मोदी मंत्रिमंडल निरंतरता का द्योतक

अवधेश कुमार

सोमवार, 17 जून 2024 (16:47 IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के 72 सदस्यीय मंत्रिमंडल के बारे में यह टिप्पणी उचित नहीं लगता कि इसके पीछे गठबंधन दलों के साथियों का बहुत ज्यादा दबाव है । 72 सदस्यीय मंत्रिमंडल में शीर्ष स्तर पर कोई बदलाव नहीं हुआ है। गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री, विदेश मंत्री और यहां तक कि सड़क परिवहन, रेल तथा शिक्षा मंत्री भी पूर्व सरकार के ही है। विरोधी मोदी को तानाशाह या लोकतंत्र विरोधी की उपाधि देते रहे हैं। उनकी आलोचना अभी भी जारी है और वे कह रहे हैं कि मोदी गठबंधन सरकार नहीं चला पाएंगे क्योंकि उनका स्वभाव ही गैर लोकतांत्रिक है। 
 
इस तरह की विरोधी आलोचनाओं पर टिप्पणी करने की जगह हमें समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। यह बात सही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2001 से अभी तक मुख्यमंत्री और  प्रधानमंत्री के रूप में कभी बहुमतविहीन सरकार नहीं चलाया। वह जिस तरह बड़े कठोर निर्णय साहस के साथ करते रहे हैं उनका ध्यान करते हुए अनेक लोगों का मानना है कि यह स्वभाव गठबंधन सरकार चलाने के रास्ते की बाधा बन जाएगा। गठबंधन सरकार को लेकर लोग आशंकाएं उठाएंगे लेकिन मोदी के अंदर सरकार चलाने तथा काम करने की इच्छा है। साथी दलों के सामने साथ मिलकर काम करने का जनादेश मिला है तो वो इसका ध्यान बिलकुल रखेंगे। वैसे मंत्रिमंडल गठन से लेकर विभागों के बंटवारे तक यह कहना कठिन है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दबाव में काम कर रहे हैं। थोड़े शब्दों में कहें तो नरेंद्र मोदी का 72 सदस्यीय मंत्रिमंडल भारत के भविष्य को लेकर उनकी योजनाओं, राजनीतिक आवश्यकताओं, साथी दलों के बीच संतुलन बनाने के साथ अनुभव, उम्र आदि के बीच समन्वय बनाने की कोशिश है। 
 
पिछली सरकार के 37 मंत्री इसमें हैं। प्रधानमंत्री सहित कैबिनेट की संख्या 31 है। पिछली सरकार में कैबिनेट की संख्या 26 थी। 16 सांसदों वाले तेलुगू देशम और 12 वाले जद यू को दो-दो मंत्री मिले हैं। कैबिनेट में 21 चेहरे पुराने हैं। भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा की स्वास्थ्य मंत्री के रूप में वापसी हुई है।

सहयोगी दलों में हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के नेता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री 78 वर्षीय जीतन राम मांझी, जद यू के राजीव रंजन सिंह, तेलुगू देशम के 36 वर्षीय के राममोहन नायडू, लोजपा के 41 वर्षीय चिराग पासवान और 37 साल की रक्षा खड्से जैसी सरकार की सबसे युवा मंत्री को आधार बनाएं तो कैबिनेट का चेहरा आपकी समझ में आ जाएगा। 
 
पिछली सरकार में केवल तीन राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के थे। इस बार इनकी संख्या 5 हो गई है। इनमें हरियाणा से रविंदरजीत सिंह, जम्मू-कश्मीर से  जितेंद्र सिंह और राजस्थान से अर्जुन राम मेघवाल की स्थिति पिछले सरकार के समान है। उत्तर प्रदेश से रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को स्वतंत्र प्रभार के साथ राज्य मंत्री बनाया गया है। पिछली बार 29 राज्य मंत्री थे,  इस बार 36 हैं। मंत्रिमंडल में पांच पूर्व मुख्यमंत्री हैं। 33 मंत्री पहली बार केंद्र सरकार का हिस्सा बने हैं जिनमें सात सहयोगी दलों के हैं।
 
इससे आगे सामाजिक संतुलन की दृष्टि से देखें तो पिछड़ी जातियों के 27, अनुसूचित जाति के 10, अनुसूचित जनजाति के पांच और अल्पसंख्यक समुदाय के पांच मंत्री बनाए गए हैं। इस तरह पिछड़ा, अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति एवं अल्पसंख्यक समुदाय के 47 मंत्री हुए। देशव्यापी प्रतिनिधित्व की दृष्टि से देखें तो इनमें 24 राज्यों का प्रतिनिधित्व है।

पंजाब से भाजपा का कोई सांसद नहीं है लेकिन रवनीत सिंह बिट्टू को राज्य मंत्री बनाया गया है। उत्तर प्रदेश के परिणाम को देखते हुए माना जा रहा था कि वहां से कम मंत्री होंगे लेकिन 10 मंत्री बनाए गए हैं और बिहार से आठ। सात महिलाएं हैं। केरल में भाजपा की पहली बार विजई हुई है इसलिए सुरेश गोपी को मंत्री पद मिलना ही था। दूसरे नेता केरल भाजपा के महासचिव जॉर्ज कोरियन हैं जिन्होंने 1970 में जनसंघ से लेकर लगातार भाजपा के लिए संघर्ष किया था। बंगाल से दो लोकसभा सदस्यों डॉक्टर सुकांत मजूमदार और मतुआ समुदाय के शांतनु ठाकुर को राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया है।

