- सुयश मिश्रा
संसद लोकतंत्र का पवित्र मंदिर है जिसमें जनता-जनार्दन की निराकार शक्ति विराजती है। हमारे समस्त सांसद जनप्रतिनिधि चाहें वे किसी भी धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्र या वर्ग से संबंधित हों, उसी जनशक्ति के पुजारी हैं और उसे प्रसन्न करके उसकी कृपा पाने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते हैं।
सत्ता पर काबिज रहने और सत्ता हथियाने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष की तनातनी कहां तक उचित है? साधारण जनता की दृष्टि में सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। भूमिका बदलते ही स्वर बदल जाते हैं। अपनी नाकामी का ठीकरा दूसरे के सिर पर फोड़ते हैं। शायद यही कारण है कि लोकतंत्र के मंदिरों- विधानसभाओं और संसदीय सदनों में हमें जब-तब अमर्यादित व्यवहार और अनुशासनहीनता दिखाई दे जाती है।
अमर्यादा और अनुशासनहीनता का ताजा उदाहरण वर्तमान प्रधानमंत्री के बयान के बीच कांग्रेसी सांसद रेणुका चौधरी के ठहाके लगाने, जोर-जोर से हंसने का है। संसद और प्रत्येक सांसद की अपनी गरिमा है, मर्यादा है, प्रधानमंत्री पद का अपना गौरव है। इस प्रकार का अकारण उपहास उपर्युक्त उच्च पदों की गरिमा के प्रतिकूल है। सत्तापक्ष अथवा विपक्ष किसी के भी तथ्यरहित, अप्रमाणित, अपुष्ट व भ्रामक कथन संसदीय मर्यादा के अनुरूप नहीं कहे जा सकते, न ही किसी भी माननीय सदस्य के वक्तव्य पर किसी का अकारण हंसना उचित ठहराया जा सकता है।
खबर है कि रेणुका के ठहाके पर प्रधानमंत्री की टिप्पणी के लिए विशेषाधिकार हनन का मामला उठाया जाएगा और विपक्ष माफी मांगने का दबाव बनाएगा। यह पूर्ण प्रकरण मीडिया के माध्यम से देख-सुनकर ऐसा लगता है, मानो ये संसद की घटना न होकर माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की कक्षा का मामला हो जिसमें पहले कोई शरारती छात्रा शरारत करे और फिर जब कोई उसे ऐसा करने से रोकना-टोकना चाहे तो वह उसके विरुद्ध लिंगभेद का आधार देकर शिकायत दर्ज कराए।
विचार करना होगा कि जनता की गाढ़ी कमाई से चलने वाली संसद में ऐसी बचकानी हरकतें कब तक बर्दाश्त की जाएंगी? जब चुने हुए जनप्रतिनिधि संसद में अमर्यादित आचरण करते हैं तब उनके अनुयायी छुटभैये नेताओं, कार्यकर्ताओं और झंडाबरदारों से शालीनता की आशा कैसे की जा सकती है? शांतिप्रिय भारतीय समाज में दिन-पर-दिन बढ़ते जा रहे उग्र और हिंसक प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि में हमारे कथित गणमान्य नेताओं की यही अनर्गल बयानबाजी और अनुशासनहीनतापूर्ण कार्यशैली सक्रिय है।