सरकार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक मिशन गठित करना चाहिए, ताकि देश में विज्ञान की शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में प्रभावी बदलाव लाया जा सके। इससे विशुद्ध विज्ञान चुनने वाले विद्यार्थियों की तादाद भी बढ़ेगी। उक्त आशय का पत्र राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह को लिखा है।
पत्र के मुताबिक विज्ञान और गणित के मिशन में अत्यंत तीव्र बुद्धि वाले 40 से 50 भारतीय वैज्ञानिक और गणितज्ञों को शामिल किया जाएगा, जो 45 वर्ष से कम आयु के होंगे।
प्रतिभाओं को जुटाने के लिए विश्वभर में उभरते हुए भारतीय सितारों की खोज करना होगा। उन्हें मिशन की आत्मा बनाने के लिए सूचीबद्ध करना होगा। आयोग के मुताबिक मिशन तभी सफल होगा, जब इसे राष्ट्रीय स्तर पर शुरू किया जाएगा, जब इसकी पहुँच हर स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय और संस्थान में होगी।
अर्थव्यवस्था की प्रगति के साथ ही विशुद्ध विज्ञान को काफी कम विद्यार्थी चुन रहे हैं। इससे भविष्य के वैज्ञानिक और शिक्षकों के विकास पर गंभीर रूप से असर पड़ रहा है।
पित्रोदा ने कहा हम इससे वाकिफ हैं कि दुनियाभर में यही हो रहा है, लेकिन चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने विज्ञान की शिक्षा के लिए काफी निवेश किया है। अब इसके बेहतर नतीजे आने की वहाँ शुरुआत हो चुकी है।
पित्रोदा ने सुझाव दिया कि वैज्ञानिकों का प्रमुख दल बनाने के लिए अच्छे संस्थानों में विज्ञान के स्नातक पाठ्यक्रम की सीटों में इजाफा करना होगा। उन संस्थानों में स्नातक स्तर के कार्यक्रम शुरू करना होंगे, जहाँ वर्तमान में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पढ़ाए जा रहे हैं।
आयोग ने युवा शिक्षकों को विश्वविद्यालय और कॉलेजों में परामर्श देने का कार्यक्रम शुरू करने को कहा है। उसका कहना है आरक्षित पद लचीली नियुक्ति प्रक्रिया के अभाव में खाली रह जाते हैं। इससे अध्यापन में कई व्यावहारिक कठिनाइयाँ आती हैं।
इस स्थिति में संशोधन के लिए व्यवस्थित दृढ़निश्चयी अभियान शुरू करने की जरूरत है। उन्होंने कहा इन पदों पर कार्य करने में सक्षम युवा विद्यार्थियों को उनकी शुरुआती उम्र में ही चयनित कर निखारना और सावधानीपूर्वक प्रशिक्षित करना चाहिए, ताकि वे अध्यापन में अपना करियर बना सकें।
विज्ञान की स्नातक उपाधियों को अन्य पेशेवर क्षेत्रों के बराबर लाने के लिए आयोग ने विज्ञान में चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम चलाने का सुझाव दिया है, ताकि इसे तीन वर्षीय पाठ्यक्रम के मुकाबले महत्वपूर्ण रूप से मजबूत बनाया जा सके। इससे विद्यार्थी सीधे पीएचडी कार्यक्रम करने या शोध के क्षेत्र को अपनाने के लिए प्रेरित हो सकेंगे।
आयोग के मुताबिक वर्तमान बीएससी और एमएससी पाठ्यक्रमों में सुधार लाना चाहिए। समेकित पाँच वर्षीय एमएससी कार्यक्रम को पीएचडी कार्यक्रम से जोड़ने का प्रावधान होना चाहिए, जिससे डॉक्टरेट पाने के लिए खर्च होने वाले समय को कम किया जा सके।
आयोग ने कहा कि वैज्ञानिक सोच को प्रेरित करने और विज्ञान के मूल सिद्धांतों के प्रति बेहतर समझ को बढ़ावा देने के लिए मूल्याँकन प्रणाली में भी महत्वपूर्ण बदलाव लाने की दरकार है।
उसका कहना है प्रणाली को परीक्षा आधारित करने की बजाए खुले आकलन पर आधारित होना चाहिए। स्कूली स्तर पर निरंतर मूल्यांकन करते रहने से वर्ष के अंत में होने वाली परीक्षा पर निर्भरता कम हो जाएगी।