मैं पूर्ण भक्ति भाव से भगवान के सिंहासन के सामने जाकर बैठ गई। कहां से पूजा शुरू करूं समझ नहीं आ रहा था। किसी काम को करने का तरीका न आता हो तो करने में आत्मविश्वास नहीं रहता। मैं पालथी लगाकर किंकर्तव्यमूढ़ सी बैठी थी तभी याद आया, दादी भगवानों की मूर्तियों पर चढ़े बासी फूल निकालने से पूजा शुरू करती थीं। उन्हें याद करते हुए मैं मूर्तियों पर चढ़े बासी फूल निकालने लगी। दिमाग में ऑफिस में प्रस्तुत किया जानेवाला अधूरा पीपीटी घूम रहा था। जिसकी चार-पांच स्लाइड बनाना बाकी थी। अंतिम प्रभावी स्लाइड्स को तैयार करते हुए मैंने मूर्तियों को तरभाने (मूर्तियों को नहलाने का तांबे का पात्र) में रखा और पास के लोटे से ताजा जल डालकर उन्हें नहला दिया।