शिवराज के दांव से आंदोलन से अलग हुआ एक बड़ा किसान नेता

बात यहां से शुरू करते हैं : अपने मास्टर स्ट्रोक के लिए मशहूर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसान आंदोलन से एक बड़े नेता वीएम सिंह को अलग करने में महती भूमिका अदा की है। वीएम सिंह किसानों का एक बड़ा और सक्रिय संगठन चलाते हैं। 26 जनवरी की हिंसा के बाद वीएम सिंह ने आंदोलन से अलग होने का ऐलान कर दिया। असल में इसके पीछे की कहानी ये है कि वीएम सिंह की मध्यप्रदेश में सैकड़ों एकड़ जमीन है, जिसको लेकर उनकी अपनी चचेरी बहन मेनका गांधी के साथ कानूनी लड़ाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ महीने पहले वीएम सिंह के पक्ष में फैसला दिया है, लेकिन इस निर्णय को मध्यप्रदेश सरकार मेनका गांधी के दबाव में उस तरह लागू नहीं करवा रही जैसा वीएम सिंह चाहते हैं। इस सिलसिले में वीएम सिंह मध्यप्रदेश के कई बड़े नेताओं से मदद मांग चुके हैं। अब शायद मदद मिल जाए....!!
 
अब तो सज्जन की ही चल रही है : कमलनाथ जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब भले ही सज्जन सिंह वर्मा की पूछपरख कम रही हो, लेकिन इन दिनों तो कांग्रेस में वर्मा की तूती बोल रही है। इससे कांग्रेस के संगठन प्रभारी चंद्रप्रभाष शेखर का परेशान होना स्वभाविक है‌ क्योंकि कई निर्णय वर्मा की पसंद पर हो रहे हैं। नगरीय निकाय चुनाव इन दिनों कांग्रेस की सर्वोच्च प्राथमिकता पर है। इन चुनावों से जुड़े निर्णयों में वर्मा अहम भूमिका निभा रहे हैं। प्रदेश के सबसे बड़े नगर निगम इंदौर में पार्षद पद का टिकट चाहने वालों की भीड़ सबसे ज्यादा वर्मा के इर्दगिर्द ही देखी जा रही है। खुद वर्मा अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में जाकर कार्यकर्ताओं से रूबरू हो रहे हैं। कुछ ऐसा ही नजारा जब वे भोपाल में होते हैं तब उनके निवास पर रहता है। 
 
कभी-कभी संघ से भी गलती हो जाती है : सादगी और शुचिता के लिए ख्यात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने प्रचारकों को भाजपा में बहुत सोच-समझकर भेजता है। लेकिन कभी-कभी संघ का चयन भी गलत साबित होता दिखता है। संघ से भाजपा में भेजे गए और अब इंदौर में महत्वपूर्ण भूमिका में काबिज ऐसे ही एक शख्स का आरोपों के घेरे में आना कइयों को चौंका रहा है। वजह एक शॉपिंग मॉल में कुछ महीने पहले हुई करीब 52000 रुपए की खरीदी है। इसमें भी एक ब्रांडेड कंपनी के 8000 रुपए के जूतों ने पार्टी के ही कुछ लोगों को नियुक्तियों के मामले में उक्त पदाधिकारी पर उंगली उठाने का मौका दे दिया है। मामला वीडी शर्मा और सुहास भगत तक पहुंच चुका है। भोपाल में तो बाद में निपटा जाएगा फिलहाल तो कोशिश यह हो रही है कि पहले जो लोग उक्त पदाधिकारी के खिलाफ मुखर हैं उन्हें समझा-बुझाकर चुप कर लिया जाए। ‌
 
कोप भवन में दादा : कोप भवन में दादा दयालु। जी हां, विधायक रमेश मेंदोला इन दिनों कोप भवन में ही हैं। नगरीय निकाय चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश नेतृत्व द्वारा गठित समिति का सह संयोजक बनाए जाने के बाद से ही इंदौर में महापौर तक के लिए भाजपा के सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे दादा कोप भवन में ही हैं। इस समिति की बैठक में वे शामिल ही नहीं हुए। भाजपा के प्रदेश पदाधिकारियों की बैठक के दौरान विधायकों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की चर्चा से भी उन्होंने दूरी बनाकर रखी। कार्यालय में प्रभारी महासचिव मुरलीधर राव की मौजूदगी के दौरान भी दादा गैरहाजिर रहे। वैलेंटाइन डे के दिन जरूर कैलाश विजयवर्गीय उन्हें लेकर ओंकारेश्वर गए। दोनों ने कनकेश्वरी देवी के साथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन किए। 
 
