इस 21-22 मई को पुणे के विमान नगर के एक मैदान में फूटबॉल मैच का आयोजन हुआ, जिसमें 16 टीमों ने भागीदारी की। इससे पहले 14 मई को संगीत और नृत्य संध्या का आयोजन हुआ पुणे के ही कल्याणी नगर में ‘संगम’ नाम से। उससे भी पहले 6 मई को रद्दी इकट्ठा करने का काम हुआ। यह और इतना सब क्यों, पैसा जूटाना था। वह इसलिए कि पुणे के दस युवा 1 मई को एक गांव गए थे, जहां जाकर उन्होंने अपनी आंखों से लोगों को पानी के लिए तरसते देखा और तभी सबने मन में ठान लिया कि उस गांव के लोगों तक पानी पहुंचाना है। नौ छात्र और उनकी एक शिक्षिका इस तरह बीस हाथ दूसरों की मदद के लिए फंड जमा करने के काम में लग गए।
पुणे के वाडिया कॉलेज से बी.कॉम. प्रथम वर्ष की परीक्षा देने के बाद फेन्सटन मैन्यूअल ने अपने स्कूल के दिनों से साथी रहे तनय तेलंग से बात की कि महाराष्ट्र में सूखा पड़ रहा है और कुछ करना चाहिए। तनय बताता है कि सरकार ने लातूर में ट्रेन से पानी भेजा, विदर्भ और मराठवाड़ा की दिक्कत लोगों के सामने थी लेकिन सातारा किसी की नज़र में नहीं आया था। हमने सातारा पर लक्ष्य केंद्रित किया। सातारा जिले की कोरेगांव तहसील का एक छोटा सा गांव है रणदुल्लाबाद। हम दोस्त क्षितिजा कोठारी, फेन्सटन, तनय, गार्गी दातार, ऋषभ धोका, रिया तेजवानी, वंश चायनानी, सेजल धोका और सावनी खुर्जेकर ने वहां जाकर देखा कि तीन हज़ार की आबादी के इस गांव के लोगों को पानी के लिए छह दिन इंतज़ार करना पड़ता है। तब एक दिन टैंकर आता है, वह भी एक ही। हमने तय किया कि हम मदद करेंगे। सवाल यह था कि महाराष्ट्र सूखे से जूझ रहा है तो यही एक गांव क्यों? जवाब भी था कि हमसे जितना होगा हम उतना करेंगे, हो सकता है हमें देख दूसरे युवा भी आगे आ जाए और कई गांव सूखे से उबर जाए।
वे जब रेवाचंद भोजवानी अकादमी के स्कूल में पढ़ते थे तब उनकी एक शिक्षिका हुआ करती थी- दिलमेहर भोला। उन्हें पता चला कि वे एक स्वयंसेवी संगठन ‘सीवाईडीए’ की अध्यक्षा है। वे अपनी शिक्षिका के पास गए। काम करने का हौंसला देख उन्होंने मार्गदर्शन दिया। समूह का नाम रखा- ‘यूथ फॉर चेंज’ और अपनी पहल को नाम दिया ‘प्रोजेक्ट ओएसिस-जलदान पहल’। तय हुआ कि इस गांव में पानी के टैंकर को भेजा जाएगा। पर इसके लिए पैसों की ज़रूरत थी। मई महीने की पहली तारीख को रद्दी इकट्ठा करने की मुहिम हाथ में ली गई। लोगों ने साथ दिया। एक दिन में 40 घरों से 500-600 किलो रद्दी इकट्ठा हो गई और पानी भरा पहला टैंकर 6 मई को गांव पहुंचा। तब से अब तक लगातार सप्ताह में चार-पांच बार टैंकर से इस गांव के लोगों की प्यास बूझ रही है।
तनय का कहना है वे बारिश के दिनों में यहां रेन वॉटर हार्वेस्टिंग का काम शुरू करने वाले हैं। यह गांव एक पहाड़ी पर है। जिसके एक ओर ‘वाटर शेड’ संगठन ने यह काम किया है लेकिन पहाड़ी के उस पार अभी भी हलक सूखा है। वहां बूंद-बूंद बचायेंगे। यदि हम घरों में शॉवर की जगह बाल्टी लेकर नहाए तब सौ घरों में कम से कम सौ लीटर पानी बच सकता है। यदि कुछ और नहीं तो हम इतना तो कर ही सकते हैं।
यह तो बात हुई सातारा की। मराठवाड़ा जिस तरह पानी की तंगी को झेल रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे ही एक युवा ने अपनी ओर से एक पहल की वहां मदद पहुंचाने की। डेक्कन इलाके के गरिमा होटल के सभी कर्मचारी मराठवाड़ा के हैं। इस लॉज के मालिक स्वयं मराठवाड़ा के होने से वे नौकरी पर प्राथमिक तौर पर उन्हें ही रखने लगे जो सूखा प्रभावित इलाके से आया हो। मूलत: परभणी के होटल प्रबंधक संतोष कुकडे कहते हैं मैं लाखों रुपए खर्च नहीं कर सकता, तो मैं क्या कर सकता हूँ। मैं वहां से पुणे आने वाले युवाओं को नौकरी दे सकता हूं। होटल के मालिक संजय इंगले को उनकी यह बात जंच गई। इस होटल में काम करने वाले 20 से 30 आयुवर्ग के सभी कर्मचारी मराठवाड़ा के हैं।
कई सामाजिक संस्थाएं और ट्रस्ट भी इस दिशा में काम कर ही रही हैं और अपनी ओर से जितना हो सके उतना करते हुए टैंकर के अलावा अनाज, कपड़े, रोजमर्रा का ज़रूरी सामान जिससे जो बन पड़ रहा है वह देने की कोशिश पुणेकर लगातार कर रहे हैं। इस सोच और जज़्बे को सलाम तो बनता ही है।