भारत देश पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रहा है जिसमें तरक्की की गगनचुंबी इमारतों से लेकर सरपट दौड़ती बुलेट ट्रेन का स्वप्न, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के सहारे देशवासियों के लिए आधारभूत सुविधाओं को जुटाना, राष्ट्रीयता की स्थापना से लेकर आतंक से मुक्ति का महामृत्युंजय मंत्र भी जपा जा रहा है।
इन्हीं सब प्रगति के विशाल आकाश में मोहनदास करमचंद गांधी के स्वप्नों का 'स्वच्छ भारत' भी अपना आकार ले रहा है। स्वस्थ जीवन जीने के लिए स्वच्छता का विशेष महत्व है। स्वच्छता अपनाने से व्यक्ति रोगमुक्त रहता है और एक स्वस्थ राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है। अत: हर व्यक्ति को जीवन में स्वच्छता अपनानी चाहिए और अन्य लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना चाहिए।
शरीर की स्वच्छता से लेकर मन की स्वच्छता और यहां तक कि धन की स्वच्छता से मिलकर भी भारत के पुनर्निर्माण की नींव रखी जा सकती है। ग्राम, नगर, प्रांत की गंदगी समाप्त होने के बाद ही राष्ट्र का स्वस्थ होना संभव है। तन-मन-धन की स्वच्छता के बाद ही इस राष्ट्र का नवीन रूप सामने आएगा। भारत मां के अभिनंदन का प्रथम त्योहार तभी मनाया जाएगा, जब राष्ट्र तमाम तरह की गंदगी से मुक्त होगा।
हजारों सालों तक महामारियों ने इंसानों पर अपना कहर ढाया है। कुछ लोगों का मानना था कि ये महामारियां परमेश्वर के क्रोध की निशानी हैं और वह बुरे लोगों को सजा दे रहा है। सदियों तक इस मामले में काफी जांच-परख और खोज-बीन करने से पता चला है कि अकसर इनके कसूरवार हमारे आस-पास रहने वाले छोटे-छोटे जीव-जंतु ही होते हैं। चिकित्सा क्षेत्र के खोजकर्ताओं ने पाया कि बीमारियां फैलाने में छछूंदरों, चूहों, तिलचट्टों, मक्खियों और मच्छरों का बहुत बड़ा हाथ होता है। उन्होंने यह भी पाया कि लोग साफ-सफाई में लापरवाही बरतकर अकसर संक्रामक बीमारियों को न्योता देते हैं। तो कहा जा सकता है कि साफ-सफाई का ताल्लुक जिंदगी और मौत से है।
इसमें कोई दोराय नहीं कि हालात और रिवाजों के मुताबिक लोगों के साफ-सफाई के स्तर अलग-अलग होते हैं। जिन इलाकों में साफ पानी नहीं मिलता या गंदे पानी के निकास की अच्छी व्यवस्था नहीं होती, वहां साफ-सफाई पर ध्यान देना एक चुनौती हो सकता है। मगर गौर कीजिए, जब इसराइली वीराने में सफर कर रहे थे, तब उनके लिए साफ-सफाई पर खास ध्यान देना कितना मुश्किल रहा होगा! इसके बावजूद परमात्मा ने उन्हें इस मामले में हिदायतें दीं।
अफ्रीका के देश कैमरून में रहने वाला बच्चा मैक्स स्कूल से छुट्टी होने के बाद दौड़ा-दौड़ा अपने छोटे-से घर में आता है। उसे जोरों की भूख लगी है। घर में घुसते ही उसका कुत्ता दुम हिलाता हुआ उसके पास आता है, वह उससे लिपट जाता है। फिर अपना बस्ता खाने की मेज पर पटक देता है और वहीं बैठकर खाने का बेसब्री से इंतजार करने लगता है। रसोई में मां को पता चल जाता है कि मैक्स आ चुका है। वह उसके लिए गर्म-गर्म चावल और फली की सब्जी परोसकर लाती है। मगर जैसे ही वह उसका बस्ता साफ मेज पर पड़ा देखती है, उसके तेवर बदल जाते हैं। वह अपने बेटे को घूरते हुए धीरे से सिर्फ इतना कहती है, 'बेटा' वह फट से समझ जाता है और अपना बस्ता वहां से हटा देता है। फिर दौड़कर बाहर हाथ धोने चला जाता है। भूख के मारे बेहाल जल्द ही लौट आता है और आंख चुराते हुए बुदबुदाता है: 'माफ करना मां, मैं भूल गया था।'
