देश के 5वें और मप्र के दूसरे चरण में 7 लोकसभा सीटों पर 6 मई को चुनाव होंगे। खास यह कि 4 सीटें बुंदेलखंड की हैं, जो कहीं-न-कहीं उप्र की सीमा से लगी हैं। यकीनन इन सीटों पर मतदाताओं का रुझान अलग-सा हो सकता है। उप्र में अली, बजरंग बली, अनारकली, बुर्का और घूंघट वाले बयानों की खूब चर्चा रही़, वहीं बाकी शेष 2 सीटों पर मुद्दा राष्ट्रीय दिखा। बावजूद राजनीतिक दलों के जमकर पसीना बहाने के, मतदाताओं ने इस बार भी अजीबोगरीब खामोशी ओढ़े रखी। खुलकर बोलना तो दूर, संकेत तक न देकर सभी के मन में लड्डू फूटने दिए।
मंदिरों के लिए विश्वप्रसिद्ध खजुराहो (सामान्य) सीट का मुकाबला मजेदार है। यहां कांग्रेस ने राजपरिवार से जुड़ी कविता सिंह को तो भाजपा ने मुरैना से आने वाले बड़े नेता वीडी शर्मा को मैदान में उतारा है जिन्हें सबसे बड़ी चुनौती स्थानीय संगठन का भरोसा जीतना है। वहीं सपा ने जातीय समीकरण का ध्यान रख कभी विंध्य के दुर्दांत डकैत रहे ददुआ के बेटे वीरसिंह पटेल, जो उप्र के चित्रकूट सदर से विधायक भी रह चुके हैं, को मैदान में उतारा है। यहां पिछड़े वर्ग के सर्वाधिक मतदाता हैं, जो चुनावों में अहम भूमिका निभाते हैं।
खजुराहो में 5 विधानसभा बुंदेलखंड तो 3 महाकौशल क्षेत्र से आती हैं जिस कारण भी एक अलग समीकरण बनता है। चांदला, राजनगर, पवई, गुन्नौर, पन्ना, विजयराघवगढ़, मुड़वारा और बहोरीबंद विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें राजनगर और गुन्नौर में कांग्रेस और बाकी सभी में भाजपा ने 2018 में जीत दर्ज की है। अब तक 6 बार कांग्रेस तो 7 बार भाजपा यहां जीती है। यही वह लोकसभा क्षेत्र है जिसका विद्यावती चतुर्वेदी और उमा भारती जैसी दिग्गजों ने कभी प्रतिनिधित्व किया था।
सफेद शेरों के लिए मशहूर रीवा लोकसभा (सामान्य) सीट का अलग मिजाज और महत्व है। विंध्य की राजधानी भी कहलाने वाले रीवा पर कांग्रेस 6 बार तो भाजपा व बसपा का 3-3 बार जीतीं। यहां विधानसभा की 8 सीटें हैं, जो सिरमौर, मऊगंज, रीवा, सेमरिया, देवतालाब, गुढ़, त्योंथर और मनगवां हैं। सभी पर भाजपा काबिज है।
भाजपा ने मौजूदा सांसद जनार्दन मिश्रा पर फिर भरोसा जताया, तो कांग्रेस ने पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. श्रीनिवास तिवारी के पोते तथा इसी 11 मार्च को अचानक दिवंगत हुए पूर्व सांसद सुंदरलाल तिवारी के बेटे सिद्धार्थ तिवारी को टिकट देकर युवा चेहरे पर सहानुभूति का भी बड़ा दांव खेला है। बीएसपी ने विकास पटेल को उतारकर ब्राम्हण बहुल मतदाताओं वाली इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया।
सतना (सामान्य) सीट कई मायनों में अलग है। यहां भाजपा ने 3 बार से लगातार सांसद गणेश सिंह, जो प्रमुख कुर्मी नेता के रूप में स्थापित हो चुके हैं, पर फिर भरोसा जताया है। जबकि कांग्रेस ने 42 साल यानी 1977 के बाद पहली बार ब्राम्हण प्रत्याशी के रूप में राजाराम त्रिपाठी को मैदान में उतारकर जातिगत वोट साधने की कोशिश की है।
