मणिपुर में जातीय हिंसा के कारण राज्य के लोगों का ध्रुवीकरण होने के एक साल बाद, कुकी-मेइती दंपति द्वारा चलाया जा रहा अनाथालय दोनों समुदायों के बीच सद्भाव फिर से जल्द बहाल होने की उम्मीद जगाता है। दोनजालाल हाओकिप और रेबती देवी की अपनी कोई संतान नहीं है और वे किठेल्मबी में 'द एमा फाउंडेशन होम' नामक अनाथालय संचालित करते हैं। किठेल्मबी, इंफाल घाटी और कांगपोकपी के बीच का संवेदनशील क्षेत्र है, जो पूर्व में मेइती बहुल था और अब यहां कुकी समुदाय का प्रभाव है।
क्या राज्य में तनावपूर्ण स्थिति को देखते हुए यह आसान काम है? इस पर 52 वर्षीय हाओकिप ने कहा कि नहीं, लेकिन प्रेम ही हिंसा का एकमात्र प्रतिकार और शांति का मार्ग है। दंपति 2015 से अनाथालय संचालित कर रहा है, जिसमें मेइती, कुकी, नगा और यहां तक कि नेपाली बच्चे भी रहते हैं।
दंपति को 3 मई, 2023 की घटनाएं स्पष्ट रूप से याद हैं, जब मेइती समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में आयोजित आदिवासी एकजुटता मार्च को लेकर जातीय झड़पें हुईं। हाओकिप कुकी हैं जबकि उनकी पत्नी रेबती मेइती समुदाय से हैं।
हाओकिप ने कहा कि पिछले साल 3 मई को जब हिंसा शुरू हुई तो हमने सोचा कि सुबह तक स्थिति ठीक हो जाएगी। लेकिन एक और दिन बीत गया और हर गुजरता हुआ पल एक बुरे सपने जैसा महसूस हुआ। मैंने मदद के लिए असम राइफल्स को संदेश भेजा। उन्होंने हमारी मदद का आश्वासन दिया और अनाथालय के बाहर कुछ जवानों की तैनाती की।
उन्होंने कहा कि पहला खतरा यह था कि हम मेइती-कुकी दंपति हैं और हमारे पास दोनों समुदाय से बच्चे थे। हमारे परिवार को डर था कि हमें बहुत आसानी से निशाना बनाया जाएगा। लेकिन हमने वहीं रुकने का फैसला किया और कठिनाइयों के बावजूद हम सुरक्षित रहे।
दंपति ने 2012 में शादी की थी और अनाथालय के बच्चे उन्हें मम्मी और पापा कहकर बुलाते हैं। ये बच्चे नजदीक में असम राइफल्स द्वारा संचालित स्कूल में पढ़ते हैं। इनमें सबसे बड़ा बच्चा 10वीं कक्षा में पढ़ता है जबकि सबसे छोटा बच्चा 4 साल का है।
पहाड़ी राज्य में पिछले साल 3 मई से बहुसंख्यक मेइती समुदाय और कुकी समुदाय के बीच झड़पें हुई हैं, जिसके परिणामस्वरूप 200 से अधिक लोगों की जान चली गई और 60,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं। मेइती इंफाल शहर में केंद्रित हैं जबकि कुकी पर्वतीय क्षेत्रों में रहते हैं।
रेबती (47) ने कहा कि हिंसा के कारण बच्चे कई महीने तक स्कूल नहीं जा सके। उन्होंने कहा कि बच्चों को अंदाजा था कि कुछ हो रहा है, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि वास्तव में क्या हुआ है? हम नहीं चाहते थे कि बच्चों को संघर्ष की भयावहता के बारे में पता चले। वे मासूम हैं। लेकिन जब वे स्कूल जाने लगे और अन्य बच्चों के साथ बातचीत की तो उन्हें घटना के बारे में पता चला और तब से सवाल पूछ रहे हैं।
रेबती ने कहा कि अब तक, हम इन बच्चों के लिए एक सुरक्षित स्थान सुनिश्चित करने में सफल रहे हैं, लेकिन चुनौती यह भी है कि उनके बीच एक-दूसरे के प्रति शत्रुता न बढ़ने दें। हम उन्हें बताते हैं कि वे पहले की तरह भाई-बहन हैं और वे किसी समुदाय विशेष के नहीं हैं। (भाषा)