जब सेहत और साफ-सफाई की बात आती है, तो इसमें एक परवाह करने वाली मां का बहुत बड़ा हाथ होता है, मगर उसे पूरे परिवार के सहयोग की भी जरूरत होती है। मैक्स का उदाहरण दिखाता है कि सफाई के मामले में लंबे समय तक तालीम देना जरूरी है, क्योंकि साफ-सफाई में काफी मेहनत लगती है और खासकर बच्चों को इस मामले में लगातार याद दिलाने की जरूरत होती है। मैक्स की मां को पता है कि खाना कई तरीकों से दूषित हो सकता है इसलिए खाना छूने से पहले वह न सिर्फ अच्छी तरह से हाथ धोती है, बल्कि मक्खियों से बचाने के लिए खाना ढंककर रखती है। खाने को ढंककर रखने और घर को साफ-सुथरा रखने की वजह से उसे छछूंदरों, चूहों और तिलचट्टों से निजात मिलती है।
'बाइबल के मुताबिक परमेश्वर के लोगों को पवित्र होना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर पवित्र है।' (1 पतरस 1:16) बाइबल यह भी कहती है- 'पवित्रता और साफ-सफाई एक ही सिक्के के दो पहलू हैं इसलिए मैं अपने घर को साफ-सुथरा रखना चाहती हूं और चाहती हूं कि मेरा परिवार भी साफ-सुथरा दिखे। मगर यह तभी मुमकिन है, जब इसमें परिवार का हर सदस्य सहयोग दे।'
वैसे तो भारत में 'स्वच्छता अभियान' के अंतर्गत आधिकारिक रूप से 1 अप्रैल 1999 से भारत सरकार ने व्यापक ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम का पुनर्गठन किया गया था और पूर्ण स्वच्छता अभियान (टीएससी) शुरू किया जिसको बाद में (1 अप्रैल 2012 को) प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 'निर्मल भारत अभियान' (एनबीए) नाम दिया गया। 'स्वच्छ भारत' अभियान के रूप में 24 सितंबर 2014 को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी से 'निर्मल भारत अभियान' का पुनर्गठन किया गया था। 'निर्मल भारत अभियान' (1999 से 2012 तक 'पूर्ण स्वच्छता अभियान' या टीएससी) भारत सरकार द्वारा शुरू की गई समुदाय की अगुवाई वाली पूर्ण स्वच्छता (सीएलटीएस) के सिद्धांतों के तहत एक कार्यक्रम था। इस स्थिति को हासिल करने वाले गांवों को 'निर्मल ग्राम पुरस्कार' नामक कार्यक्रम के तहत मौद्रिक पुरस्कार और उच्च प्रचार प्राप्त हुआ।
'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने रिपोर्ट किया कि मार्च 2014 में यूनिसेफ इंडिया और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ने भारत सरकार द्वारा 1999 में शुरू विशाल पूर्ण 'स्वच्छता अभियान' के हिस्से के रूप में स्वच्छता सम्मेलन का आयोजन किया जिसके बाद इस विचार को विकसित किया गया। परंतु 15 अगस्त 2014 को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महात्मा गांधी के स्वप्न को दोहराते हुए इस देश को स्वच्छ रखने की बात कही और उसके बाद महात्मा गांधी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर 2014 को 'स्वच्छ भारत अभियान' आरंभ किया गया। 'स्वच्छ भारत अभियान' भारत सरकार द्वारा आरंभ किया गया राष्ट्रीय स्तर का अभियान है जिसका उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा करना है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देश को गुलामी से मुक्त कराया, परंतु 'स्वच्छ भारत' का उनका सपना पूरा नहीं हुआ। महात्मा गांधी ने अपने आसपास के लोगों को स्वच्छता बनाए रखने संबंधी शिक्षा प्रदान कर राष्ट्र को एक उत्कृष्ट संदेश दिया था।
'स्वच्छ भारत' का उद्देश्य व्यक्ति, क्लस्टर और सामुदायिक शौचालयों के निर्माण के माध्यम से खुले में शौच की समस्या को कम या समाप्त करना है। 'स्वच्छ भारत' मिशन लैट्रिन उपयोग की निगरानी के जवाबदेह तंत्र को स्थापित करने की भी एक पहल करेगा। सरकार ने 2 अक्टूबर 2019 महात्मा गांधी के जन्म की 150वीं वर्षगांठ तक ग्रामीण भारत में 1.96 लाख करोड़ रुपए की अनुमानित लागत (यूएस $30 बिलियन) के 1.2 करोड़ शौचालयों का निर्माण करके खुले में शौचमुक्त भारत (ओडीएफ) को हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
