Water & Women : जल संरक्षण और संग्रहण के लिए स्त्री क्यों है जरूरी?

स्मृति आदित्य
पानी, जल, नीर. .. वॉटर.... कभी हथेली पर रखकर देखिए एक बूंद जल, महसूस कीजिए प्रकृति का चमत्कार, कीजिए कुछ सवाल... पानी क्या है? कहां से आया? कहां जाएगा? क्यों है कमी, कैसे करें पूरी....फिर इसमें एक सवाल और जोड़ लीजिए, जल के लिए स्त्री क्यों है जरूरी? 
 
आज पानी कहां नहीं है, पानी हर जगह है, हर कहीं है,  हमारे शरीर में है, बादलों में है, आकाश में है, जमीन के भीतर है... जब हर कहीं पानी है तो फिर पानी को लेकर परेशानी क्यों है? पानी को लेकर संघर्ष क्यों है? इसकी वजह है जल प्रदूषण, विषमय प्रदूषित जल आज हमारी सबसे बड़ी समस्या है। 
 
जल के लिए स्त्री क्यों है जरूरी? 
जलमेव जीवनम्.... जल ही जीवन है... हमारी प्रकृति के हर पवित्र तत्व से किसी न किसी देवता या देवी का संबंध हमें मिलता है। जलदेव की तरह ही जलदेवियां भी मानी गई हैं। जल देवियां या जलमातृकाएं हमें पुराणों में वर्णित मिलती हैं। ये हैं- मत्सी कूर्मी, वाराही, दर्दुरी, मकरी, जलूका और जन्तुका। पिछले आलेखों में हमने स्त्री और पानी, नीर और नारी के अतंरसंबंध पर प्रकाश डाला है। यह बात अलग से रेखांकित करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे घरों की महिलाएं जल को जुटाने के जतन करती हमें प्रतिदिन दिखाई देती हैं। दृश्य इतने सामान्य हो चले हैं कि हम उनके परस्पर संबंध पर बात करना भी बेमानी समझते हैं...
 
केरल की आदिवासी अम्मा मायलम्मा से लेकर बुंदेलखंड की जल सहेली गंगा और बबिता राजपूत तक और हमारे अपने आसपास की राधा-मीना से लेकर रेशमा और अमीना तक.... हर स्त्री पानी को लेकर संघर्ष कर रही हैं और अपने अपने स्तरों पर जल बचाने को लेकर छोटी-छोटी गाथाएं भी रच रही हैं। 
 
मायलम्मा एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने कंपनी कोका कोला को सत्याग्रह के बूते खदेड़ दिया। मायलम्मा कोई पढ़ी-लिखी महिला नहीं थीं। न ही उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के बारे में कहीं से पेशेवर डिग्री हासिल की थी। लेकिन जीवन और प्रकृति के सहज संबंध को बतौर आदिवासी स्त्री वह बेहतर पहचानती थीं। इसीलिए जब उनके गांव के कुएं सूखने लगे तो उन्हें लगा कि कुछ गड़बड़ है। और उस गड़बड़ के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोला हुआ। 
 
अमरीकी कम्पनी कोका कोला बेवेरेज ने अपने नाम में हिन्दुस्तान जोड़कर केरला के पालक्कड़ जिले के प्लाचीमाड़ा गांव में 3 जून 2000 को एक संयंत्र लगाया। तब गांववालों को पता नहीं था कि यह संयंत्र गांव की जिंदगी के लिए क्‍या गुल खिलाने जा रहा है। दो सात्र के भीतर ही गां व के पानी के स्रोत सूख गए। कुंएं जहरीले हो गए। और जिसने पानी पिया वही खाट पकड़ने लगा।

प्लाचीमाड़ा की महिलाओं को पानी के लिए कई मील पैदल चक्कर काटना पड़ा। लोग जान गए कि यह सब कोका कोला प्लांट लगने के कारण हुआ है। कंपनी प्रतिदिन भूजल से दस लाख लीटर पानी खींच रही थी। मायलम्मा का सालों भर पानी से लबालब रहनेवाला कुआं जब अचानक ही सूखा तो उनके अनुभवी दिमाग ने भांप लिया कि ऐसा क्‍यों हो रहा है। इरावलार जनजाति की इस महिला की आंखों ने अपनी आनेवाली पीढ़ियों की तबाही का मंजर देख लिया था। उनका कहना था- 3 वर्षों में इतनी बर्बादी हुई है, तो 10-15 वर्षों बाद क्या हालत होगी! तब हमारे बच्चे हमें कोसते हुए इस बंजर भूमि पर रहने के लिए अभिशप्त होंगे।” 
 
उन्हें लगा कि यदि उन्होंने और उनके समुदाय ने भावी जीवन के लिए जल नहीं बचाया तो आनेवाली पीढ़ियां उन्हें माफ नहीं करेंगी। फिर क्या था, मायलम्मा ने समुदाय की औरतों को एकत्र कर “कोका कोला विरुद्ध समर समिति” का गठन किया। और फिर शुरू हुई दुनिया सेकड़ों देशों में व्यवसाय करनेवाले कोका कोला के खिलाफ जंग।
 
