जब मैं टेंटनुमा बुर्कों में क़ैद, तीन तलाक की भीषण यंत्रणा और उत्पीड़न का नारकीय जीवन जीते मुस्लिम बहनों को देखता तो मेरी संवेदनाएं लहूलूहान हो जाती हैं। मैं हमेशा सोचता कि हम कैसे आदिम, बर्बर और क़बीलाई समाज के ज़ुल्मों और कमज़र्फ़ सोच को संवैधानिक मान्यता दे रहे हैं?
हलाला के अनगिनत किस्सों को सुनकर लगता था कि इन बिगड़ैल व ज़ाहिल यौनाचार करने वालों के आगे समूची सियासत ने घुटने टेक दिए हैं। भले ही मोदी सरकार ने ये सियासी कायदे के लिए किया हो लेकिन उनका इस बात के लिए इस्तक़बाल/ अभिनंदन होना चाहिए कि उनकी हुकूमत ने न केवल मुस्लिम औरतों की आज़ादी का नया इतिहास लिखा है, अपितु वोटों की निर्लज्ज और धूर्त राजनीति करने वाली ज़मात को उसकी औक़ात और उसका बदनुमा चेहरा भी दिखाया है।
हमें हर मज़हब की औरतों के शोषण, अत्याचार और ज़ुल्मो-सितम के ख़िलाफ़ आवाज उठानी ही होगी। नारियों पर होने वाले अपराधों को कानून के दायरे में लाना ही होगा। हम क़बीलों के नहीं, एक संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले मुल्क हैं।
हर हाल में नारियों की आबरू, अस्मिता और आत्मसम्मान सुरक्षित होना चाहिए, भले ही वे किसी भी मज़हब की हों।