'स्वच्छ भारत' अभियान के उद्घाटन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देश की सभी पिछली सरकारों और सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों द्वारा सफाई को लेकर किए गए प्रयासों की सराहना की। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत को स्वच्छ बनाने का काम किसी एक व्यक्ति या अकेले सरकार का नहीं है, यह काम तो देश के 125 करोड़ लोगों द्वारा ही किया जाना है, जो भारतमाता के पुत्र-पुत्रियां हैं। उन्होंने कहा कि 'स्वच्छ भारत' अभियान को एक जन आंदोलन में तब्दील करना चाहिए। लोगों को ठान लेना चाहिए कि वे न तो गंदगी करेंगे और न ही करने देंगे। प्रधानमंत्री ने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक साफ-सफाई न होने के चलते भारत में प्रति व्यक्ति औसतन 6,500 रुपए जाया हो जाते हैं।
उन्होंने कहा कि इसके मद्देनजर 'स्वच्छ भारत' जन स्वास्थ्य पर अनुकूल असर डालेगा और इसके साथ ही गरीबों की गाढ़ी कमाई की बचत भी होगी जिससे अंतत: राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान होगा। उन्होंने लोगों से साफ-सफाई के सपने को साकार करने के लिए इसमें हर वर्ष 100 घंटे योगदान करने की अपील की है। प्रधानमंत्री ने शौचालय बनाने की अहमियत को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि साफ-सफाई को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे देशभक्ति और जनस्वास्थ्य के प्रति कटिबद्धता से जोड़कर देखा जाना चाहिए।
रोजमर्रा के जीवन में हमें अपने बच्चों को साफ-सफाई के महत्व और इसके उद्देश्य को सिखाना चाहिए। स्वच्छता एक ऐसा कार्य नहीं है, जो कि हम दबाव में करें बल्कि ये एक अच्छी आदत और स्वस्थ तरीका है हमारे अच्छे स्वस्थ जीवन के लिए। अच्छे स्वास्थ्य के लिए सभी प्रकार की स्वच्छता बहुत जरूरी है चाहे वो व्यक्तिगत हो, अपने आसपास की, पर्यावरण की, पालतू जानवरों की या काम करने की जगह (विद्यालय, महाविद्यालय आदि) हो।
हम सभी को निहायत जागरूक होना चाहिए कि कैसे अपने रोजमर्रा के जीवन में स्वच्छता को बनाए रखना है। अपनी आदत में साफ-सफाई को शामिल करना बहुत आसान है। हमें स्वच्छता से कभी समझौता नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये जीवन में पानी और खाने की तरह ही आवश्यक है। इसमें बचपन से ही कुशल होना चाहिए जिसकी शुरुआत केवल हर अभिभावक के द्वारा हो सकती है पहली और सबसे बड़ी जिम्मेदारी के रूप में।
'स्वस्थ भारत' के निर्माण हेतु बतौर प्रथम कदम राष्ट्र की तमाम गंदगियों को मिटाकर ही आगे बढ़ा जा सकता है। तन की स्वच्छता की ओर विशेष ध्यान दें, फिर मन में बुरे विचारों को आने न दें। इसी मन में आतंक, धर्म, जाति, लिंगभेद, ऊंच-नीच का भाव न आने पाए जिससे कि मन स्वच्छ होगा। न रिश्वत लो, न ही रिश्वत दो, न ही बिना कर चुकाए कालाधन रखें जिससे कि धन भी स्वच्छ होगा। उसके बाद घर को स्वच्छ रखें, मोहल्ले को स्वच्छ रखें, ग्राम, नगर और प्रांत के साथ-साथ राष्ट्र को स्वच्छ रखें जिससे कि भारत को स्थायी स्वस्थता मिलेगी। स्वस्थ भारत के साथ ही भारत के पुनर्निर्माण हेतु प्रत्येक तरीके की स्वच्छता ही कारगर विकल्प है।
(लेखक डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं।)