छड़ी मुबारक की स्थापना के साथ अमरनाथ यात्रा संपन्न

मंगलवार, 26 अगस्त 2014 (00:41 IST)
-सुरेश एस डुग्गर
श्रीनगर। वार्षिक अमरनाथ यात्रा आज श्रावण पूर्णिमा के दिन 14500 फुट की ऊंचाई पर स्थित अमरनाथ गुफा के मुख्य दर्शनों के साथ ही संपन्न हो गई। आज करीब तीन सौ श्रद्धालुओं ने गुफा के दर्शन किए जबकि 28 जून को आरंभ हुई अमरनाथ यात्रा के 44 दिनों के भीतर 4 लाख श्रद्धालुओं ने हिमलिंग के दर्शन किए हैं। इस बार अमरनाथ यात्रा में 45 श्रद्धालुओं की मौत भी हो गई।
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इस यात्रा की प्रतीक पावन पवित्र ‘छड़ी मुबारक’ को आज पवित्र गुफा में भी स्थापित किया गया जिसे लेकर साधुओं का एक दल श्रीनगर के दशनामी अखाड़े से चला था और इस दल का नेतृत्व दशनामी अखाड़े के महंत दीपेंद्र गिरि ने किया था। पूजा प्रतिष्ठा के बाद इस ‘छड़ी मुबारक’ को पुनः उसी अखाड़े में स्थापित कर दिया जाएगा।

स्वामी दीपेंद्र गिरि ने बताया कि पवित्र गुफा में पूजा पारंपरिक विधि के साथ सुबह संपन्न हुई। लगभग 300 श्रद्धालुओं ने पूजा में हिस्सा लिया। हम छड़ी मुबारक के साथ अपने घर वापस लौट रहे हैं। इस साल 4 लाख तीर्थयात्रियों ने अमरनाथ के दर्शन किए। पिछले साल यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 3.59 लाख थी और वर्ष 2012 में यह 6 लाख थी। पिछले वर्ष उत्तराखंड आपदा से लोगों के बीच उपजे भय को अमरनाथ यात्रा में तीर्थयात्रियों की कम संख्या की वजह माना गया था।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार अधिकारियों ने यात्रा को नियंत्रित रखने में पूरी सावधानी बरती। इस यात्रा में किसी गैरपंजीकृत यात्री को शामिल होने नहीं दिया गया। पंजीकृत यात्रियों को सिर्फ उनके तय अवधि के दिन यात्रा करने की इजाजत दी गई।

बालटाल और नुनवान आधार शिविर से पवित्र गुफा की तरफ जाने वाले यात्रियों को भी नियंत्रित किया गया। बालटाल और नुनवान से प्रत्येक दिन 7,500 श्रद्धालुओं को जाने की इजाजत दी गई। 28 जून से शुरू हुई और 10 अगस्त को रक्षा बंधन के दिन समाप्त हुई इस यात्रा के दौरान 45 तीर्थयात्रियों की प्राकृतिक आपदा में मौत हो गई। पिछले साल यह आंकड़ा 14 था।

अब जबकि यात्रा संपन्न हो गई है तो सरकार ने राहत की सांस ली है। सुरक्षाबलों ने अपनी मेहनत, सतर्कता और चौकसी के कारण उन सभी कोशिशों को नाकाम बना दिया जो यात्रा के लिए घातक साबित हो सकती थीं।

पिछले कुछ वर्षों से यह देखने को मिल रहा था कि आतंकी हमले अमरनाथ श्रद्धालुओं में नए उत्साह का संचार करते रहे और प्रत्येक आतंकी घटना के उपरांत यात्रा में शामिल होने वालों की संख्या और बढ़ जाती थी जिस कारण प्रशासन के लिए परेशानियां पैदा होती थीं।

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