भाजपा के बृजेन्द्र पाठक 1984 में आखिरी ब्राम्हण उम्मीदवार थे वहीं बीएसपी ने अच्छेलाल कुशवाहा को उतारकर संघर्ष त्रिकोणीय कर दिया है। सतना में 4 बार कांग्रेस, 1-1 बार जनसंघ और बसपा तथा 6 बार भाजपा को जीत मिली है। इसमें 7 विधानसभा सीटें हैं, जो रामपुर बघेलान, रैगांव, मैहर, सतना और अमरपाटन में भाजपा तथा चित्रकूट, सतना में काबिज है। 1991 अर्जुनसिंह ने कांग्रेस के लिए आखिरी जीत दर्ज की थी। 2014 में उनके बेटे अजय सिंह मौजूदा सांसद गणेश सिंह से हार गए थे। किसका जातिगत कार्ड किस पर कितना भारी पड़ेगा? यह नतीजों से ही पता चलेगा।
टीकमगढ़ (अनुसूचित जाति) सीट 2008 के परिसीमन में अस्तित्व में आई। अब तक 2 बार हुए चुनावों में भाजपा-कांग्रेस की सीधी टक्कर में भाजपा के डॉ. वीरेन्द्र कुमार खटीक विजयी रहे। कुल 6 बार सांसद रह चुके वीरेन्द्र सादगीपसंद हैं, जो मोदी सरकार में मंत्री व यहां 3री बार मैदान में हैं जिनका कांग्रेस की कद्दावर महिला नेता किरण अहिरवार से सामना है। चुनावी नजारा बेहद बदला हुआ है।
सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आए सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी आरडी प्रजापति जंग-ए-मैदान में हैं। पहले बीएसपी फिर भारतीय जनशक्ति पार्टी से चुनाव लड़ने और हारने के बाद भाजपा का रुख किया और 2013 में चंदला में जीत दर्ज की। 2018 में इनके बेटे राजेश प्रजापति को चंदला से थे, जो अब विधायक हैं। वहीं भाजपा से टीकमगढ़ लोकसभा टिकट न मिलने पर आरडी प्रजापति ने फिर बगावत कर दी, जो कितनी भारी पड़ेगी, यह तो नतीजे ही बताएंगे।
फिलहाल टीकमगढ़ रोचक एवं त्रिकोणीय संघर्ष का मैदान जरूर है। यहां 3 जिले छतरपुर, टीकमगढ़ और निवाड़ी की 8 विधानसभा सीटें टीकमगढ़, जतारा, खरगापुर, निवाड़ी, पृथ्वीपुर, महाराजपुर, छतरपुर और बिजावर हैं। पृथ्वीपुर, महाराजपुर, छतरपुर से कांग्रेस तो बिजावर में सपा तथा शेष चारों में भाजपा काबिज है।
दमोह (सामान्य) सीट पर चुनाव बेहद दिलचस्प हैं। यहां पर भाजपा के मौजूदा सांसद प्रहलाद पटेल फिर मैदान में हैं जिनका मुकाबला कांग्रेस के प्रताप लोधी से है, वहीं बसपा से जितेन्द्र खरे भी डटे हैं। असली मुकाबला कांग्रेस-भाजपा में सीधा है। शुरुआती 3 चुनाव जीतने के बाद 1989 से कांग्रेस लगातार 8 बार से हारती आई है।
जातिगत समीकरणों के लिहाज से दिलचस्प दमोह में लोधी, कुर्मी और जैन मतदाताओं के बीच ही दलों का समीकरण बैठता है। इसी कारण केवल 1980 में कांग्रेस के प्रभुनारायण टंडन बतौर स्थानीय प्रत्याशी जीते अन्यथा अब तक बाहरी दमदार प्रत्याशी ही जीतते आए हैं।
