नागपंचमी की 8 परंपराएं जो बनाती है इस दिन को खास:
1. पूजा : इस दिन शिव पूजा के साथ अष्टनागों की पूजा होती है। इसकी के साथ नागों की देवी वासुकी की बहन मनसादेवी और उनके पुत्र आस्तिक मुनि की पूजा भी करते हैं। इस दिन नाग माता कद्रू, बलरामजी की पत्नी रेवती, बलरामजी की माता रोहिणी और सर्पो की माता सुरसा की वंदना भी करते हैं। बिना शिवजी की पूजा के नागों की पूजा नहीं की जाती है। नागों की स्वंतत्र पूजा नहीं होती। उनकी शिवजी के आभूषण के रूप में ही पूजा होती है।
5. नाग आकृति : नागपंचमी के दिन घर के मुख्य द्वार पर गोबर, गेरू या मिट्टी से सर्प की आकृति बनाएं और इसकी विधिवत रूप से पूजा करें। इससे जहां आर्थिक लाभ होगा, वहीं घर पर आने वाली काल सर्प दोष से उत्पन्न विपत्तियां भी टल जाएंगी।
7. नाग मंदिर में पूजा : इस दिन किसी नाग मंदिर या स्थान पर जाकर पूजा करने का ज्यादा महत्व है। नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन, कर्कोटक मंदिर उज्जैन, वासुकि नाग मंदिर प्रयागराज, तक्षकेश्वर नाथ प्रयागराज, मन्नारशाला नाग मंदिर, केरल, कर्कोटक नाग मंदिर भीमताल, धौलीनाग मंदिर, उत्तराखंड बागेश्वर, नाग मंदिर, पटनीटॉप, नागपुर इंदौर का नाग मंदिर, भीलट देव का मंदिर, मप्र बड़वानी आदि जगहों के मंदिरों का खास महत्व है।
8. आस्तिक देव की पूजा : इन दिन मनसादेवी के पुत्र आस्तिक (आस्तीक) की पूजा की जाती है जिसने अपनी माता की कृपा से सर्पों को जनमेयज के यज्ञ से बचाया था। नाग पंचमी के दिन 'आस्तिक मुनि की दुहाई' नामक वाक्य घर की बाहरी दीवारों पर सर्प से सुरक्षा के लिए लिखा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस वाक्य को घर की दीवार पर लिखने से उस घर में सर्प प्रवेश नहीं करता और सर्प दंश का भय भी नहीं रहता है।