बढ़ सकती है सिलावट और राजपूत की मुश्किल

अरविन्द तिवारी
सोमवार, 12 अक्टूबर 2020 (22:40 IST)
बढ़ सकती है सिलावट और राजपूत की मुश्किल : जैसे-जैसे 21 अक्टूबर की तिथि नजदीक  आती जा रही है तुलसी सिलावट और गोविंद राजपूत के मंत्री पद को लेकर चर्चा तेज होने लगी है। संवैधानिक स्थिति के मुताबिक गैर विधायक 6 महीने से ज्यादा मंत्री नहीं रह सकता। यह अवधि 21 अक्टूबर को समाप्त हो रही है। जाहिर है, चलते चुनाव में इन दोनों की हैसियत पूर्व मंत्री की होने वाली है। कड़े मुकाबले में उलझे सिलावट और राजपूत की परेशानी इससे बढ़ना ही है। 
 
मप्र में दो नेताओं का गजब कॉन्फिडेंस : मध्यप्रदेश में इन दिनों दो ही नेताओं का कॉन्फिडेंस बड़ा चर्चा में है। एक हैं पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और दूसरी बसपा की विधायक राम बाई। कमलनाथ जहां उपचुनाव के बाद हर हालत में मध्यप्रदेश में कांग्रेस के सत्ता में वापस आने का दावा कर रहे हैं वहीं राम बाई का कहना है कि 28 में से 15 सीटें बसपा जीतेगी और इसके बाद हम तय करेंगे कि मध्यप्रदेश में सरकार किसकी बने। बड़ी मासूमियत के साथ वह यह कहती हैं कि जब हमारे दो विधायक कांग्रेस को सत्ता में ला सकते हैं तो फिर 15 विधायक होने पर तो हम अपनी सरकार भी बना सकते हैं। 
 
ताई ने तय की पार्टी में अपनी भूमिका : परिवार में काफी पहले ही दादी का दर्जा हासिल कर चुकीं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन यानी ताई ने अब भाजपा संगठन में भी अपनी भूमिका तय कर ली है। इसका खुलासा इंदौर में विधानसभा उपचुनाव के लिए तैयार किए गए वार रूम की शुरुआत के मौके पर खुद ताई ने ही किया। कहा, "जैसे परिवार में दादी बच्चों का ध्यान रखती है, अब पार्टी में मेरी भी यही भूमिका है। इस सिलसिले को आगे बढ़ाया भाजपा के वरिष्ठ नेता बाबू सिंह रघुवंशी ने। एक कार्यक्रम में उन्होंने भी खुद की भूमिका का निर्धारण करते हुए कहा कि मैं तो पार्टी के लिए जामवंत हूं। 
 
सरकारी अधिकारियों की भूमिका पर सवाल : इंदौर के खासगी ट्रस्ट की जमीनों के मामले में हाई कोर्ट के निर्णय के बाद कई सरकारी अफसरों की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार  ने मामला ईओडब्ल्यू को सौंपा है और लंबी जांच के बाद ही यह तय हो पाएगा कि जो अनियमितताएं हुई हैं, उसके लिए जिम्मेदार कौन है। इस दौर में 90 के दशक के अंत में इंदौर के संभाग आयुक्त रहे इकबाल अहमद का सरकार को लिखा वह पत्र जरूर चर्चा में है, जिसमें उन्होंने कहा था कि संभागायुक्त को ट्रस्ट में भूमिका दिए जाने का कोई औचित्य नहीं है और उन्हें ट्रस्ट से अलग रखा जाना चाहिए। कानून के बहुत बारीक जानकार माने जाने वाले इकबाल अहमद के इस पत्र का आशय अब समझ में आने लगा है। 
 
ओझा को मिल सकती है अहम भूमिका : सेवानिवृत्त हो चुके दो संभागायुक्त महेश चौधरी और जनक कुमार जैन के विस्थापन को लेकर तो कोई फैसला नहीं हो पाया, लेकिन इस महीने सेवानिवृत्त होने जा रहे ग्वालियर के पूर्व संभाग आयुक्त एमबी ओझा को सेवानिवृत्ति के बाद भी अहम भूमिका में देखा जा सकता है। ओझा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रिय पात्र अफसरों में से एक हैं और जल्दी ही उनकी आमद मुख्यमंत्री सचिवालय में हो सकती है। फिलहाल भोपाल में पदस्थ ओझा को ऐसे संकेत मिल चुके हैं। 
 
