नेताजी जो कल तक रसूखदारों के पीछे-पीछे जयकारे लगाते हुए घूम रहे थे। समय पलटा चरणचुम्बन करते-करते नेताजी को विधानसभा के चुनाव में करोड़ों की रकम जिसे राजनीति की भाषा में पेटी कहा जाता है, उसके बदौलत तथा शहर की कई एकड़ जमीन की सौदेबाजी के बाद टिकट दे दी गई।
नेताजी पहले से ही धनाढ्य माने जाते रहे हैं, इसके साथ ही राजनीति के छोटे-मोटे चुनाव में मशक्कत कर स्थानीय जनप्रतिनिधि चुने गए तो वहां जमकर लूटे-खसोटे और बैंक बैलेंस के साथ ही अन्ध समर्थकों का जनसमर्थन हासिल कर उनके चाय-पान, सुरापान की व्यवस्था करने के लिए दिन दोगुनी-रात चौगुनी तरक्की कर जनता को खून के आंसू रुलाए थे।
पार्टी की टिकट से जोर-जुगाड़, जात-पात, रुपिया-कंबल-साड़ी, चुनावी देशी ठर्रा की खेप और अपनी पार्टी के जन्मजात बंधुआ मजदूरों- गुलामों जो दादा-परदादा के जमाने से पार्टी की भक्ति में लीन होकर अपने कट्टर समर्थक होने का प्रमाण पत्र जारी करने वालों के मतदान के अमूल्य सहयोग से चुनावी बिसात में कूद पड़े।
अब होना क्या था कि भगवान की भी अच्छी-खासी कृपा रही, जिससे जनता-जनार्दन अर्थात् जिसको चुनाव के बाद उधेड़ा जाएगा के मतदान और हथकंडों के बदौलत नेताजी विधायक बन गए। जब जीते तो उनके अन्ध समर्थक खूब नाचे और गाए तथा नेताजी भी चुनावी थकान मिटाने के लिए शुध्द विलायती शराब के जाम छलकाकर निद्रा में चले गए।
कुछ दिनों बाद जब नेताजी नींद से जागे तो उन्हें ध्यान आया कि हम विधायक बन चुके हैं इसलिए उन्होंने अधिकारियों से मुलाकात प्रारंभ कर साफ शब्दों में इत्तिला दी कि अब हमारे कायदे-कानून और नियम विधिवत लागू होने चाहिए। विधायक शब्द की व्याख्या करते हुए उनके एक समर्थक ने हमसे बतलाया कि देखो! भई हमारे ह्रदय सम्राट, दु:ख-सुख के नियंता के द्वारा घोषणा की जाती है कि आज दिनांक से पूज्य विधायक जी अर्थात्-
वि-विश्वास हासिल कर धा-राजनीति को धर्म मानने का ढोंग करने वाला य-यतीमों (गरीबों) का रहनुमा बनकर उनको लहुलुहान करने में अव्वल क-कुटिलता के सबसे बड़े नामधारी बहरूपिया जो केवल अब से काण्ड करने के लिए जाने जाएंगे
इसलिए जनता अब सैकड़ों फुट की दूरी बनाकर रहे, बाकी चुनाव में सबको देख लिया जाएगा।
नेताजी के शीश महल से ऐसी घोषणा सुनकर उनके घर के आस-पास बैठने वाले परिन्दें भी जान-बचाकर भाग गए कि कहीं इस विधायक रुपी शिकारी के हम भी शिकार न बन जाएं। जैसा कि विधायक जी की व्याख्या स्पष्ट ही हो चुकी हैं, इसलिए अब इसके बारे में ज्यादा कुछ कहना-हम ठीक नहीं समझ रहे।
नेताजी-अरे! माफ करिएगा, विधायक जी अब विधानसभा पहुंचे तो उन्हें बंगला मिला, गाड़ी मिली और जो रसूख बना कि पांव जमीन पर नहीं टिकने वाले थे।
विधायक जी जनसेवा के लिए चले तो काफिला ही बन गया लेकिन जिन गांवों एवं गलियों में चुनाव के दौरान मतदाता बन्धुओं के साष्टांग दण्डवत होते थे, आज इतना बड़ा परिवर्तन आया कि रसायन शास्त्र की भाषा में उत्क्रमणीय अभिक्रिया शुरू हो गई तो वे सभी मतदाता बन्धु विधायक जी के चरणों में शीश झुका रहे थे।
नेताजी ने कुटिल मुस्कान छोड़ी और अपने समर्थक कार्यकर्ताओं के साथ फोटू खिंचवाकर सोशल मीडिया में शिलान्यास, भूमि-पूजन का शिगूफा छोड़ दिए। नेताजी के भाषण की तरह ही इतिहास गवाह है कि अब आपके यहां विकास की बयार बहेगी कहकर विधायक जी गाड़ियों के काफिले के साथ छू-मंतर हो गए जिससे उड़ती हुई धूल में चुनावी जनता जनार्दन के मुंह में कालिख लग गई। लेकिन आज तक जहां-जहां विधायक जी ने अपने कदम रखे वहां-वहां की जनता मुंह ताकती ही रह गई कि शायद विकास नामक प्राणी हमारे इधर कभी विचरण करे जिससे हम कृतार्थ हो सकें!!
