ढाका में हुए आतंकी हमले में बांग्लादेश के राष्ट्रीय मीडिया और सोशल मीडिया में जो टिप्पणियां की गईं, वे बेहद महत्वपूर्ण हैं। बांग्लादेश के टीवी चैनलों ने आतंकी गतिविधियों को लाइव प्रसारित नहीं किया और सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपना संयम बनाए रखा। यह आतंकी हमले की जिम्मेदारी लेने वाले आईएसआईएस पर करारा तमाचा रहा।
आतंकी संगठन न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया से फीडबैक पाते रहते हैं और उसी के अनुसार अपनी कार्रवाई को अंजाम देते हैं। कारगिल युद्ध के दौरान दो जवानों को टीवी चैनलों के कवरेज के कारण जान गंवानी पड़ी थी। मुंबई हमले के वक्त हमने उससे सबक सीखा और लाइव कवरेज को कुछ घंटों के लिए स्थगित कर दिया था। सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणियों के अनुसार बांग्लादेश में आतंकवाद की यह आहट चिंता पैदा करने वाली है। इन आतंकी गतिविधियों के निशाने पर बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय प्रमुख तौर पर थे।
ढाका के आतंकी हमले के 48 घंटे पहले ही बांग्लादेश में दो पुजारियों की हत्या की जा चुकी थी। ये दोनों हत्याएं अलग-अलग जगहों पर हुई थी और उनमें शायद इतना बड़ा आतंकी गिरोह शामिल नहीं है। रमजान के महीने में इस तरह की मारकाट एक नए बांग्लादेश की तरफ इशारा करती है। इन आतंकी गतिविधियों का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां पाना और आतंक फैलाना रहा है।
बांग्लादेश की मुक्ति में अहम भूमिका निभाने वाले भारत के प्रति पाकिस्तान का नजरिया दिन पर दिन बदलता जा रहा है। भारत के तमाम आर्थिक सहयोग के बावजूद यह रिश्ता अदावत का लगता है। बांग्लादेश के इस्लामीकरण की कोशिशें बढ़ती जा रही हैं और उसे दूसरे पाकिस्तान की तरह स्थापित करने के यत्न हो रहे हैं। ट्विटर पर लोगों ने ढाका में हुए आतंकी हमले को संजीदगी से लेते हुए लिखा कि ढाका एक सुंदर शहर रहा है और उसका ये रूप चौंकाने वाला है। ढाका में धार्मिक कट्टरपंथियों ने बंधकों की जिस नृशंस तरीके से हत्या की, वह तरीका घृणास्पद और शर्मसार करने वाला है। 13 बंधकों को छुड़ा लिया गया, जो मामूली राहत की बात है, लेकिन 20 बंधकों का मारा जाना ढाका के इतिहास पर कलंक के समान है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की संवाददाता रुक्मिनी केलीमाची अलकायदा और आईएसआईएस की गतिविधियों को लंबे समय से कवर करती रही हैं। उन्होंने बांग्लादेश के इस आतंकी हमले पर 23 बार ट्वीट किए। इन ट्वीट में बांग्लादेश में आतंकवाद की बढ़ती फसल को उन्होंने उजागर किया। टि्वटर का उपयोग कोई रिपोर्टर कितनी अच्छी तरह कर सकता है, यह उसका नमूना है। रुक्मिनी के अनुसार सितंबर 2015 के बाद बांग्लादेश में आईएसआईएस का यह 19वां हमला था। आईएसआईएस के लिए बांग्लादेश में आतंक फैलाना उसके एजेंडे में शामिल है।
आईएसआईएस चाहता है कि तुर्की के समानांतर बांग्लादेश में भी इसी तरह आतंक मचाया जाए। तुर्की की तरह ही बांग्लादेश में भी मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी है, जहां बड़ी संख्या में सुन्नी मुसलमान भी रहते हैं। यही आईएसआईएस का लक्ष्य है। रुक्मिनी ने एक-एक हमले का हवाला देते हुए उसकी व्याख्या की है। साथ ही हमलों के तरीके पर भी गौर किया है। उनके अनुसार आतंकी बड़ी ही धूर्तता से अपने शिकार का चयन करते है। वे ऐसी जगह चुनते है, जहां सुन्नी बहुमत में हो और उन्हें एक साथ कत्ल किया जा सके।
प्रतिष्ठित पुलित्जर अवॉर्ड के लिए नामांकित हो चुकी, रोमानिया में जन्मी अमेरिका के न्यूयॉर्क टाइम्स की इस संवाददाता ने आतंकी हमले में जारी हर तस्वीर की व्याख्या ट्विटर पर की। उन्होंने ढाका के हमले की तुलना पेरिस में हुए हमले से करते हुए टिप्पणी की थी कि आतंकियों के निशाने पर वैसे ठिकाने ज्यादा होते हैं, जिनका संचालन पश्चिमी जगत के लोग करते हैं। ऐसे ठिकानों में विदेशियों की संख्या भी काफी होती है और आतंकी हमले की दशा में ऐसी घटनाओं का व्यापक कवरेज किया जाता है।
रुक्मिनी के इन ट्वीट्स से पत्रकारिता की एक नई संभावना का पता चला है। एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय वेबसाइट ने रुक्मिनी के इन ट्वीट को ही आधार बनाकर पूरा लेख प्रकाशित किया है। पत्रकारिता में यह नई विधा है और इससे पता चलता है कि अगर कोई जानकार व्यक्ति किसी खास घटना पर लगातार ट्वीट करे, तो उसे भी टीवी चैनलों के कवरेज की तरह ही महत्व मिल सकता है।