नए बरस का उपहार

रीमा दीवान चड्डा 
सुंदर, आकर्षक, चमकदार, रंगबिरंगी चीजें भला किसे नहीं लुभाती। आकर्षक आवरण में लिपटा उपहार हाथ में आते ही हमारी उत्सुकता चरम पर होती है। इसके भीतर क्या......?? जमाना उपभोक्तावाद का है, बाजारवाद का है। हर जगह सही, व्यवस्थित, सुंदर सज्जा में लपेट कर सामान पहुंचाया जाता है।




सबकुछ लाइन से ऑनलाइन उपलब्ध है। हम चमक-दमक से भरे मंत्रमुग्ध से नित नई बातें जान रहे हैं, सीख रहे हैं, खोल रहे हैं। बात चाहे उपहार की हो या किसी सामान की, पैकेट खोलते ही हमारे चेहरे के भाव बदल जाते हैं। अरे, यह क्या??? कभी सामान खराब निकलकता है, कभी अपेक्षा से बहुत छोटा उपहार हाथ में होता है और हम मायूस हो जाते हैं...मन ही मन भुनभनाने लगते हैं...कई बार आक्रोश से भर जाते हैं...मन खट्टा हो जाता है।
 
बात उपहार की हो, चीजों की हो, व्यक्तियों की हो या आने वाले साल की। चमकते बाहरी आवरण का भीतरी सच उतना सुंदर, उतना प्यारा, उतना कीमती, उतना सही नहीं होता। आज द्वार पर फिर नया साल है दस्तक देता हुआ। वही चमकता आवरण, उत्साह से लबरेज दुनिया, स्वागत की उत्कंठा, भविष्य के गर्भ में जाने क्या छुपा है, पर उत्कंठा, उत्साह, रोमांच सब अपने चरम पर है।
 
मधुर ध्वनियों के साथ पग-पग बढ़ता, सदी का अगला बरस दुनिया में आने को उत्सुक है। हम सब इसे चमकीले आवरण में लपेट रहे हैं, गुब्बारों की रंगीनियों में ,चमकीले बल्बों की नयनाभिराम लड़ियों में सजा रहे हैं। मिष्ठानों की सुगंध से वातावरण महकने लगा है, चहल पहल बढ़ गई है, उपहार भी कोई छोटा-मोटा नहीं है। पूरे 365 दिनों का उपहार, नई सज्जा में हमारे सामने है, बिल्कुल सामने। कल के बाद यही हमारे हाथों में होगा। इस उपहार की बाहरी चमक जैसी है वैसी ही अंदर भी हो तो कितना अच्छा हो। उसी तरह हर सुंदर चेहरे के भीतर सुंदर-सा मन हो तो कितना अच्छा हो। ऊपरी सज्जा के इस चमकीले दौर में, आइए भीतर को संवारें। सामान को सुंदर के साथ उपयोगी भी करें। उपहार हो, प्यार हो, रिश्ते हों, घर द्वार हो, मन हो, संसार हो हर जगह केवल और केवल सच्चा सौंदर्य विद्यमान हो। 
 
नए साल का भीतरी सच भी उसकी पहली सुंदर सुबह-सा सुरभित, सौंदर्यमयी हो, तो सबके लिए सुंदर बाहरी आवरण और सुंदर ही भीतरी सच का जीवन.असंभव तो नहीं ना! आइए स्वच्छ, निर्मल, पवित्र मन से नए वर्ष के इस चमकीले आवरण को खोलें और स्वागत करें उससे भी सुंदर...और सुंदर सच के जीवन का। अच्छे मन का, सुमन की तरह सु-मन का, हर अच्छे नए पल का।

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