नए-नवेले विधायक जी के कोई जलवे देखे तो वो वहीं चक्कर खाकर गिर जाएगा। लोग यदि अपने किसी काम की आस लगाकर विधायक जी के यहां गए भी तो जीवन भर के लिए याद रखेंगे, क्योंकि विधायक जी ने अपने यहां कार्यरत कर्मचारियों और सागिर्दों को स्पष्ट शब्दों में कह रखा कि विधायक शब्द की व्याख्या का अक्षरशः पालन किया जाए।
इसलिए जो भी अपने काम को लेकर उनके निवास पहुंचा उसे यही बतलाया गया कि विधायक जी विधानसभा के सत्र के लिए गए हुए हैं। बाकी सत्र में भी विधायक जी खर्राटे लेने के लिए कुख्यात हैं। ज्यादातर मतदाता बन्धु उतने समझदार तो हैं नहीं कि विधानसभा कोई बारहमासी फल तो हैं नहीं कि हमेशा रहेगी, उसके पृथक-पृथक सत्र होते हैं।
बात इतनी ही नहीं विधायक जी अपने निवास में खर्राटे मार रहे होते हैं, इसलिए उनकी नींद में दखल तो होना ही नहीं चाहिए अन्यथा जो भी आया होगा वो उनके क्रोध का भागी बनेगा।
बाकी उनके क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली फैक्ट्रियां, अवैध खदानें, भू-माफियागीरी, नशे का कारोबार, सरकारी ठेके एवं योजनाओं के कार्यान्वयन में नक्की का प्रायोजन समेत जितने भी अनैतिक कार्य जो जनता को जमींदोज करने के लिए होते हैं, उनमें विधायक जी के बकायदे परसेंटेज फिक्स है जिसे समय-समय पर उनके नुमाइंदे पहुंचाते रहें और विधायक जी की कृपा का अभयदान पाकर जनता को नेताजी के साथ मिलकर त्रस्त करें।
विधायक जी बहुत बड़े धर्मात्मा भी माने जाते हैं, इसलिए उनकी धार्मिकता का डंका चारो दिशाओं में गूंजता है।
उनकी धार्मिक प्रवृत्ति के कारण ही धार्मिक स्थलों की जमीनें बिक चुकी हैं, ऊपर से बकायदे आश्रमों में भक्तों द्वारा चढ़ाए जाने वाले परसाद के टोकरे बड़े ठसक से उनके पुस्तैनी मकान में पहुंचते हैं, जिससे उनके यहां पहुंचने वालों का नाश्ता-पानी हो जाता है। मल्लब ये समझिए कि धर्म का डंका रणभेरी की तरह गूंजता है, और उनके चम्मच कहे जाने वाले सागिर्द बड़े जोर-जुलूस के साथ विधायकी की चमचई के नगाड़े पर थाप देते हैं।
वाकई अब ऐसे जनप्रिय! विधायक की जनसेवा के इन कारनामों को मुखरित होकर जनता के बीच उपलब्धियों में अंकित कर स्वर्णाक्षरों से न लिखा जाएगा तो खाक! कुछ किया जाएगा? अगर न लिखा गया तो कहीं विधायक की भ्रकुटी टेढ़ी न हो जाए, अब भ्रकुटी टेढ़ी हुई तो क्रोधाग्नि से सब कोई भस्म हो जाएगा। इसलिए हम भी सिफारिश कर रहे हैं कि विधायक के नखरों को सर आंखों पर उठाकर विलायती के साथ जश्ने-विधायकी मनाया जाए।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)