पोहा दिवस स्पेशल : असल इंदौरी का प्यार और पहचान है पोहा

इंदौर और पोहा... दुनिया में इंदौर को अपनी और दूसरी खूबियों के साथ खास पोहे के लिए जाना जाता है। यदि कोई इंदौरवासी पोहा, जीरावन, सेंव, जलेबी से दूरी रखता है तो वो असल इंदौरी हो ही नहीं सकता। हमारे यहां तो यदि डॉक्टर भी डाइटिंग या खाने में परहेज बताए तो इंदौरी उसमें पोहा-सेंव की छूट जान की परवाह किए बिना मांगते हैं। सेंव पोहे की जान है, जीरावन धड़कन, नीबू का रस और उस पर डालें प्याज-कोथमीर, अनारदाने के साथ बाकी और मनमानी, मनचाही लच्छेदार सब्जियां इसका सौन्दर्य। 
 
ये प्लेन केवल सिंपल बघार के आलावा, प्याज, मटर, आलू, मूंगफली के दाने के साथ भी बनाए जाते हैं। ज्यादा ही श्रद्धा हो तो काजू-किशमिश भी डाल सकते हैं। जब इसका राई, जीरा, सौंफ, खड़ा धनिया, हींग, लौंग, हरीमिर्च, काली मिर्च, तेजपत्ता, अन्य कई खड़े खुशबूदार गरम मसालों के बघार/तड़का, और शक्कर, नमक, हल्दी का मिलन जब अपनी खुशबू से आपको अपनी तरफ खींचता है न तो शार्तिया आपकी भूख आपको उसकी तरफ बेतहाशा खींचते हुए ले जाएगी। 
 
इंदौर की कोई गली, कोई कोना ऐसा नहीं होगा जहां पोहे की कड़ाही या गुमटी/ठेले न हों। यहां तक कि मॉर्निंग वॉक या जिम से लौटने के बाद यदि पोहा-जलेबी ना खाया तो अधूरा ही रहा। 
 
सुबह की दिनचर्या की शुरुआत ही शगुन के तौर पर पोहा-जलेबी है। इसे यदि हम उसल के साथ खाएं तो सोने पे सुहागा। इंदौर में कई नामी-गिरामी दुकानों में उसल-पोहा अपनी लाल तीखी ‘तरी’ के साथ सी-सी करते खाते लोगों को देखा जा सकता है। ये उसल मूंग, मोंठ, मटर से, तेज बघार के साथ रसेदार बनाया जाता है। यही नहीं पोहे में कचोरी चूरकर खाने का भी अपना ही अलग मजा है। उसके साथ खट्टी-मीठी हरी मिर्च मिल जाएं तो जीने को कुछ और मानो अब चाहिए ही नहीं।
 
आप यदि सुबह-सुबह किसी गली या होटलों के आगे से निकल रहे हैं तो उनके आगे सुस्वागतम की रंगोली, शुभ-लाभ की तरह बड़ी-बड़ी कड़ाही में भाप के तपेलों पर रखे ये नीबू-पीले कलर का, हरे रंग के कोथमीर, नारियल, गाजर, अनार के दानों, नीबू के टुकड़ों व अन्य कोई सीजनल सलाद-सब्जियों से सजे इस अमृत तुल्य नाश्ते के दर्शन जरूर हो जाएंगे। सबकी अपनी, अपने स्वादानुसार दुकानें फिक्स होती हैं। शौकीन लोग इंदौर भर की दुकानों के स्वाद को बारी-बारी से आजमाते नजर आते हैं। पेट भर जाता है पर मन नहीं भरता है। कहीं-कहीं मंदिरों के पट खुलने के समय जैसे कुछ खास प्रसिद्ध दुकानों के भी समय फिक्स होते हैं। पर अब कई जगहों पर चौबीसों घंटे आपको पोहे की सेवा हाजिर है।
 