शुरू में समर्थन नहीं मिला। लेकिन निरक्षर और ठेठ देहाती लेकिन आत्मविश्वास से भरी आदिवासी महिला ने ठान लिया था कि या तो हमारी जान जाएगी या कंपनी को अपने डेरा डंडा उठाना होगा। पालक्कड़ जिले के इस छोटे से गांव के लोग खेतीबाड़ी करते हैं। मायलम्मा के साथ पूरा गांव उठ खड़ा हुआ। आंदोलन का दमन शुरू हुआ। आंदोलन के पचासवें दिन कारखाने के सामने सत्याग्रह पर बैठी आदिवासी महिला आंदोलनकारियों पर हमला कर दिया गया। इस हमले में 7 औरतें बुरी तरह घायल हो गईं। कई महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया गया। लेकिन आदिवासी स्त्रियों का हौसला पस्त नहीं हुआ। धीरे-धीरे कोका कोला विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ लिया और देश भर के आंदोलनकारियों ने इसका समर्थन करना शुरू किया। मेधा पाटकर ने भी आंदोलन के समर्थन में प्लाचीमाड़ा से मार्च शुरू किया। 
 
आंदोलन में नया मोड़ तब आया जब कोका कोला कंपनी के उत्पाद की रासायनिक जांच प्रयोगशाला में हुई। बीबीसी की रिपोर्ट थी कि प्लाचीमाड़ा के पानी का प्रदूषण प्लांट से निकलने वाले रसायनों के कारण हुआ है। 
 
केरला सरकार ने 7 फरवरी 2004 को कंपनी से कहा कि वह व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए पानी का इस्तेमाल ना करे। 2004 की गर्मी में पूरा जनपद सूखा प्रभावित घोषित कर दिया गया और वहां के 2 संयंत्रों में काम बंद हो गया। कायदे से प्लाचीमाड़ा के आंदोलन को तभी बंद हो जाना चाहिए था। लेकिन प्रतिरोध की आवाज लंबे समय तक जारी रही, इस डर से कि कारखाना कहीं फिर से न खोल दे कंपनी। सालों कारखाने के बाहर आंदोलनकारी सत्याग्रह करते रहे। इस लंबे सत्याग्रह का ही नतीजा है कि प्लाचीमाड़ा की हृदयस्थली में 34 एकड़ में स्थित इस कारखाने को पिछले दिनों 600 बिस्तर वाले कोविड अस्पताल में तब्दील कर दिया गया था। एक निरक्षर आदिवासी महिला के नेतृत्व में चला यह दुनिया का सबसे अनूठा और लंबा सत्याग्रह था। 
 
मायलम्मा अब हमारे बीच नहीं रहीं। लेकिन मायलम्मा और पाल्क्कड़ की आदिवासी महिलाओं ने दुनिया को अच्छी तरह समझा दिया कि जिस जल के समान तरल होकर वह जीवन दायिनी हो सकती है उसी जल के बचाव और संरक्षण के लिए वह प्रचंड तूफान भी बन सकती है। 
 
बुंदेलखंड की जल सहेली गंगा और बबिता की कहानी भी कुछ कम प्रेरणास्पद नहीं है। गंगा और बबिता राजपूत ने महिलाओं की टोली बनाकर तालाबों का संरक्षण किया। इन जल वीरांगनाओं द्वारा निखारे गए तालाब आज कई गांवों के जीवन का आधार हैं। जल सहेली नामक उनके अभियान ने अपने अपने गांव की तस्वीर बदल दी है।
 
उसी तरह उज्जैन के समीप के गांव की राधा मीना और रेशमा-अमीना के साहस की कहानियां भी हैं। ये कहानियां गर्मी में पानी की किल्लत से आरंभ होती है और फिर ना सिर्फ अपने और परिवार के बल्कि एक बड़े समूह और समुदाय के कंठ की प्यास बुझाने पर खत्म होती है।
 
 एक स्त्री क्या कर सकती है जल के लिए
 
-अपने घर में पानी के बेकार में टपकने या रिसने के रोकें।
-जितनी आवश्यकता हो उतने ही जल का उपयोग करें।
-पानी के नलों को इस्तेमाल करने के बाद बंद रखें।
-मंजन करते समय नल को बंद रखें तथा आवश्यकता होने पर ही खोलें।
-नहाने के लिए अधिक जल को व्यर्थ न करें।
-ऐसी वाशिंग मशीन का इस्तेमाल करें जिससे अधिक जल की खपत न हो।
-खाद्य सामग्री तथा कपड़ों को धोते समय नलों का खुला न छोड़े।
-जल को कदापि नाली में न बहाएं बल्कि इसे अन्य उपयोगों जैसे - पौधों अथवा बगीचे को सींचने अथवा सफाई इत्यादि में लाएं।
-सब्जियों तथा फलों को धोने में उपयोग किए गए जल को फूलों तथा सजावटी पौधों के गमलों को सींचने में किया जा सकता है।
-पानी की बोतल में अंततः बचे हुए जल को फेंके नही बल्कि इसका पौधों को सींचने में उपयोग करें।
-पानी के हौज को खुला न छोड़ें।
-तालाबों, नदियों अथवा समुद्र में कूड़ा न फेंकें।
- बच्चों को जल का महत्व असल किस्से कहानियों के माध्यम से समझाएं। 

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