सुदीक्षा भाटी की मौत गुम हो जाएगी, खो जाएगी। उसके मां-बाप अपनी बेटी के टूटे हुए सपनों को गोद में रखकर सुबकते रहेंगे जिंदगीभर।
एक गरीब बाप अपनी बेटी खो चुका है, उसके साथ उसके सारे सपने भी खो गए हैं। एक मां की जिंदगी में बेटी की मौत की टीस हमेशा के लिए रह जाएगी। एक लड़की अभी महज 20 साल की थी, उसने अभी जीने की शुरुआत भी नहीं की थी और वो चली गई, एक बेहद ही छिछोरी हरकत की वजह से।
सुदीक्षा भाटी गरीब परिवार से थी। जब उसने बारहवीं कक्षा में 98 प्रतिशत हासिल किए और उसे 4 करोड़ की स्कॉलरशिप लेकर वो पढ़ाई के लिए अमेरिका गई तो इस गरीब परिवार ने सपने देखने शुरू कर दिए।
लेकिन चाय बेचने वाले और ढाबे पर काम करने वाले दीक्षा के पिता और उसकी मां को शायद पता नहीं था कि गरीब परिवार को सपने देखने का हक नहीं है।
अपनी बेटी खो देने के बाद अब इस परिवार के बस में कुछ नहीं रहा। कुछ नहीं बचा, लेकिन अब जो होगा, वो मीडिया ट्रायल और राजनीति।
न्यूज चैनल पर कानून-व्यवस्था को लेकर बहस होगी। विपक्ष के नेता सत्ता पक्ष पर कानून-व्यवस्था का आरोप लगाएंगे। सत्ता पक्ष के कुछ लोग अपनी सफाई देंगे। पुलिस पर सवाल उठेंगे। पुलिस अपनी बात कहेगी। उत्तर प्रदेश में गुडांगर्दी और छेड़खानी के आंकड़े पेश किए जाएंगे। इतने साल में इतनी लड़कियों के साथ इतनी बार छेड़खानियां हुईं।
टीवी चैनल उसके सनसनीखेज फूटेज जुटाकर अपनी टीआरपी बढाएंगे, प्रबुद्धवर्ग दीक्षा को बहुत होनहार बताएंगे, ट्विटर पर #justiceforsudeeksha ट्रेंड करेगा, जैसा कि करने भी लगा है।
इन्हीं सब के बीच सुदीक्षा भाटी की मौत गुम हो जाएगी, खो जाएगी। उसके मां-बाप अपनी बेटी के टूटे हुए सपनों को गोद में रखकर सुबकते रहेंगे जिंदगीभर।
अगर कहीं कुछ नहीं बदलेगा तो वो है हमारी मानसिकता। हमारा सिस्टम। हमारा सलीका। जिंदगी के प्रति हमारी क्रूरता, हमारी असंवेदनशीलता। मौत को अपने फायदे के लिए ग्लोरिफाई करने की हमारी आदत। हमने एक मौत की बहस में बहुत बढ़-चढ़कर हिस्सा ले लिया, टीवी पर बयान दे दिया, ट्विटर पर एक रेस्ट इन पीस लिख दिया और हो गए अपनी जिम्मेदारी से बरी।
एक पिता, एक मां और एक गरीब परिवार जिसका सपना कूचल दिया गया है बेहद बेदर्दी के साथ उसे देने के लिए हमारे पास यही सब था, खूले आसमान में उड़ने के सपने देखने वाली एक बेटी की मौत की यही कीमत थी!