छोटे फिर दौड़ से बाहर : छोटे यानी छोटे यादव एक बार फिर छोटे ही रह गए। कुछ दिनों पहले जब दिग्विजय सिंह इंदौर आए थे तब रेसीडेंसी कोठी पर कांग्रेस के लोगों से मिलते वक्त उन्होंने छोटे यादव को अपने पास बुलाकर कहा था- छोटे तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है। इस बार महापौर का चुनाव तुम्हें ही लड़वाएंगे। ‌दिग्विजय ने जब यह कहा था तब इंदौर का महापौर पद किस श्रेणी के लिए आरक्षित होगा, इसका फैसला नहीं हुआ था। पूर्व मुख्यमंत्री के चाहने के बावजूद शायद महापौर पद का चुनाव लड़ना छोटे यादव के भाग्य में नहीं था। इंदौर का महापौर पद सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हो गया और एक बार फिर छोटे यादव दौड़ से बाहर हो गए। ‌
 
उलझ सकते हैं राणा : एक बड़ी जांच एजेंसी के प्रमुख पद से हाल ही में सेवानिवृत्त हुए आईपीएस अफसर संजय राणा इसी एजेंसी से जुड़े कुछ मामलों में जांच में उलझते दिख रहे हैं। जांच भी उसी एजेंसी के हाथ में आ सकती है, जिसके किसी समय में वे सर्वेसर्वा रहे हैं। दरअसल सेवानिवृत्ति के पहले राणा ने भ्रष्टाचार के कई गंभीर मामलों की फाइल बंद कर दी। इसके पीछे जो तर्क दिए गए हैं वे भी बहुत चौंकाने वाले हैं। राणा के इस कदम से जिन लोगों को राहत मिली है उनमें से कई अफसर इंदौर के भी हैं और जो भ्रष्टाचार के लिए कुख्यात हैं। मामला लोकायुक्त के ध्यान में भी आ चुका है और सरकार भी इससे वाकिफ है। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि सेवानिवृत्ति के पहले ताबड़तोड़ लिए गए निर्णय राणा के लिए परेशानी का कारण बन जाएं। 
 
रेड्‍डी ने तो यह सपने में भी नहीं सोचा था : करीब 1 महीने पहले मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव रहे एम. गोपाल रेड्डी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते कांग्रेस के लिए फंड रेजर की भूमिका निभाना उनके लिए परेशानी का बहुत बड़ा कारण बन जाएगा। रेड्डी कई केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं और अभी तो भ्रष्टाचार के कुछ मामलों में गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया है। इसके पहले केंद्रीय एजेंसियों द्वारा तलब किए जाने पर रेड्डी ने खुद को कोरोना संक्रमित बताते हुए उपस्थित होने में असमर्थता जताई थी। केंद्रीय एजेंसियों के इस शिकंजे के बाद रेड्डी का तेलंगाना सरकार में आम भूमिका में आना भी टल गया है। 
 
कलेक्टरी के लिए बेताब अधिकारी : ऐसे समय जब प्रदेश के कई जिलों के कलेक्टर बदले जा चुके हैं और कुछ और बदले जाना हैं, दो विभागों के प्रबंध संचालक अपने-अपने निगम मंडलों से निकलने और कलेक्टरी पाने के लिए बहुत बेताब हैं। इनमें से एक हैं सीधी भर्ती वाले अफसर एस. विश्वनाथन और दूसरे बहुत अच्छा परफॉर्मेंस देने के बाद नरसिंहपुर से हटाए गए प्रमोटी आईएएस दीपक सक्सेना। यदि कलेक्टरों की पोस्टिंग में राजनीतिक सिफारिश के बजाय मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के मेरिट के फार्मूले को ही बरकरार रखा गया तो फिर आने वाले समय में इन दोनों अफसरों का कलेक्टर बनना तय है।
 
चलते चलते...: प्रदेश की दो बड़ी जांच एजेंसियों लोकायुक्त और ईओडब्ल्यू के डीजी राजीव टंडन और अजय शर्मा का एक ही दिन इंदौर में रहना और कुछ चुनिंदा लोगों से मुलाकात करना क्या संकेत देता है। इसी दिन लोकायुक्त के पूर्व डीजी अनिल कुमार भी इंदौर में ही थे। 
 
पुछल्ला : नगरीय निकाय चुनाव के पहले  कांग्रेसियों के बीच जो जूतम-पैजार शुरू हो गई है, उसके मद्देनजर कांग्रेस के बड़े नेता इस बात का पुख्ता इंतजाम करने में लगे हैं कि 21 फरवरी को कमलनाथ की मौजूदगी में इंदौर में होने वाला संभागीय सम्मेलन शांतिपूर्ण हो जाए। ऐसे आयोजनों को लेकर पुराना अनुभव अच्छा नहीं रहा है।

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