फिल्म अभिनेता संजय दत्त ने 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में आतंकवाद एवं विध्वंसकारी गतिविधियाँ निरोधक कानून (टाडा) की विशेष अदालत द्वारा उन्हें शस्त्र अधिनियम के तहत दोषी ठहराने के फैसले को मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी।
संजय ने छह वर्ष के सश्रम कारावास की सजा को स्थगित करने तथा जमानत पर रिहा करने की भी प्रार्थना की है। संजय को टाडा के तहत आरोपों से मुक्त कर दिया गया था, लेकिन शस्त्र अधिनियम के तहत उन्हें सजा सुनाई गई थी।
संजय ने उच्चतम न्यायालय में दायर अपील में कहा है कि जब उसे टाडा के तहत आरोप मुक्त कर दिया गया था, तो ऐसे में टाडा की अदालत द्वारा उन्हें दोषी करार दिया जाना न्यायोचित नहीं है।
उल्लेखनीय है कि 31 जुलाई संजय दत्त को मंगलवार को टाडा अदालत ने छह साल की सजा सुनाई थी। विशेष टाडा न्यायाधीश प्रमोद कोडे ने संजय दत्त पर 25 हजार रुपए का जुर्माना भी किया था।
याचिका में कहा गया है कि उच्चतम न्यायालय में इस बात पर विचार किया जाना चाहिए है कि क्या टाडा की अदालत किसी ऐसे व्यक्ति को दोषी करार और सजा दे सकती है जिसे स्वयं वही अदालत टाडा के तहत सभी आरोपों से मुक्त कर चुकी हो।
इस मामले में स्वयं को बरी करने का आग्रह करते हुए संजय ने दलील दी है कि टाडा अदालत ने मामले में प्रस्तुत साक्ष्यों को स्वीकार कर 'गंभीर भूल' की है। साथ ही उसने याचिकाकर्ता के पक्ष में उन परिस्थितियों को नजरअंदाज कर दिया है, जो उसे क्षमादान में सहायक हो सकती थीं। खासकर इस तथ्य को कि वह 15 माह जेल में काट चुका हैं और सुनवाई के दौरान उसका आचरण संतोषजनक था।
अभिनेता ने कहा कि उसे अपराधी परिवीक्षा कानून के तहत रिहा किया जा सकता था। टाडा की विशेष अदालत ने अभिनेता सुनील दत्त और अभिनेत्री नरगिस दत्त के बेटे संजय दत्त को खतरनाक हथियार रखने के लिए छह वर्ष के सश्रम कारावास की सजा सुनाई। हालाँकि अदालत ने उसे टाडा के तहत आरोपों से मुक्त कर दिया।
अदालत ने इस मामले में 123 लोगों को अभियुक्त बनाया गया जिसमें 23 को सबूत के अभाव में संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। दोषी ठहराए गए एक सौ अभियुक्तों में 12 को फाँसी, बीस को उम्रकैद और 67 को चौदह से तीन साल की सजा सुनाई थी। मुन्नाभाई ब्रांड नहीं रहे