अपनी आवाज की बदौलत संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करने वाले मोहम्मद रफी ने अपने गाए गीत 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया...जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया...' को बखूबी अपनी जिंदगी में भी उतारा। हालाँकि उनके इस रुख के कारण सुरों की मलिका लता मंगेश्कर के साथ एक बार उनकी बातचीत बंद हो गई थी।
रफी साहब ने गाने के एवज में मिलने वाली राशि की कभी परवाह नहीं की। उन्हें निर्माता जितना देते थे वह उसी से संतोष कर लेते थे। अपने इसी स्वभाव के कारण एक बार लता मंगेशकर के साथ उनका विवाद हो गया। लता मंगेश्कर गानों पर रायल्टी की पक्षधर थीं जबकि रफी ने कभी भी रायल्टी की माँग नहीं की। दोनों का विवाद इतना बढ़ा कि फिल्म जगत में अपने मिलनसार स्वभाव के लिए पहचाने जाने वाले रफी साहब और लता के बीच बातचीत भी बंद हो गई।
कई वर्षों तक चले विवाद के कारण दोनों ने एक साथ कोई गीत भी नहीं गाया। रफी साहब मानते थे कि एक बार जब निर्माताओं ने गाने के पैसे दे दिए तो फिर रायल्टी किस बात की माँगी जाए। हालाँकि चार वर्ष के बाद नरगिस के प्रयास से दोनों के संबंधों पर जमी बर्फ पिघली और दोनों ने एक साथ एक कार्यक्रम में 'दिल पुकारे...' गीत गाया।
हाल ही में मोहम्मद रफी पर प्रकाशित पुस्तक 'मेरी आवाज सुनो' में लेखक विनोद विप्लव ने रफी साहब की जिंदगी के कई रोचक पहलुओं को उजागर किया है। पुस्तक के मुताबिक सुरों के सौदागर फिल्म जगत के मौजूदा महानायक अमिताभ बच्चन के बड़े प्रशंसक थे। जिस दिन उन्होंने बच्चन के साथ पहली बार 'चल-चल मेरे भाई तेरे हाथ जोड़ता हूँ...' गाना गाया था। उस दिन बिल्कुल बच्चों की तरह अभिभूत हो गए थे।
रफी साहब के पुत्र शाहिद के मुताबिक उन्हें फिल्में बहुत अधिक पसंद नहीं थीं लेकिन दीवार में अमिताभ का अभिनय देखकर वह उनके प्रशंसक बन गए थे। पहली बार बिग बी के लिए गाने के बाद जब रफी साहब घर लौटे तो बिल्कुल बच्चों की तरह उत्साह से लबरेज होकर उन्होंने सबको बिग बी के साथ गाने की पूरी घटना सुनाई। हालाँकि उनके पसंदीदा अभिनेताओं में शम्मी कपूर और धर्मेन्द्र भी शामिल हैं।
यदा-कदा ही फिल्में देखने वाले रफी साहब को फिल्म शोले काफी पंसद थी और उन्होंने इसे तीन बार देखा था, लेकिन रफी ने कभी कोई फिल्म पूरी नहीं देखी। वह जब भी फिल्म देखने जाते तो फिल्म शुरू होने के कुछ समय बाद थियेटर में घुसते और पूरी होने के थोड़ी देर पहले ही बाहर निकल आते।
हिन्दी फिल्मों के लिए करीब पाँच हजार गीत गाने वाले मोहम्मद रफी एक ही धुन के पक्के थे इसी कारण उन्होंने अभिनेता बनने के कई मौकों को खारिज कर दिया। हालाँकि एक-दो बार उन्होंने कैमरे का सामना किया, लेकिन वह भी फिल्म 'लैला मजनूं' में तेरा जलवा जिसने देखा... गीत में स्वर्णलता और नजीर के साथ समूह में। इसके अलावा कुछ पलों के रोल के लिए फिल्म 'जुगनू' में भी वह दिखाई पड़े, लेकिन इसके बाद उन्होंने कभी कैमरे के सामने आने की इच्छा नहीं जताई।
इसी तरह कई बार संगीत देने का प्रस्ताव मिलने के बावजूद भी उन्होंने उन्हें खारिज कर दिया। उन्होंने एक बार अपने साक्षात्कार में कहा था कि कुछ अरसा पहले निर्माता-निर्देशक एस. मुखर्जी ने एक फिल्म के लिए संगीत देने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन मैं यह मानता हूँ कि किसी भी आदमी को एक ही पेशे में माहिर होना चाहिए।
माया नगरी में संघर्ष के बाद एक मुकाम हासिल करने वाले रफी साहब ने फिल्मी गीतों के अलावा गैर फिल्मी गीत भी गाए, जिनमें देशभक्ति, याहू शैली, कव्वाली आदि शैली के गीतों के अलावा हर भाव और राग के गीत शामिल हैं।
रफी अपने दौर के लगभग सभी अभिनेताओं की आवाज बने। इनमें याहू शैली के शम्मी कपूर से लेकर हास्य अभिनेता जॉनी वाकर, भारत भूषण, दिलीप कुमार, जुबली कुमार के नाम से मशहूर राजेन्द्र कुमार तक शामिल हैं।
रफी ने सदाबहार अभिनेता देव आनंद के लिए 'दिन ढल जाए और जिया ओ जिया कुछ बोल दो...' जैसे गीत गाए। धर्मेन्द्र, जितेन्द्र, किशोर कुमार और राजेश खन्ना के लिए रफी साहब ने कई फिल्मों में आवाज दी है।