एक बार फिर राजनीतिक पंडितों के अनुमान गलत साबित हुए। मुंबई के आतंकी हमलों का असर मध्यप्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मिजोरम, विधानसभाओं के लिए हुए मतदान पर नहीं दिखाई दिया।
मुंबई की आतंकवादी घटना ने दिल्ली को हिलाकर रख दिया था। इसलिए मीडियाकर्मी ही नहीं शीर्ष कांग्रेसियों को आशंका हो गई थी कि भावुक और गुस्साए मतदाता कहीं भाजपा की भावना में न बह जाएँ...
मतदाता युवा रहे या महिला, दलित या आदिवासी अथवा अल्पसंख्यक, सबने बहुत सोच-समझकर उम्मीदवारों और पार्टियों को वोट डाले। यही कारण है कि राजसी और अंग्रेजिया शैली में डंके की चोट पर राजस्थान पर 5 साल तक अकेले राज करने वाली महारानी वसुंधरा राजे को जनता ने पूरी तरह ठुकरा दिया।
राजस्थान में महिला मतदाताओं ने भी जमकर वोटिंग की और तख्ता पलट दिया। भारतीय जनता पार्टी के राजस्थानी नेताओं के दर्द पर दंभी नेतृत्व ने कभी मरहम नहीं लगाया। ऐसी स्थिति में 5 साल मुख्यमंत्री रहने के बावजूद दीन-हीन कार्यकर्ता की तरह कांग्रेस पार्टी और प्रदेश में काम करने वाले अशोक गहलोत की सफलता लोकतांत्रिक जड़ों के लिए अमृत कही जानी चाहिए।
आतंक की छाया छत्तीसगढ़ में कम नहीं रही। पहला 5 साल तक नक्सली हिंसा का आतंक, दूसरा विरोधी कांग्रेस पार्टी के एक शक्तिशाली आपराधिक गुट का खौफ। लेकिन आम जनता अमेरिका की हो या छत्तीसगढ़ की, बस सुकून तथा आर्थिक विकास चाहती है। रमन सिंह ने पार्टी की खींचातानी और गंभीर सामाजिक आर्थिक चुनौतियों के रहते केवल विकास कार्यों पर हर संभव जोर लगाया।
उन्हें और उनकी पार्टी को इसी का लाभ मिला। प्रगतिशील खेमा कुछ भी कहे, हिन्दुत्व नहीं पर सलवा जुडूम अभियान का लाभ भी रमनसिंह को मिला है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कुछ अहंकारी नेताओं ने संगठन या विकास के बजाय केवल दबाव, रौब तथा जोड़-तोड़ का रास्ता अपनाया। जबकि कम अनुभव वाले शिवराजसिंह ने विकास के लक्ष्य का ढोल बजाया। जनता ने सिर्फ वही आवाज सुनी।
मुंबई की आतंकवादी घटना ने दिल्ली को हिलाकर रख दिया था। इसलिए मीडियाकर्मी ही नहीं शीर्ष कांग्रेसियों को आशंका हो गई थी कि भावुक और गुस्साए मतदाता कहीं भाजपा की भावना में न बह जाएँ। लेकिन लोगों ने कांग्रेस से अधिक मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और उनकी टीम के काम को मान्यता की मोहर लगाई।
पूर्वोत्तर में मिजोरम पर वर्षों से अलगाववादी हिंसा तथा आतंक का प्रभाव रहा है। क्षेत्रीय पार्टी एमएनएफ 10 वर्षों से एकछत्र राज कर रही थी, लेकिन मतदाताओं ने नई हिम्मत और उम्मीद के साथ कांग्रेस पार्टी को सत्ता में ला दिया।
विश्व के लोकतंत्र में ऐसी अनूठी चुनावी परिस्थितियाँ और राजनीतिक धारा कहीं और नहीं मिल सकती। यह किसी पार्टी की हार-जीत नहीं, असली स्वतंत्र लोकतंत्र और विकास की आकांक्षा रखने वालों की विजय है।