सर्जिकल स्ट्राइक के निहि‍तार्थ

28 सितंबर 2016 की अर्धरात्रि को जब घड़ी अपनी तारीख बदलने को सरक रही थी, उस समय एलओसी पर भी कुछ बदलने की कवायद प्रारंभ हो चुकी थी। इस बार यह हलचल इसलिए भी थी, क्योंकि इसको अंजाम देना वक्त का तकाजा था।


सीमा से लेकर देश के अंदर तक, क्रिया की प्रतिक्रिया के लिए उबाल उत्पन्न हो चुका था और इस दबाव को रोके रखना भी दीर्घकालिक रणनीति के लिए फायदेमंद नजर नहीं आ-रहा था। ऐसे में युद्ध को टालते हुए क्या प्रतिकार किया जा-सकता है, उसके लिए जरूर मंथन हुआ होगा। आधुनिक लड़ाई में सर्जिकल स्ट्राइक नामक एक नई टर्मिनोलॉजी प्रस्तुत हुई है, जिसे शायद पहले-पहल ईराक में 'सटीक बमबारी' के रूप में प्रयोग किया गया था। 
 
इस नई परिभाषा से युद्ध के प्रेशर को रिलीज करने की तरह प्रयुक्त किया जाता है। सर्जिकल स्ट्राइक एक तरह से युद्ध का प्रेशर वॉल्व है, जो युद्ध को रोकने के लिए कार्य करता है। पठानकोट के बाद उरी में आतंकवादी हमले से देश के अंदर युद्धोन्माद छा-गया था जिसका प्रभाव सेना के मनोबल के साथ देश और सेना की छवि पर भी गिरने लगा था। सोशल मीडिया के युग ने प्रत्येक राष्ट्र को युद्ध के मुहाने पर ला-पंहुचाया है। मीडिया में दिन-रात चलते वार-रूम कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । ऐसे में कुछ करना लाजिमी था और वह किया भी गया और उसे बखूबी सफलता के साथ अंजाम तक पहुंचाया भी गया। उसके लिए हमारे नेता और सेना बधाई के पात्र हैं। इस कार्यवाही से दुश्मन देश को सचेत भी कर दिया कि हम वक्त आने पर जमीनी कार्यवाही करने से भी नही चूकते। अब चाहे इससे हमें कुछ-एक आतंकी घटनाएं झेलना पड़े, पर कुल मिलाकर सेना का ऑपरेशन आज कि तारीख में घाटे का सौदा नहीं रहा।
 
सर्जिकल स्ट्राइक पहले भी होते रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। सीमाओं पर होने वाली यह एक सामान्य घटना की तरह है और किसी भी देश की सेना इससे बची हुई नही हैं। मोर्चे पर डटी हुई सेनाएं सीमा पर इसलिए होती हैं कि वे घुसपैठ को रोकने के लिए सजग रहे और तुरंत कार्यवाही करे। खासकर वे देश जिनके बीच विवादस्पद सीमा रेखा होती है, आए दिन सीमा रेखा के उल्लंघन की शिकायतें आती रहती हैं। एक-दूसरे के स्वयंभू आधिपत्य वाले सीमा रेखा क्षेत्रों में उल्लंघन कर हेलीपेड-बंकर के निर्माण तथा विध्वंस के कार्य चलते रहना आम-बात है। चूंकि इस बार मीडिया की बदौलत पानी सिर के ऊपर निकल गया था, तो सेना को विधिवत घोषणा के साथ सर्जिकल स्ट्राइक को प्रकाश में लाना पड़ा, अन्यथा प्रेस न्यूज करने की जरूरत भी नहीं होती। क्योंकि ये ऑपरेशन एक तरह से सेना के बेहद निजी अभियान की तरह होते हैं और चूंकि यूद्ध को टालने की मंशा से किए जाते हैं, तो प्रचार से इस उद्देश्य को ठेस लगने की संभावना भी होती है। अत: एहतायतन चुप्पी रखना ही श्रेयस्कर होता है। खासकर घटना के अधिक डिटेल्स पर चुप्पी ही इन ऑपरेशन की एकमात्र शर्त है। 
 
ट्विन-टावर घटना से अमेरिकन वासियों में भी हलचल मची थी, जिसकी परिणीति स्वरूप एबटाबाद में सील सेनिको ने चॉपर उतारे थे। अमेरिका द्वारा एबटाबाद से लादेन को उठाने में हुए सर्जिकल स्ट्राइक की गोपनीयता अभी भी बरकरार है, जो जानकारी है वो वही है जैसा कि अमेरिका द्वारा बताया गया। कोई नहीं जानता कि उस दिन लादेन जिंदा पकड़ा गया या मुर्दा। और लादेन के साथ उस दिन जो लोग थे उनका क्या हुआ ? लादेन को समुद्र में किस जगह दफनाया गया ? एबटाबाद तक राडार में आए बगैर चॉपर काम को अंजाम देकर निकल भी गए ? ये सब प्रश्न हैं जो जाहिर करते हैं की सर्जिकल स्ट्राइक में राष्ट्रों को कितनी गंभीरता और गोपनीयता से काम लेना होता है। युद्ध की विभीषिका से बचने के खातिर की गई सर्जरी में उच्च मानवीय निहतार्थ समाहित होने से राष्ट्रों के अपने प्रश्न यहां गौण हो-जाते हैं और सामान्यतः इन्हें न पूछे जाने की परंपरा बनी हुई है ।
 
आतंकी घटनओं को रोकने हेतु किए गए सर्जिकल स्ट्राइक आमजन से छुपे हुए रहते हैं पर देशों के शीर्ष सत्ताधारियों को इसके संकेत पहले से करा दिए जाते हैं, ताकि बात न बिगड़े । पोस्ट ऑपरेशन प्रक्रिया के तहत सूचना के संकेत विश्व बिरादरी के चौधरियों को पहले ही दे-दिए जाते हैं। सेना की प्रेस विज्ञप्ति से स्पष्ट है कि पाकिस्तान को भी इसकी सूचना दी गई, जो जाहिर तौर से युद्ध की मंशा को नही दर्शाता है। सर्जिकल स्ट्राइक को खुले तौर से स्वीकारने का खतरा यह होता है कि संबंधित देश को भी प्रतिक्रिया के लिए मजबूर होने की स्थिति निर्मित हो-जाती है। 
 
ध्यान देने कि बात यह है कि ऐसे समय सोशियल मीडिया पर सावधनी से संदेशों का आदान-प्रदान होना चाहिए। अति-उत्साह में गलती की संभावना अधिक होती है जो हमें युद्ध में भी धकेल सकती है। कुछ संदेश बहुत उग्र भी होते है, इस तरह के संदेश खूब प्रचारित होते है और यह भी नहींं सोचा जाता, कि इससे देश को जो नुकसान हो रहा है वो आतंकियों द्वारा किए जा रहे नुकसान से बहुत अधिक और अकल्पित है। 
 
सोशल मीडिया पर तैरते हुए ऐसे संदेश सेना तक भी पंहुचते हैं, जो उनके मनोबल को बढ़ाने की जगह कम करते हैं। शौर्य सामने की लड़ाई में जीत जाए पर पीछे की लड़ाई में हार ही जाएगा। किंतु हमारा युद्धोन्माद हमेशा पराए परिवार के जवानों के साहस और जीवन पर टिका होता है, तो हम सदैव भूल करते रहते है । भूल जायज है और यह इंसान की फितरत है, लेकिन सुधार अक्लमंदी है और अक्ल कि बिना पर ही हम चौपाए से आगे बढ़े हैं...।

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