मध्यप्रदेश के एक और एडीजी घिरे : एक ऑडियो के सोशल मीडिया पर तेजी से प्रसारित होने के बाद शहडोल रेंज के एडीजी जी. जनार्दन की परेशानी बढ़ गई है। तेलुगू लाबी के दबदबे के कारण एडीजी पद पर पदोन्नति के बावजूद शहडोल जैसी छोटी रेंज का दायित्व संभाल रहे जनार्दन का शहडोल के ही सलीम कबाड़ी के साथ जो ऑडियो वायरल हुआ है और उसमे जिस तरह की भाषा का उपयोग सलीम कर रहा है उससे यह तो साफ हो गया है कि कोई दुखती नस दबा कर रखी गई है । वी मधु कुमार के मामले में सख्त फैसला लेने वाली सरकार इस मामले में क्या रुख अख्तियार करती है इस पर सबकी निगाहें हैं। 
 
हिट हुई 'विद्रोही संन्यासी' : 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले मध्यप्रदेश में सपाक्स जिस स्थिति में थी, उसका श्रेय आईएएस अफसर राजीव शर्मा के खाते में दर्ज है। हीरालाल त्रिवेदी के सक्रिय होने के बाद शर्मा ने सपाक्स में तो अपना दायरा सीमित कर लिया लेकिन पढ़ने लिखने से वास्ता बरकरार रखा। साल भर की इसी कड़ी मेहनत का नतीजा है उनकी बहुचर्चित पुस्तक विद्रोही संन्यासी। यह अपने सेगमेंट हिस्टोरिकल फिक्शन में टॉप टेन में है। विद्रोही सन्यासी पिछले तीन सप्ताह से amazon में सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में है। अंग्रेजी किताबों के 
जुलूस में यह इकलौती हिंदी क़िताब है जो टॉप रैंकिंग पर है और कुल किताबों में भी बेस्ट सेलर्स में शामिल है। 
 
सुर्खियों में है इंदौर का संगीत महाविद्यालय : जिस तरह कुछ विदेशी छात्राओं के सोशल मीडिया पर मुखर होने के बाद उमाकांत और अखिलेश गुंदेचा के ध्रुपद संस्थान पर उंगली उठी और मामला जांच के दायरे में आ गया उसी तरह अरुण मौरान्ने और सुनील मसूरकर के कारण देश में अपनी एक अलग पहचान रखने वाला इंदौर का शासकीय संगीत महाविद्यालय भी सुर्खियों में है। फर्क इतना है कि जब अखिलेश पर उंगली उठी तो उमाकांत ने उन्हें सारी जिम्मेदारियों से मुक्त कर घर बैठा दिया पर यहां जब मसूरकर पर उंगली उठी तो पता नहीं 
किन कारणों से मौरान्ने उनके बचाव में आ गए। यही कारण है कि 5 पंचों की मौजूदगी में मसूरकर द्वारा लिखे गए माफीनामा के बाद भी इस जुगल जोड़ी के कारण शिकायत करने वाले छात्र खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
 
चलते चलते : हैरत की बात है कि पुलिस मुख्यालय में डीआईजी रैंक के अफसरों की भरमार के बावजूद जबलपुर, बालाघाट और होशंगाबाद रेंज के साथ ही महिला अपराध में इंदौर भोपाल, जबलपुर और रीवा में डीआईजी के पद खाली पड़े हैं।
 
मंत्रीजी को अब नए ओएसडी की तलाश : परिवहन आयुक्त और अपर परिवहन आयुक्त के निजी सहायक रह चुके नीलकंठ खर्चे परिवहन मंत्री गोविंद राजपूत के ओएसडी की भूमिका में आने के पहले ही कोरोना संक्रमित होकर दुनिया को अलविदा कह गए। मंत्री जी को अब तलाश नए ओएसडी की है।
 
पुछल्ला : स्पेशल डीजी पुरुषोत्तम शर्मा एपिसोड के बाद आईएएस और आईपीएस अफसरों में अपने विरोधी अफसरों की महिला मित्रों के चेहरे उजागर करने की होड़ लग गई है। पता कीजिए निशाने पर कौन-कौन हैं।

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