*6 महीने पहले तक कांग्रेस में सत्ता के 3 केंद्र होते थे- कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया। सिंधिया भाजपा में चले गए, दिग्विजय को कमलनाथ ने रास्ता दिखा दिया और अब वे 'एकला चलो' की नीति का अनुसरण कर रहे हैं। इससे इतर भाजपा में अब 3 शक्ति केंद्र हो गए हैं। पहले शिवराज सिंह चौहान, दूसरे नरोत्तम मिश्रा और तीसरे वीडी शर्मा-सुहास भगत की जोड़ी। यहां अब ठीक कांग्रेस जैसे हालात हैं और शह और मात के खेल में कौन कब किसको निपटा दे, कहा नहीं जा सकता।
*दिग्विजय सिंह के कारण पिछले विधानसभा चुनाव में सुसनेर से राणा विक्रम सिंह को कांग्रेस का टिकट नहीं मिल पाया था और वे बागी होकर चुनाव जीते। अब राज्यसभा के चुनाव में दिग्विजय सिंह उम्मीदवार हैं। पिछली सरकार में विक्रम कांग्रेस के साथ थे, पर अभी स्थिति अस्पष्ट है। पिछले दिनों उनके अग्रज का निधन हो गया। कमलनाथ ने फोन पर संवेदना व्यक्त कर दी, दिग्विजय सिंह ने उनसे मिलने जाने का कार्यक्रम बनाया लेकिन इसके पहले ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वीडी शर्मा को लेकर सुसनेर पहुंच गए और संवेदना व्यक्त कर लंबी गुफ्तगू कर आए। अब सबको इंतजार है राज्यसभा चुनाव में विक्रम सिंह के रुख का।
*इंदौर में 4 अलग-अलग भूमिकाओं में सफल पारी खेलने वाले आकाश त्रिपाठी की इस दौर में इंदौर के संभाग आयुक्त पद से विदाई किसी के गले नहीं उतर रही है। उन्हें हटवाने की कोशिश में लगे लोगों ने सत्ता के शीर्ष पर आखिर क्या चक्कर चलाया, यह समझना बड़ा मुश्किल है। 'काम बोलता है' के फॉर्मूले पर काम करने वाले त्रिपाठी इसी कारण हमेशा मुख्यमंत्री के प्रिय पात्र रहे हैं, चाहे वे शिवराज सिंह चौहान हों या फिर कमलनाथ।
*समाज में वर्चस्व का मामला भी कभी-कभी बड़ी परेशानी खड़ी कर देता है। पिछली बार जब खाती समाज ने जीतू पटवारी पर दबाव बनाया तो अपनी सीट सुरक्षित रखने के चक्कर में उन्हें मनोज चौधरी के टिकट के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा। अब मनोज ने भले ही पार्टी बदल ली हो लेकिन समाज तो फिर भी उन्हें विधायक के रूप में देखना चाहता है। ऐसे में पटवारी की परेशानी बढ़ना ही है, क्योंकि इस बार वे मनोज का साथ दे नहीं सकते और अगला चुनाव उन्हें फिर राऊ से ही लड़ना है, जहां खाती वोट ही हार-जीत तय करते हैं।
*पुष्यमित्र भार्गव का तो अतिरिक्त महाधिवक्ता बनना तय ही था, पर विवेक दलाल कहां से मैदान मार गए यह समझ में देर से आया। पहले मददगार तो थावरचंद गहलोत बने और बाकी का काम उन दिग्गजों ने पूरा कर दिया जिन्हें मालूम था कि यदि इस बार विवेक दलाल को मौका नहीं दिया तो उनकी परेशानी बहुत बढ़ जाएगी। बड़े साहब यानी पिता मनोहर दलाल की तरह विवेक भी 2-5 लोगों की नब्ज तो दबाकर रखते ही हैं। इस घराने के लिए एसआर मोहंती के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाना भी फायदेमंद रहा।
*सही पद के लिए सही पसंद। रिटायरमेंट के 10 दिन के भीतर ही राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्य पद पर रिटायर आईजी डॉ. रमन सिंह सिकरवार की नियुक्ति को सरकार का बहुत अच्छा फैसला माना जा रहा। पिछले 15 साल के अनुभव को देखा जाए तो आयोग में हमेशा संघ की पसंद को तरजीह मिली है। संघ ने इस बार भी 2 नाम आगे बढ़ाए लेकिन इनमें से 1 को ही मिला। मुख्यमंत्री की पसंद पर डॉ. सिकरवार और संघ की पसंद पर डॉ. मरकाम को सदस्य बनाया गया। मामला 50-50 पर निपटा।
*गुड्डू घराने यानी प्रेमचंद गुड्डू के परिवार में इन दिनों जो हालात हैं, उसने गुड्डू समर्थकों के साथ ही कांग्रेसियों को भी पसोपेश में डाल रखा है। उनके दरबार में रोज दस्तक देने वाले ही बताते हैं कि इन दिनों बेटे अजीत की ज्यादा चल नहीं रही है। पत्नी और बेटी सूत्र अपने हाथ में रखना चाहते हैं। कोई कुछ कहता है, कोई कुछ चाहता है। ऐसे में परेशानी तो मैदान में काम करने वालों की बढ़ना ही है, क्योंकि घर की राजनीति का असर बाहर तो पड़ता ही है।
*उज्जैन सीट से डॉ. चिंतामणि मालवीय को खो करने वाले सांसद अनिल फिरोजिया अब आगर में भी उनका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। मालवीय की निगाहें अब आगर सीट पर हैं, जहां जल्दी ही उपचुनाव होना है, पर फिरोजिया ने यहां से अपनी बहन रेखा रत्नाकर का नाम आगे बढ़ा दिया है, जो पहले यहां से विधायक रही हैं। दिवंगत मनोहर ऊंटवाल के बेटे भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। ये दोनों पिछले दिनों जब मुख्यमंत्री शोक व्यक्त करने सुसनेर पहुंचे तो उनके दरबार में दस्तक देने से भी नहीं चूके।
*सचिन अतुलकर को डीजीपी विवेक जौहरी की नाराजगी के कारण उज्जैन का एसपी पद गंवाना पड़ा था। अतुलकर अब डीजीपी के स्टाफ ऑफिसर हैं और यह तय माना जा रहा है कि भविष्य में जब भी इरशाद वली के स्थान पर भोपाल के एसएसपी डीआईजी पद के लिए किसी को मौका मिलेगा तो उसमें अतुलकर का ही नाम पहले नंबर पर रहेगा। अब जरा यह पता लगाइए कि आखिर डीजीपी उनसे नाराज क्यों हुए थे?
चलते-चलते...
*कमलनाथजी थोड़ा अलर्ट रहिए। राज्यसभा चुनाव के ठीक पहले आपकी पार्टी से ताल्लुक रखने वाले 2 विधायक भाजपा का दामन थाम सकते हैं। इनमें से एक राजगढ़ जिले से हैं तो दूसरे निमाड़ से। बस इतना 'इशारा' ही काफी है।
*इंदौर का संभाग आयुक्त बनने के लिए जो आईएएस अफसर रेस में थे, उन्हें डॉ. पवन कुमार शर्मा ने कैसे पीछे छोड़ा, यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक दिग्गज ही बता पाएंगे।
पुछल्ला...
रिश्ते में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दामाद आईपीएस अफसर आशुतोष प्रताप सिंह के एसपी बनने की फाइल भी कहीं गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा के पास 'पेंडिंग' तो नहीं हैं?
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)