2019 के लोकसभा चुनाव के परिणामों से जो राजनैतिक घटनाचक्र भारतीय राजनीति में चला, उसके परिणामस्वरूप भारतीय राजनीति में जो असंतुलन उभरा उसका पटाक्षेप 2024 के जनादेश में स्पष्ट दिखाई देता है। 2024 के लोकसभा के आम चुनाव एक अजीब असमंजस, भयग्रस्त मानसिक तनाव और आशा निराशा का राजनैतिक वातावरण होने के बाद भी शांतिपूर्ण तरीके से आमचुनाव सम्पन्न हुए यह भारतीय लोकतंत्र की लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता और परिपक्वता का जीवंत उदाहरण है। भारतीय राजनीति और राजनेता निरन्तर अकारण उत्तेजित होते रहते हैं उनमें शांतचित्तता का निरन्तर अभाव बना रहता है। पर इसके एक दम उलट भारतीय मतदाता धीरज के साथ मौन रहकर हमेशा चुनाव परिणाम में ही बोलता है।
भारतीय मतदाता भारतीय राजनीति के प्रत्येक राजनैतिक दल को चुनाव में जीताता भी और हराता भी है। भारतीय मतदाता के जनादेश की एक अनोखी विशेषता यह भी है कि उसने भारतीय राजनीति के प्रत्येक राजनैतिक दल या विचार को तबीयत से हराया और जिताया है। भारतीय राजनीति में मतदाताओं के जनादेश में यह भी हमेशा निहित रहता है की चुनावी हार जीत पहली और अंतिम नहीं है। लोकतंत्र तो तात्कालिक हार जीत की राजनीति का अंत नहीं अंतहीन लोक अभिव्यक्ति का निरन्तर और नूतन परिवर्तनधर्मी सिलसिला हैं।
राजनीति में राजनैतिक दल केवल अपनी पतंग को ही निरंतर ऊंची उड़ान भरते रहने के आदी हो चुके हैं। पर भारतीय मतदाता किसी को भी आजीवन पतंगबाजी का एकाधिकार नहीं देता। भारतीय आम चुनावों के परिणामों ने छोटे से छोटे राजनैतिक समूहों से लेकर अपने आप को अजेय या अपरिहार्य माननेवाले राजनैतिक समूहों को अपने जनादेश से एक संदेश ज़रूर दिया है कि लोकतंत्र केवल अपनी अकेली राजनैतिक जमात का एकाधिकार नहीं है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन और इंडिया गठबंधन के रूप में दो भारतीय राजनीति के गठबंधनों को भारतीय लोकतंत्र में अपनी लोक कल्याणकारी भूमिका को निभाते हुए भारतीय लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखने की भूमिका में खड़ा कर दिया है।
पचहत्तर साल की भारतीय लोकतंत्रात्मक गणराज्य की राजनीति में भारतीय मतदाता ने सत्तारूढ़ और विपक्षी राजनीतिक दलों को भारत के एक अरब 50 करोड़ नागरिकों के सपनों में रंग भरने की राजनीति खड़ी करने का जनादेश दिया है। अपने निजी और अपनी राजनैतिक जमातों के सपनों में रंग भरने के लिए नहीं। सबको इज्जत सबको काम देना ही 2024 के आमचुनाव में भारतीय मतदाता का स्पष्ट जनादेश है। जनादेश के इस अर्थ को समझकर पक्ष-विपक्ष दोनों को अपनी अपनी राजनैतिक भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। यही लोकतंत्रात्मक राजनीति का मूल है। (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं, वेबदुनिया का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है)