कोरोना काल में जानिए जीवन-मरण के बारे में किसने क्या कहा...

कोरोना में हो रही निर्दोष मृत्यु ने सभी को चिंतन पर मजबूर किया है। जीवन का सत्य नजर आ रहा है। देखें किसने जीवन/जन्म मरण के बारे में क्या कहा?
 
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का है पल की खबर नहीं.- अज्ञात
 
हंस के दुनिया में मरा कोई कोई रो के मरा
जिंदगी पाई मगर उसने, जो कुछ हो के मरा.- अकबर इलाहाबादी
 
जो देखी हिस्ट्री इस बात पर कामिल यकीं आया
उसे जीना नहीं आया जिसे मरना नहीं आया.- अकबर इलाहाबादी
 
मौत और जिंदगी दुनिया का एक तमाशा है.– अशफाक़उल्लाखां
 
जीवन मरण संजोग जग कौन मिटावै ताहि.
जो जन्मे संसार में अमर रहे नहिं आहि.– जोधराज (हम्मीर रासो ३७७)
 
विस्तार ही जीवन है और संकोच मृत्यु, प्रेम ही जीवन है और द्वेष ही मृत्यु.- स्वामी विवेकानंद (विवेकानंद साहित्य, खंड ३/३३२) होते हैं. –
 
कुछ लोग मरण का वरण करके जीवन जीते हैं, कुछ लोग जीते हुए भी मृत होते हैं.- शंकर कुरूप (मलयालम, कविता ‘स्त्री’)
 
जिंदगी मौत की तैयारी है.- महात्मा गांधी (महादेव भाई की डायरी, भाग१/२३९)
 
जन्म और मृत्यु का मामला एकदम प्रकृति का नियम है.- शरतचंद्र (शेष परिचय,२४४)
 
मृत्यु में अनेक एक हो जाता है और जीवन में एक अनेक हो जाता है.- रविन्द्रनाथ ठाकुर (स्ट्रे बर्ड्स, ८४)
 
दूब के समान हम हजारों बार उगे हैं और उगते रहेंगे, हमने ७७० शरीर बदले हैं और बदलते रहेंगे.- मौलाना रूम (फारसी)
 
कभी कभी देहांत के बिना ही इंसान एक ही शरीर में कई-कई मौतें नहीं मरता? या एक ही जन्म में कई-कई बार जन्म नहीं लेता?- आशापूर्णा देवी (रेत का वृन्दावन)
 
निद्रा के समान है मरण, और निद्रा से जागरण के समान है जन्म.- तिरुवल्लुवर (तिरुक्कुरल ३३९)
 
जन्म का दण्ड मृत्यु है.- साधु वासवानी (दि लाइफ़ ब्यूटीफुल ८९)
 
जो उत्पन्न हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मरता है उसका जन्म निश्चित है.- वेदव्यास (महाभारत, भीष्म पर्व, २६/२६)
 
कौन मनुष्य किसका बंधु है? किसको किससे क्या प्राप्त होता है? प्राणी अकेला ही उत्पन्न होता है और अकेला ही नष्ट हो जाता है.- वाल्मिकी (रामायण, अयोध्याकाण्ड,१०८/३)
 
किसका जन्म सराहनीय है?जिसका फिर जन्म न हो। किसकी मृत्यु सराहनीय है? जिसकी फिर मृत्यु न हो.- शंकराचार्य (प्रश्नोत्तरी,१८)
 
हमारे पास जन्म मृत्यु, जीवन मरण जैसे कई विषयों पर अथाह ज्ञान भंडार है। पर वर्तमान समय ने सभी पर प्रश्नचिन्ह लगाने का जैसे ठान रखा है। जब यह सब लिखा जा रहा होगा तब की प्रकृति और परिवेश, जीवन यापन, मनुष्यों की मनुष्यों के प्रति संवेदनाओं का सागर सभी कुछ तो अलग ही होगा। तो क्या ये वाकई दण्ड है जो हम भोग रहे हैं। क्योंकि मृत्यु के बाद पीछे रह जाते हैं वे ही जीवन दण्ड भोगते हैं. व्यक्ति तो मर कर मुक्त हो जाता है। तो क्या कुसूरवार हम हैं? बचे हुए जीवित.... विचारिए....
 

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