पोहे के इतिहास में यदि जाएं तो इंदौर जिले में स्थित महू में सेना की छावनी में नाश्ते में पोहा दिया जाता था, क्योंकि अंग्रेजों ने पोहे को पूर्ण नाश्ता माना था, जब महाराष्ट्र के व्यापारी इंदौर ज्यादा आने लगे तो उनमें से एक ने राजबाड़ा के पास स्थित यशवंत रोड़ पर पोहे की पहली दुकान खोली थी जो आज तक चल रही है। शुरू से पोहे का स्वाद इंदौर के लोगों को खूब भाया। आजादी के बाद दस वर्षों में इंदौर में लगभग पचास दुकानें पोहे की हो चलीं थीं, लेकिन 1960 में देश में चावल की कमी होने के कारण सरकार ने पोहे के निर्माण पर प्रतिबंध भी लगा दिया था। हालांकि ये प्रतिबंध एक वर्ष भी नहीं रहा और तब से पोहे के व्यापर ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। आज हमारे इंदौर में कम से कम हर 100 मीटर पर एक पोहे की दुकान मिल ही जाती है। 
 
इंदौरी खान-पान की बात हो और उसकी संगत में किसी मीठे का कॉम्बिनेशन न हो तो हमारे यहां तो अपशगुन की श्रेणी में आता है। हर खाने के साथ हमारे यहां मीठे का कॉम्बिनेशन भी फिक्स है। जैसे दाल-बाटी-चूरमा, दाल-बाफले-लड्डू वैसे ही पोहा-जलेबी। यदि ये शुद्ध देशी घी में बनी हो तो माशाअल्लाह स्वाद दोगुना हो जाता है। ठंड के दिनों में इसी जलेबी को गाढ़े ओटे हुए केसर-पिस्ता युक्त दूध में डुबो कर खाया जाता है। रंगत, खुशबू और जायके के लिए जलेबी भी इलायची व केसरयुक्त बनाई जाती है। जैसे पोहे की वैरायटी इंदौर में उपलब्ध है, वैसे ही इसमें डालने वाली सेंव और जलेबी की भी वैरायटी आपको मिलेंगी। जैसे आपको स्वाद चाहिए वैसे आप अपने खाने के लिए इसे तैयार करवा सकते हैं। तेज मिर्ची, फीके, उसल वाले, कचोरी मिक्स।
 
सेंव संग पोहा मिले, धनिया संग रहे प्याज
नीबू संग जीरावन हो, तो बचे ना कोई आस।
 
अनार के दाने डलें, बुझ जाए मन की प्यास
इंदौर का तो पोहा है, सकल जगत में खास।
 
यारों संग इंदौरी खाएं, राजबाडे के पास
उसल जब संग मिल जाए, बचे ना कोई आस।
 
इंदौर की खान-पान सेवा का जहां भी उल्लेख या इतिहास लिखा जाएगा उसमें पोहा उसकी शान रहेगा। कम कीमत में अमीर-गरीब सभी के पेट को भरने वाला यह पोहा हजारों लोगों के रोजगार का साधन भी है। इसी पोहे ने कई लोगों को मालामाल किया है। इस कमाई पर कोई टेक्स भी नहीं। कोई हिसाब-किताब भी नहीं। सभी झंझटों से मुक्त। 
 
इंदौर में पोहा-जलेबी के ठिए सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक चर्चाओं के केंद्र भी हैं। ये पोहा हम इंदौरियन का दिल है। हमारे लिए पोहे बिना जीना काला पानी की सजा के समान है। भगवान हम इंदोरियों को कभी भी पोहे-जलेबी से वंचित न करें। जब तक जिएं पोहे-जलेबी का आनंद हमें मिलता रहे...तो भियाओं जब भी आओ इंदौर तो पोहे-जलेबी के साथ आपका स्वागत है...जीरावन, सेंव, उसल-तरी, कचोरी और उसके बाद एक कट गर्मागर्म चाय के साथ....। 

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