इनमें सुकांत पहली बार मंत्री बने हैं लेकिन शांतनु पिछली सरकार में जुलाई 2021 से जहाजरानी राज्य मंत्री रहे हैं। सुकांत उत्तरी बंगाल से हैं तो शांतनु ठाकुर दक्षिण बंगाल के मतुआ समुदाय से हैं जो अनुसूचित जाति वर्ग में आते हैं। भाजपा ने उत्तर बंगाल की आठ में से 5 सीट पर जीत दर्ज की है। शांतनु ठाकुर कोलकाता से सटे उत्तर 24 परगना जिले में बनगांव सीट से जीते तो सुकांत उत्तर बंगाल की बालूरघाट सीट से। बंगाल में यदि बेहतर विजय मिली होती तो वहां से और मंत्री बनाए जाते। इस तरह कोई नहीं कह सकता कि यह मंत्रिमंडल कुछ क्षेत्र, समूह, कुछ जातियां या परिवारों तक सीमित है। इन सबको एक साथ मिलाकर देखें तो पहले निष्कर्ष आएगा कि यह नीतियों और व्यवहार में निरंतरता का मंत्रिमंडल है।

सीसीएस यानी सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 2019 से हैं। इसलिए नीति में कोई बदलाव होगा ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है। वास्तव में भाजपा के अंदर बहुमत न मिलने से निराशा और चिंता अवश्य होगी किंतु 10 वर्षों के शासन में आंतरिक और बाह्य नीतियों में स्थायित्व आ चुका है। 
 
निश्चित रूप से विश्व की दृष्टि मंत्रिमंडल पर रही होगी और संदेश जा चुका है कि रक्षा, सुरक्षा, विदेश, वित्त सहित अन्य प्रमुख मामलों में नीतियां और व्यवहार स्थिर रहने वालीं हैं। सड़क परिवहन एवं अन्य निर्माण के क्षेत्र में नितिन गडकरी की भूमिका की प्रशंसा सभी दलों ने की है और सड़कों के मामले में भारत की विश्व स्तरीय पहचान बन चुकी है।

विश्व भर के निवेशक सड़क सहित भारत की आधारभूत संरचना में निवेश करने के लिए खजाना खोल बैठे हैं और मंत्री परिषद की निरंतरता से वे आश्वस्त हुए हो। एक पार्टी की बहुमत तथा गठबंधन की सरकार के कार्य व्यवहारों में अंतर रहा है। लेकिन कोई सरकार ऐसी नहीं होगी कि पुलवामा जैसी घटना के प्रत्युत्तर पर गठबंधन में मतभेद की चिंता में उस तरह का कदम न उठाया जाए। देश का आर्थिक विकास, सड़कों का विस्तार, अंतरिक्ष सुरक्षा तथा रक्षा के मामले में सक्षमता और आत्मनिर्भरता का विरोध कौन पार्टी करेगा? 
 
जिन्हें विवादास्पद कहा जा रहा है उनमें सर्वोपरि समान नागरिक संहिता है जो भाजपा के चुनावी वादों में शामिल है। इस संदर्भ में मोदी सरकार के कदमों को लेकर दृष्टि रखनी होगी। हालांकि जद यू ने इसका विरोध नहीं किया केवल ठीक प्रकार से विचार कर लाने की बात की थी। भाजपा को बहुमत होता तो समान नागरिक संहिता को संसद के पटल पर लाने और पारित करने में समस्या नहीं होती। क्या मोदी सरकार इस विषय को कुछ समय के लिए एजेंडा से बाहर रखेगी? 
 
अगर गठबंधन से 72 में केवल 11 मंत्री हैं तो इसे दबाव में आना तो नहीं कह सकते। इनमें जदयू के ललन सिंह को छोड़कर कोई ऐसा नहीं जो अतिवादी सेक्युलरवाद का प्रतिनिधि कहा जा सके। वैसे भी मंत्रिमंडल में इतने अनुभवी व्यक्ति हैं कि कोई मतभेद या सहमति उभरने पर अपने अनुभव के आधार पर वह समाधान कर लेंगे। 43 ऐसे मंत्री हैं जो तीन या उससे अधिक बार सांसद रह चुके हैं। 39 मंत्रियों के पास पहले भी केंद्र में मंत्री के रूप में काम करने का अनुभव है। 
 
सर्वानंद सोनोवाव, मनोहर लाल खट्टर शिवराज सिंह चौहान ,एचडी कुमार स्वामी, जीतन राम मांझी जैसे पांच पूर्व मुख्यमंत्री हैं। मंत्रियों में 23 ऐसे हैं जो राज्य में मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं और 34 के पास राज्य विधानसभा में भागीदारी का अनुभव है। इतने अनुभवी नेताओं के रहते हुए तत्काल यह नहीं मानना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगले 5 वर्षों में विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था तथा 2047 तक विश्व की आर्थिक महाशक्ति बनाने जैसे लक्ष्य के मार्ग में मंत्रिमंडल आपसी मतभेद के कारण बाधा बन जाएगा। 
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)

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