिर्फ 3.3 प्रतिशत है। परमाणु ऊर्जा के इस योगदान को हम फ़्रांस देश के परमाणु ऊर्जा के योगदान से जोड़ कर देखें तो वहां की परमाणु ऊर्जा का योगदान 70.6 प्रतिशत है। तो क्या हम अपने परमाणु ऊर्जा एक्ट और उसके नियमों के दायरे में रहकर इस 3.3 प्रतिशत को कहीं ज्यादा आगे बड़ा सकते हैं ? अगर हम 5 ट्रिलियन की भारतीय अर्थव्यवस्था की ख़्वाहिश रखते हैं तो आज हमें परमाणु ऊर्जा जैसे स्वदेशी उद्योग के क्षेत्र में क्रांति चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के तथ्यों के अनुसार पूरे विश्व में 444 नाभिकीय रिएक्टर कार्य कर रहें हैं जिसमें से ज़्यादातर 500 मेगावाट से ऊपर ही हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो कि 40 मेगावाट के नीचे भी हैं जैसे कि 35 मेगावाट का रूस का नाभिकीय रिएक्टर Akademik Lomonosov जो कि एक जहाज़ है और ऐसा दिखता है -
या फिर अर्जेंटीना का carem-25 जो की 25 मेगावाट का नाभिकीय रिएक्टर है जिसका अभी निर्माण चल रहा है और वो ऐसा दिखता है
इसी तरह रूस का bilbino-4 रिएक्टर भी अभी कार्यरत है जो कि मात्र 12 मेगावाट का है। अगर हमारे वैज्ञानिक चाहें तो नाभिकीय ऊर्जा के 30 मेगावाट के नाभिकीय रिएक्टर को औद्योगीकरण करने के उद्देश्य से डिज़ाइन करने की कोशिश कर सकते हैं। और उनसे सादर निवेदन है की ऐसा सोचें।
उदाहरण के तौर पर हमारे दिल्ली शहर की अधिकतम ऊर्जा खपत अंदाजन 8000 मेगावाट है और मुंबई की अधिकतम ऊर्जा खपत करीबन 4000 मेगावाट है। मेट्रो शहरों की ऊर्जा तो काफी हद् तक संतुष्ट हो जाती है लेकिन टियर 2 के शहर, टियर 3 के शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में नाभिकीय ऊर्जा बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है।
प्रिय वैज्ञानिकों आप एक बार सोचिए तो कि उपग्रहों कि तकनीकी से कृषि दर्शन कितने साल पहले किसानों तक पहुंच गया था, आप अगर वाकई में परमाणु ऊर्जा को दूर सुदूर ग्रामों तक पहुचाएंगे तो कितने लोग आपको दुआएं देंगे, आप सोचिए।
और अगर हमारे ट्रिलियनमय प्रदेशों को पूर्ण रूप से अपने स्वयं की ऊर्जा के दम पर ट्रिलियनमय होना है तो सच्ची स्वदेशी ऊर्जा के साधन जुटाने होंगे। मेरी जहां तक जानकारी है नाभिकीय ऊर्जा के अलावा ऊर्जा नवीनीकरण के बाकी सारे साधन प्रमुखतया आयात पर निर्भर हैं। सौर ऊर्जा की सबसे अच्छी मल्टीजंक्शन सोलर सेल सेमीकंडक्टर आधारित है जो की आयात निर्भर है। वायु ऊर्जा के जनरेटर की अच्छी ऐरो डायनामिक ब्लेड आयात निर्भर है। वायु ऊर्जा के बड़े बड़े टर्बाइन भी आयात निर्भर हैं। इसी तरह से जियो थर्मल ऊर्जा में भी भारत अभी प्रयोगात्मक है।
भारत में नाभिकीय ऊर्जा अकेला ऐसा ऊर्जा क्षेत्र है जहां सम्पूर्ण स्वदेशीकरण है। अगर हमारी ट्रिलियनमय प्रदेशों की सरकारें या बड़े बड़े औद्योगिक घराने इस नाभिकीय ऊर्जा के 30 मेगावाट पर आयोजन और नियोजन करें तो शायद भारतीय ऊर्जा के क्षेत्र में एक ऊर्जा क्रांति की नई राह आ सकती है।
(ये लेखक के स्वयं के विचार हैं। लेखक भारतीय राजस्व सेवा में अतिरिक्त आयकर आयुक्त के पद पर वाराणसी में नियुक्त हैं और मूलत: बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के निवासी हैं। इन्होंने लगभग 8 वर्ष इसरो में वैज्ञानिक के तौर पर प्रमुखतया उपग्रह केंद्र बेंगलुरु में कार्य किया जिसमें अहमदाबाद, त्रिवेंद्रम, तिरुपति जिले की श्रीहरिकोटा एवं इसराइल के वैज्ञानिकों के साथ भी कार्य किया।)