रोचक यह है कि सबसे ज्यादा 4 बार भाजपा से जीतने वाले डॉ. रामकृष्ण कुसमारिया अब कांग्रेस में हैं। दमोह में 8 विधानसभा सीटें देवरी, मल्हारा, जबेरा, रहली, पथरिया, हटा, बंडा, दमोह हैं जिसमें 4 देवरी, मल्हारा, बंडा, दमोह में कांग्रेस, 1 पथरिया पर बीएसपी तथा शेष 3 पर भाजपा काबिज है।
होशंगाबाद (सामान्य) सीट पुरानी नर्मदापुरम है। सोयाबीन और गेहूं की बंपर पैदावार के चलते देशभर में एकाएक पहचान बनाए होशंगाबाद को नर्मदा नदी के पौराणिक तटों के कारण भी खूब जाना जाता है। यहां भाजपा से मौजूदा सांसद उदयप्रताप सिंह, जो 2014 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे और कांग्रेस के शैलेन्द्र दीवान चन्द्रभान सिंह के बीच सीधी टक्कर है।
जाहिर है मुकाबला भी कड़ा है। रोचक यह है कि मतदाताओं ने हर नुमाइंदे को लगभग 2-2 मौका दिया है। अगर पिछले 15 लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो 7 बार कांग्रेस और 6 बार भाजपा को जीत मिली जबकि 1962 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी तथा 1977 में भारतीय लोकदल ने बाजी मारी थी।
अमूमन टक्कर भाजपा और कांग्रेस में ही रही। 8 विधानसभा सीटें जिनमें नरसिंहपुर, सिवनी-मालवा, होशंगाबाद, सोहागपुर, पिपरिया में भाजपा जबकि तेंदूखेड़ा, गाड़रवारा, उदयपुरा में कांग्रेस काबिज है। वैसे यहां की चौपालों में चर्चा बजाए स्थानीय मुद्दों के राष्ट्रीय वह भी खासकर मोदी बनाम राहुल पर ही ज्यादा होती है। ऐसे में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह देखने लायक होगा।
बैतूल (अनुसूचित जाति) सीट का फैलाव निमाड़ में खंडवा और हरदा तक है। पिछले 8 चुनावों से यहां सिर्फ भाजपा का ही परचम फहराया है। 2008 में परिसीमन के बाद यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुई। पहले 4 बार दिग्गज भाजपाई विजय कुमार खंडेलवाल तो उनके निधन बाद बेटे हेमंत ने जीत हासिल की। पिछले 2 चुनावों से भाजपा की ज्योति धुर्वे लगातार जीतती रहीं। वे जाति प्रमाण पत्र मामले में ऐसी उलझीं कि भाजपा ने उनका टिकट शिक्षक और गायत्री परिवार से जुड़े दुर्गादास उइके दे दिया।
कांग्रेस ने भी नए चेहरे रामू टेकाम पर दांव खेला है, जो एलएलएम तक उच्च शिक्षित हैं तथा 10 साल से ज्यादा वक्त से राजनीति में रहकर आदिवासी समाज में बेहद लोकप्रिय हैं। इन्हें पार्टी सभी का समर्थन प्राप्त है। विधानसभा की 8 सीटों में मुलताई, बैतूल, घोड़ाडोंगरी, भैंसदेही में कांग्रेस तथा आमला, टिमरनी, हरदा, हरसूद में भाजपा काबिज है।
जहां कांग्रेस कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है वहीं भाजपा नए प्रत्याशी के सहारे 9वीं जीत हासिल करने के लिए जबरदस्त पसीना बहा रही है। यहां के अपने गणित अलग हैं। कौन कहां होगा, यह तो नतीजे ही बताएंगे। सातों सीटों पर न लहर है, न कोई तूफान। वहीं सोशल मीडिया में जबरदस्त घमासान है। दावों में कोई पीछे नहीं है लेकिन हकीकत को 23 मई का इंतजार है।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)