खोजी पत्रकारिता में सोशल मीडिया की भूमिका

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नेपाल में पिछले दिनों एशियाई खोजी पत्रकारों का एक सम्मेलन संपन्न हुआ। इसकी खास बात यह थी कि इसमें पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं पर चर्चा हुई है। चर्चा का एक बिन्दु यह भी था कि सोशल मीडिया ने खोजी पत्रकारिता को कितना बदल दिया है। सोशल मीडिया से किस तरह नए-नए मुद्दे खोज के लिए सामने आते हैं और बड़ी संख्या में लोग उन विषयों से जुड़े होते हैं। सोशल मीडिया के जरिये दुनियाभर के तमाम बड़े नेताओं और उद्योगपतियों के भ्रष्टाचार उजागर होने की भी चर्चा हुई। 
 
सम्मेलन में पनामा पेपर्स की भी चर्चा हुई। किस तरह सैकड़ों पत्रकारों ने लाखों दस्तावेजों की पड़ताल की और बेहद गोपनीय तरीके से दुनिया को इस भ्रष्टाचार से अवगत कराया। अल्पविकसित देशों में सरकार के दबाव और वहां की व्यवस्था के चलते पत्रकारों को किस तरह चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, यह भी चर्चा में रहा। ऐसे देशों में खोजी पत्रकारिता की कितनी गुंजाइश है। सम्मेलन में पाकिस्तान से आए पत्रकार ने बताया कि किस तरह उसका अपहरण किया गया और उसकी पिटाई की गई। इसके बावजूद पत्रकार ने हिम्मत नहीं हारी और दुनिया को पाकिस्तान के हालात के बारे में बताया। बाद में उसी पत्रकार को डेनियल पर्ल अवॉर्ड दिया गया। 
 
इस सम्मेलन की खास बात यह थी कि आज के डिजिटल दौर में लोग किस तरह अपने मोबाइल फोन और इंटरनेट कनेक्शन का उपयोग खोजी पत्रकारिता के लिए कर रहे है। सोशल मीडिया देशों की सीमाओं से परे जाकर इस तरह की पत्रकारिता को बढ़ावा दे रहा है। सम्मेलन में सारी चर्चाएं केवल नेताओं और उद्योगपतियों के भ्रष्टाचार तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि पश्चिम के ईसाई धर्मगुरुओं द्वारा चर्च में किए जा रहे भ्रष्टाचार पर भी निशाना साधा गया। सम्मेलन में अधिकांश पत्रकारों की राय थी कि संवैधानिक दायरे से बाहर जाकर अधिकांश चर्च अपनी सत्ता का दुरुपयोग कर रहे है। 
 
इस सम्मेलन में पत्रकारों को यह जानकारी भी दी गई कि वे सोशल मीडिया का उपयोग करके अपने विषय पर यहां-वहां बिखरी जानकारियों को कैसे इकट्ठा कर सकते है। कौन लोग उनकी खोजी पत्रकारिता में मदद कर सकते है। इसकी जानकारी भी सोशल मीडिया से प्राप्त की जा सकती है। सोशल मीडिया की ही मदद से ही पत्रकारों ने अल कायदा जैसे आतंकी संगठन की जानकारियों को दुनियाभर में फैलाने के लिए सफलता पाई है। युवा अरब नागरिक क्या सोचते हैं, यह भी आज दुनिया से छुपा नहीं है। 
 
कई पत्रकारों को यह भय सताता रहता है कि अगर उन्होंने अपनी खोजी पत्रकारिता के विषय को सोशल मीडिया पर शेयर किया, तो यह विषय चुरा लिया जाएगा। खोजी पत्रकारों को सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते समय अपने विषय के बारे में बहुत ज्यादा नहीं लिखना चाहिए। सोशल मीडिया पत्रकारों के टूल किट का हिस्सा है और उसे इस्तेमाल करने में सावधानी जरूरी है। 
 
सोशल मीडिया पर खोजी पत्रकारिता के मुद्दे तलाशने के मामले को क्राउड सोर्सिंग भी कहा जाता है। इस क्राउड सोर्सिंग में नई चुनौतियां भी होती है। सोशल मीडिया पर आई सूचनाओं की विश्वसनीयता के बारे में भी सवाल उठाए गए। इस बात की भी चर्चा हुई कि क्या लोगों का खोजी पत्रकारिता पर से भरोसा उठ गया है और क्या लोग अब भी यहीं सोचते हैं कि खोजी पत्रकारिता केवल ब्लैकमेलिंग का साधन है। 
 
सोशल मीडिया के आने के बाद खोजी पत्रकारिता की कामयाबी के पैमाने भी बदलते जा रहे हैं। किस रिपोर्ट को कितने लोग पसंद और शेयर कर रहे है यह भी महत्वपूर्ण हो चला है। सोशल मीडिया पर आम आदमी भी खोजी पत्रकारिता से जुड़े विषय पर अपना इनपुट दे देता है, जिससे पाठकों के पास पहुंचने वाली जानकारियां और ज्यादा संपन्न होती है।
 
यूएसए के कोलंबिया में एक अनूठी समस्या भी सम्मेलन में चर्चा का विषय रही और वह विषय यह था कि कोलंबिया में अचानक एक अजीब सी बदबू फैल रही थी। सोशल मीडिया पर मिली इस जानकारी के आधार पर वहां के पत्रकारों ने खोज की और पाया कि आखिर यह बदबू इतनी खतरनाक क्यों है और इससे वहां की जनता की सेहत पर क्या बुरा असर पड़ सकता है। सभी की एक राय रही कि वे अपनी खोजी पत्रकारिता में सोशल मीडिया के बेहतरीन उपयोग की कोशिश करते रहें।

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